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क्या किसान आन्दोलन देगा देश की सियासत को नई दिशा

– अब भाजपा नेताओं को घेरेंगे किसान
– गणतंत्र दिवस परेड की तैयारियां
जोरावर सिंह, सीहोर
दिल्ली। रविवार को किसान आन्दोलन का 39 वां दिन है। 39 दिन से किसान तीनों क्रषि कानूनों को रदद किये जाने की मांग को लेकर आन्दोलन कर रहे है। आन्दोलन में 55 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है। सोमवार को किसानों और सरकार के बीच फिर वार्ता होगी। इस वार्ता में क्या हल निकलेगा। यह तो बैठक के बाद ही पता चलेगा। पर किसानों ने आन्दोलन को आगे बढाने का मन बना लिया है, वहीं किसान नेताओं को भी राष्ट स्तर पर नई पहचान मिलती हुई नजर आ रही है। ऐसे में क्या यह किसान आन्दोलन देश की सियासत को नई दिशा देगा यह सवाल भी उठने लगा है।
अब किसान संगठनों ने एलान किया है कि आगामी 6 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकाला जाएगा, इसी के साथ 15 जनवरी तक भाजपा नेताओं का घेराव किया जाएगा। फिर 23 जनवरी को सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन तक राज्यपाल भवन तक मार्च निकाला जाएगा। आखिर में 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर किसान परेड मार्च होगा। जिसकी तैयारियां किसानों ने शुरू कर दी हैं। यदि सोमवार को होने वाली वार्ता में भी कोई हल नहीं निकलता है तो किसान आन्दोलन कई और राज्यो में अपनी जगह बना सकता है।
किसान आन्दोलन ने छेडी नई बहस
देश में इस समय चल रहे किसान आन्दोलन ने सियासत में नई बहस छेड दी है। इससे सत्ता पक्ष और विपक्ष के सामने नई चुनौतियां आ गई है। देश में किसानों की हालातों पर चर्चा चौक चौराहों तक पहुंच गई है। किसानों के कई मुददे उभरकर सामने आये है। इसमें चीनी मिलो को गन्ना बेचने वाले किसानों को समय पर भुगतान नहीं होना। किसानों को उनकी उपज के सही दाम नहीं मिलना, एमएसपी पर धान की खरीदी किसानों के पूरी उपज की नहीं हो पाना, मंडियों के हाशिए पर जाना सहित कई अन्य मुददे है, जो चर्चित हो गए है, अब सत्ता पक्ष और विपक्ष को इन मुददों की अनदेखी करना भारी पड सकता है।
एक जुट होने लगे किसान
केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन क्रषि कानूनों के बाद से किसान संगठनों में लंबे अर्से के बाद एकजुटता दिखाई दे रही है। किसान संयुक्त मोर्चे में करीब 40 किसान संगठन आ गए है, अभी तक देश में किसान संगठनों की बात की जाए तो वह अलग अलग सियासी दलों के साथ खडे हुए दिखाई देते रहे हैं। इसलिए देश में किसानों का बडा आन्दोलन नहीं हो सका। ज्यादातर किसान आन्दोलन राज्यों तक ही सीमित रहे, अब किसान भी संयुक्त मोर्चे की शक्ल में नजर आ रहे है। इसे सियासी गलियारों में नए मोर्चे के रूप में गिना जाने लगा है। यदि यह संयुक्त मोर्चा इसी तरह से मजबूत रहा तो आगामी सियासत को प्रभावित कर सकता है।
उभरते युवा किसान नेता
किसान आन्दोलन को सियासी तौर पर देखा जाए तो देश में करीब दो दशक से कोई भी किसान नेता राष्टघ्ीय स्तर पर नहीं उभर सका। किसान राजनीति किसी न किसी सियासी के सहारे ही अपनी बात रखती आ रही थी। इस किसान आन्दोलन से युवा किसान नेताओं को उभार मिल रहा है तो वहीं किसान नेता राकेश टिकैत, श्री चढूनी, योगेन्द्र यादव, शिवकुमार कक्काजी जैसे किसान नेताओं को भी राष्टीय स्तर पर एक नई पहचान मिलती हुई नजर आ रही है, इससे सियासी जानकारों का मानना है कि अब किसान संगठन मजबूत हो रहे है, वह अपनी बात सीधे सरकार के समक्ष रखने में सपफल हुए है, जो देश की सियासत में नया अध्याय जोड सकते हैं।
देश में बडा तबका है किसानों का
इस किसान आन्दोलन से नई बात निकलकर आ रही है। वह यह है कि अभी तक देश में किसानों पर भी सियासी विचार धाराओं का प्रभाव देखा गया, वह अपनी अपनी विचार धाराओं के हिसाब से सियासी दलों का समर्थन और विरोध करते रहे पर अभी तक इस किसान आन्दोलन में सभी विचार धाराओं का समावेश होकर एक नई विचार धारा आकार लेती हुई नजर आ रही है, वह है किसान विचारधारा, केवल किसानों के हितों की बात करना और देश में किसानों का बडा तबका है। देश की करीब 140 करोड आबादी में से 80 से 90 करोड की आबादी किसानों की मानी जाती है।
क्या बदलाव लाएगी किसानों की ताकत
किसान आन्दोलन जब शुरू हुआ था तब माना जा रहा थाए कि केवल पंजाब और हरियाणा के किसानों का आन्दोलन माना जा रहा था पर किसान आन्दोलन बढता गयाए अन्य राज्यों के किसान संगठन जुडते गए और सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के हाथ इस आन्दोलन से पिफसलते गएय आन्दोलन पर किसानों ने अपनी मजबूत पकड बना ली। किसान अपने मुददों के अगुआ खुद ही हो गए। अब देश के सियासी जानकारों का मानना है कि जिस तरह से समान विचार धाराओं के सियासी दलों के देश में सियासी गठबंधन हैए उसी तरह से किसानों के संगठनों का गठबंधन आगे बढ रहा है। इससे आगामी समय में किसानों की यह ताकत देश की सियासत में क्या बदलाव लाएगी। यह तो आगामी समय में ही पता चलेगा पर इस समय किसान सियासी दलों की चिंता बढाए हुए हैं।

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