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विश्व पर्यावरण दिवस : पर्यावरण का प्रदूषण और संरक्षण

होमेंद्र देशमुख

यह पहली नजर में सरकारी फाइल, सेमिनार और कुछ झोला टांगे बुद्धिजीवियों का महज चोचला भर लगता है । चार पेड़ काट डालो, चार बांध बना लो, थोड़ी परमाणु रेडिएशन कर लो , इतनी बड़ी प्रकृति को क्या फर्क पड़ेगा । आखिर ये पेड़ ये पहाड़ ये पत्थर ये नदियां ये समंदर , हमारे हैं ही किस काम के…?

पर्यावरण को और सूक्ष्म से समझने के लिए पारिस्थितिकीय विज्ञान की बातें तो आज शुरू हुई हैं , परन्तु अन्य प्राचीन धर्मो की तरह वैदिक दर्शन की भी यही मान्यता रही है कि प्रकृति प्राणधारा से स्पन्दित होती है। सम्पूर्ण चराचर जगत अर्थात् पृथ्वी, आकाश, आग, वायु, जल, वनस्पति और जीव-जंतु सब में दैवत्व की धारा प्रवाहित है। अध्यात्म की यही प्राणधारा और उसकी कड़ियाँ आज की पारिस्थितिकी तंत्र है । जल का फिर समुद्र का, तालाब का और कुएं का । जितना अध्ययन करना है उसका अलग अलग और गहरा अध्ययन किया जा सकता है ।

एक बीज को जमीन के ऊपर फेंक दीजिये और एक बीज को बस आधे इंच जमीन के अंदर रोप दीजिये । मिट्टी के नीचे दबे बीज उस अंधेरी धरती से क्या क्या तत्व लेकर, अपने मे नया जीवन प्रस्फुटित करेगा , वो सब तत्व उसके उसी पारिस्थितिकीय घटक हैं । परिणाम होगा एक लहलहाता वृक्ष ,तना शाखाएं पत्तियां फल फूल ही नही उस पर आश्रित जीव पशु पक्षी और उसका भी अपना फिर इको सिस्टम । एक बीज से कितनों की निर्भरता है । कौन सा पक्षी केवल फूलों का रस चूसेगा , किसके लंबे चोंच ,किसका अमाशय छोटा , किसकी आंत बड़ी होगी, कौन वनस्पति खाएगा , कौन मांसभक्षी ..! यह श्रृंखला यूँ ही नही बनी है । वनस्पति और जंतु की बात क्या , पत्थर को भी अध्यात्म में निर्जीव नही माना है ,उसे भी परमात्मा का अंश कहा गया है । यह पूरी प्रकृति अकारण ही नही बनी है । धरती- आकाश , नदी- सागर ,चांद -तारे ,पशु-पक्षी, भँवरे -तितलियां, मैदान- पहाड़, पाषाण-मिट्टी । सब का अस्तित्व किसी ख़ास मकसद से है और उसके ऊपर भी वह संयुक्त रूप से पूरे जीव जगत से भी जुड़ा है ।
कितने तारे हैं आसमान में । दूर अनजान सौरमण्डल से एक तारा कम हो जाए तो धरती पर किसी का जीवन प्रभावित हो सकता है , इसमे कोई आश्चर्य नही । किसी दिन चांद गायब हो जाए, सोचा है क्या होगा..? कहोगे -रात में अंधियारा होगा, और क्या..! नही समुद्र की लहरें गायब हो जाएंगी , महिला शायद नियमित रूप से गर्भधारण नही कर पायेगी , क्योंकि 28 दिन का गर्भाशय का चक्र चांद के परिक्रमा के आधार पर शरीर की जैव- पारिस्थितिकीय गणना के कारण तय होता है । दरअसल यही ecco system है । जिसे आप ईश्वर का दिया समझते हो । असल मे इसी का विस्तार ही तो पर्यावरण है । इसमे छेड़छाड़ आपका जीवन रोक देगी ।
कबीर कहते हैं –

“साईं को सीयत मास दस लागे, ठीक कर बिनी चदरिया।

सोई चादर सुन नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी के मैली किनी चदरिया।
दास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया ।।

परमात्मा को एक-एक चादर बनाने में दस महीने लग जाते हैं। एक माह उस गर्भ की तैयारी और नौ माह गर्भ में अर्थात परमात्मा को भी हमे निर्माण करने में दस माह का समय लगता है। क्योंकि जो निर्माण किया जा रहा है, वह इतना बहुमूल्य है! और हम अपने को कोई कीमत ही नहीं देते। परमात्मा पूरा अस्तित्व दस महीने हम पर खर्च करता है- हमें बनाने में। लेकिन हम अपना कोई मूल्य ही नहीं समझते। हम ऐसे जीते हैं जैसे निर्मूल्य हैं । हम दो चार पैसे में अपने को बेचने को तैयार रहते हैं । हमें पता ही नहीं कि कितनी बड़ी संपदा परमात्मा और प्रकृति ने हमे दी है । उसका कोई भी उपयोग नहीं हम नही कर पाते उल्टा हम भोगी लोग उसे ऐसे ही बरबाद कर देते हैं । कबीर ने यह बात सुर नर मुनि , भोगी त्यागी सन्यासी के संदर्भ में कही होगी लेकिन आज यही तो लोभी मानव का सच भी है ।

प्रकृति में चीजें एक दूसरे से कितनी जुड़ी हैं , हमे इसका अंदाजा नही । एक बार बसंत नही आए तो अगली बार पतझड़ नही आएगा तो फिर उसके बाद अगली बार बरसात नही आएगी । चीजें जैसी हैं उसे वैसे ही रहने दो यही पर्यावरण संतुलन है । विपरीत और दुश्मन भी प्रकृति का अंदर से हिस्सा है हमे पता नही एक पत्थर हटाएंगे उसके नीचे से क्या क्या मिट जाएगा । वृक्ष जमीन से मिट्टी को खींचता है और आपको एक आम एक केला एक नारियल दे देता है । वह मिट्टी को आपके लिए ट्रांसफार्म कर हमारे लिये फल बना देता है । उसके बीज को जीवन उसी मिट्टी ने दिया । उस वृक्ष ने हमे आक्सीजन दिया । उसी वृक्ष ने हमे फल दिया । उसी ने हमे वर्षा दी । असल मे सब के पीछे वह मिट्टी ही है । गर्मी नही आएगी तो वायुमंडल में हवा सुष्क नही होगी हवा शुष्क नही होगी तो उस वायु मंडल के वैक्यूम को भरने वाली नम हवा समुद्र से उड़कर नही आएगी , यही तो मानसून है ,और यह मानसून नाम की नमी के बादल नही आएगी तो हमारी धरती पर बरसात नही होगी ।

जो भी हम देख रहे हैं वह एक दूसरे से जुड़ा है । एक का नाश करने से पूरे प्रकृति या पर्यावरण का संतुलन बिगड़ेगा ।

आप बताइए , क्या पर्यावरण कोई पाठ है, कोई सरकारी चोचला है या आपका जीवन और उसकी सच्चाई ..

आज बस इतना ही…!

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