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एक मुसलमान ने खोजी थी अमरनाथ की गुफा, दिलचस्प इतिहास है बाबा बर्फानी का


मलिक के अनुसार, ‘एक बार उन्हें सर्दी लगी तो वो उस गुफा में चले गए। गुफा में ठंड लगी तो साधु ने उन्हें एक कांगड़ी दिया जो सुबह में सोने की कांगड़ी में तब्दील हो गया।’ मलिक बताते हैं कि सुनी सुनाई बातों के अनुसार जब बूटा मलिक गुफा से निकले तो उन्हें ढेर सारे साधुओं का एक जत्था मिला जो भगवान शिव की तलाश में घूम रहे थे। मलिक कहते हैं, ‘बूटा मलिक ने उन साधुओं से कहा कि वह अभी भगवान शिव से साक्षात मिलकर आ रहे हैं और वो उन साधुओं को उस गुफा में ले गए। जब ये सभी साधु गुफा में पहुंचे तो वहां बर्फ का विशाल शिवलिंग था और साथ में पार्वती और गणेश बैठे हुए थे। वहां अमर कथा चल रही थी उस समय।’
मलिक बताते हैं कि इस घटना के बाद अमरनाथ यात्रा शुरु हुई। बाद में कई साधु गुफा के पास से कूद कर जान देने लगे तो महाराजा रणजीत सिंह के शासन में इसे बंद किया गया। मलिक बताते हैं कि चूंकि वो मुसलमान परिवार हैं तो उन्हें पूजा पाठ की जानकारी नहीं थी। अमरनाथ में तीन तरह के लोग रहते हैं। कश्मीरी पंडित, मलिक परिवार और महंत। ये तीनों मिल कर छड़ी मुबारक की रस्म पूरी करते थे। अमरनाथ यात्रा को लेकर विधानसभा में बिल भी पारित हुआ था, जिसमें मलिक परिवार का भी जिक्र है।
गुलाम हसन बताते हैं कि जब नेहरू जी आते थे कश्मीर, तो मलिक परिवार को याद करते थे। लेकिन आगे चलकर हमारा पूरा महत्व फारूक अब्दुल्ला सरकार ने खत्म कर दिया। लेकिन वो कांगड़ी कहां है, इस बारे में पूछे जाने पर मलिक कहते हैं कि बूटा मलिक से ये कांगड़ी तत्कालीन राजाओं ने ले ली थी और अब ये किसी को नहीं पता कि ये कांगड़ी कहां है। वो कहते हैं, ‘हमने बहुत कोशिशें कीं, उसके बारे में पता करना चाहा लेकिन राजतरंगिणी में भी हमारे परिवार का जिक्र है और इस पौराणिक कथा का भी।’
मलिक कहते हैं, ‘बूटा मलिक की मौत हुई और उसके बाद उनकी दरगाह जंगल में जाकर बनी। उन्हीं के नाम पर हमारे गांव का नाम बटकोट पड़ा है। अमरनाथ यात्रा के दौरान हम लोग मांस नहीं खाते क्योंकि हमें पता है कि इस समय में मांस खाना ठीक नहीं होता है।’ मलिक कहते हैं कि अमरनाथ उन तीर्थयात्राओं में से है जिसका कश्मीर में मुस्लिम समुदाय पूरे दिल से सम्मान करते हैं।