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पंचायतों में महिलाओं की संख्यात्मक और गुणात्मक हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए : डाॅ. मनोज गुप्ता

 

— डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा जेण्डर संवेदनशीलता पर कार्यक्रम

 

मध्यप्रदेश। डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा जेण्डर संवेदनशीलता और संबंधित विषय पर आयोजित अकादमिक गतिविधियों के क्रम में 28 जुलाई को ‘पंचायती राज व्यवस्था में महिलाऐं‘ विषय पर बोलते हुए जेण्डर स्टडीज विभाग के डाॅ. मनोज गुप्ता ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक कोई भी कालखण्ड रहा हो प्रत्येक कालखण्ड में हमारी पहचान ग्रामों से रही है। पंचायती राज व्यवस्था यह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में भी उठाया गया कदम था। पंचायती राज में महिला भागीदारी भारतीय शासन व्यवस्था में महिला प्रतिनिधित्व संबंधी चिंतन का महत्वपूर्ण विचार बिन्दु है। 73वें संशोधन में महिलाओं के लिए आरक्षण के कारण सैद्धांतिक रूप से शक्ति महिलाओं के हाथों में आ गयी है। लेकिन जातीय संरचना, जेण्डर विभेद निर्णयकारी भूमिका को प्रभावित करती है। पितृसत्तात्मक अभ्यास जेण्डर परिप्रेक्ष्य में प्रभावित कर रहा है। सांस्कृतिक जड़ताऐ, पुरूषों पर निर्भरता महिलाओं की भूमिका को सकारात्मक रूप में परिलक्षित नहीं होने देती हैं। संशोधन अधिनियम ने स्थानीय निकायों को स्वयंशासी संस्थाओं के रूप में मान्यतायें प्रदान की जो यह दर्शाता है कि स्वशासन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जनता की भागीदारी अनिवार्य शर्त है। नीति नियामकों में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित की जानी चाहिए। गुणनात्मक विकेन्द्रीकरण के साथ गुणात्मक विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता है। जहां तक संभव हो महिलाओं को शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए। उपलब्ध संसाधनों एवं योजनाओं की जानकारी उपलब्ध करवाई जाए तभी वे ग्राम के लिए प्रभावशाली योजनाए बना सकेंगी व विभिन्न कार्यक्रमों के लक्ष्य तक पहुंच पांएगे।
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि पंचायतों में महिलाओं के राजनीतिक एवं सशक्तीकरण अभियान को गति मिली है। पंचायत स्तर पर इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी ने स्थानीय स्तर पर सामुदायिक जीवन और उनकी चेतना वह संस्कृति में भी परिवर्तन लाया है। यह देखा गया है कि नेतृत्व कौशल के साथ सत्ता में यदि महिलाएं होती हैं तो इसके दूरगामी प्रभाव होते है। लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि अभी भी सरपंच पति की संकल्पना समाप्त नहीं हुयी है। सामाजिक गैरबराबरी के बंधनों से इन्हें मुक्त किए जाने की आवश्यकता है। महिला जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। स्वागत उद्बोधन डाॅ. भरत भाटी द्वारा दिया गया एवं आभार कुसुम त्रिपाठी द्वारा किया गया।

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