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दुनिया की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दावोस में चल रहा मंथन

दुनिया भर के महान नेता और ताकतवर हस्तियां स्विट्जरलैंड के खूबशूरत शहर दावोस में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की बैठक में जुटी हुई हैं. बैठक 5 दिन चलेगी और दुनिया की कई समस्याओं पर माथापच्ची की जाएगी. भारत से भी कई लोग इसमें शामिल हैं जिनकी संख्या 100 के करीब है और ये सभी चीफ एक्जिक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) स्तर के हैं. इस बैठक की खास बात यह है कि डब्ल्यूईएफ का जमावड़ा उस वक्त हुआ है जब दुनिया कई आर्थिक समस्याओं से जूझ रही है. इनमें एक ब्रेक्जिट मुद्दा भी है जिसमें ब्रिटेन यूरोपीय संघ से निकलने के लिए जद्दोजहद कर रहा है.

पिछली बैठक से तुलना करें तो पता चलैगा कि इस बार इसमें फीकापन ज्यादा है क्योंकि दुनिया के तमाम बड़े राष्ट्राध्यक्ष इस बार शामिल नहीं हैं. इनमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन की थेरेसा मे, फ्रांस के एमैनुअल मैक्रों और रूस के व्लादिमिर पुतिन के नाम हैं. माना जा रहा है कि बैठक में अगर टॉप नेता शामिल नहीं हैं, तो इसका सीधा संबंध बिगड़ती अर्थव्यवस्था से है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टिन लैगार्ड भी इन चुनौतियों की ओर इशारा कर रही हैं. अभी हाल में उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि अलग-अलग देशों की अलग-अलग चुनौतियां हैं लेकिन उसमें किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए और सभी को अपने-अपने रास्ते पर चलना चाहिए जिससे कोई टकराव नहीं हो.’ लैगार्ड की बातों से साफ है कि दुनिया के कई देश फिलहाल टकराव की मुद्रा में हैं जिसका असर विश्व के हर कोने में अर्थव्यवस्था पर देखा जा रहा है. तभी आईएमएफ ने अपने वृद्धि दर के अनुमान को फिर कम किया है. हालांकि आईएमएफ प्रमुख इतनी बड़ी चुनौतियों के बावजूद अपनी आशाएं कायम रख आगे बढ़ रही हैं.

ब्रेक्जिट और अमेरिकी शटडाउन को इसमें अहम मुद्दा मान सकते हैं. ब्रिटेन में जनमत संग्रह के बावजूद वहां की संसद में बहुमत सांसदों ने इस योजना को खारिज कर दिया है. प्रधानमंत्री थेरेसा मे प्लान बी के साथ तैयार हैं कि जैसे भी हो ब्रिटेन को ईयू से अलग करना है. दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ने खुलेआम कहा है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन काटे जाएंगे और उससे देश के खर्च का वहन किया जाएगा. वे अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए मैक्सिको से सटी दीवार बनाना चाहते हैं और इसके लिए आसपास के देशों से उन्हें आर्थिक मदद की जरूरत है. इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत जानी जा सकती है.

चुनौतियां हैं तो समाधान भी है. जैसा कि लैगार्ड ने कहा कि कायदे-कानून बनाने वालों के सामने इशारा साफ है. उन्हें मुद्दे निपटाने होंगे और यदि कोई नीचे की ओर ले जाने वाला गंभीर मुद्दा आता है तो अधिक लचीला और सहयोगी रुख अपना कर ही स्थिति सुधारी जा सकती है. लैगार्ड का यह भी मानना है कि इसके लिए सरकारों को ऊंचे स्तर के कर्ज को भी कम किया जाना चाहिए.

बैठक में जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति यू माउरर, जापान के शिंजो आबे, इटली के ग्यूसेप कांटे और इजराइल के बेंजामिन नेतान्याहू शामिल हैं. साथ ही दुनिया के कई सीईओ, केंद्रीय बैंकर, अर्थशास्त्री, मीडिया प्रमुख, सेलिब्रिटीज, आईएमएफ, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), ओईसीडी और विश्वबैंक प्रमुख सहित कुल 3,000 नुमाइंदे हिस्सा लेंगे.

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