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वो मुझको मारते थे और मेरी मर्जी के बिना पुरुषार्थ दिखाते थे, ये रोज दुष्कर्म जैसा ही था

 

भारत में घरलू हिंसा का शिकार हर दूसरी महिला है पर उनकी चुप्पी उस घर के पुरूष को समाज में महान बनाए रखती है। उम्र भर महिला अपने पति की प्रताडना बर्दास्त  कर अपनी गृहस्थी बचाए रखती है…जब भी कोई महिला अपनी जुबान खोलती है तो यह समाज सबसे पहले उसकी ही परीक्षा लेता है हजारो सवाल किए जाते है। पुरूष को जैसे पहले से क्लिीन चिट दे जाती है। सब कुछ बर्दास्त करने वाली महिलाएं कभी शिकायत नहीं कर पाती। बाकि जो है वो शोर है असली दर्द को बयां हुआ ही नहीं…। वो मुझको मारते थे और मेरी मर्जी के बिना पुरुषार्थ दिखाते थे, ये रोज दुष्कर्म होने जैसा ही था। यह वाक्य आकाश माथुर की किताब मी टू की पांचवीं कहानी रेखाजी.. की नायिका का दर्द को बयां करता है जो इस देश की अधिकांश महिलाएं सदियों से बर्दास्त कर रही है। पहले आप कहानी की समीक्षा पढे जिसे वरिष्ठ पत्रकार शैलेष तिवारी ने लिखा है। उसके बाद पूरी कहानी पढ़िए और एक महिला के दर्द को महसूस करने का कोशिश कीजिए।

 

  (कहानी समीक्षा रेखा जी..)

कहानी का नाम..जैसे किसी व्यक्तित्व का बखान..।कथानक पढ़ने से पहले ही बोझिल हो गया..लेकिन कहानी पढ़नी तो थी…समीक्षा के लिए..।
मन मसोस कर..शुरू किया पढ़ना..। कार्यशाला के आयोजन..से शुरुआत। लगा शायद भाषणों का जिक्र होगा..एक खबर की तरह लेकिन कथानक मे रवानगी आती है..प्रवाह गतिमान होता है… विचारों की लहरों मे बहने लगता है पाठक…। जब महिलाओं के हितों वाली कार्यशाला में एक महिला ही महिला विरोधी सवालों को पुरजोर तरीके से उठाती है..। काफी दिलचस्प मोड़ के साथ..आगे का जानने की इच्छा बलवती होती जाती है। जज साहब का उत्तर..कि..रेप के चालीस प्रतिशत प्रकरण..आपसी सहमति से बने संबंधों के बाद अपराध रजिस्टर मे दर्ज हुए..। परंतु सजा सुनाई जाना कानून सम्मत रहता है..। एक ही कृत्य में बराबर के शरीक… स्त्री पुरुष… एक वादी तो दूसरा प्रतिवादी.????? लगता है न अजीब?? अचंभित कर देता है… पुरुष का आरोपी सिद्ध हो जाना..। कानून खिलौना बन गया… ऐसी महिलाओं के लिए… जो आपसी सहमति को दुष्कृत्य साबित करवा रही हैं..। इस पेचिदगी को इशारों में कह जाने की कला आकाश की कलम का खास हुनर कहा जा सकता है।
कहानी जब आगे बढ़ती है तब जाकर रेखा से मुलाकात पार्किंग मे होना मानो बता रहा हो कि कहानी को असली सवारी यहीं से मिली है…। कुछ दिनों की मुलाकात में गणित की सीधी सरल रेखा किसी प्रमेय की तरह हल होती है..। नायिका रहस्य उद्घाटित करती है…अपने स्वर्गवासी पति की जबरजस्ती का…मदिरा पीकर जागे पौरुष के अहं का….जो पूज्यनीय नारी को अबला साबित करता है….हर रात..। और बिसरा देता है अपनी ही पत्नी के अस्तित्व को.. सुबह के उजालों में..। मानों रात के कृत्यों की कालिख मिटाने ही सूरज उगा हो..। कितनी रेखाएँ… जी रहीं हैं इस तरह का जीवन.. लेकिन घरेलू हिंसा विरोधी अधिनियम की शरण नहीं लेती…। सहती जा रही हैं…अनवरत…और शायद भविष्य मे भी यही होता रहे..। नहीं कह पाती कभी… #metoo… किसी से भी नहीं..। लेकिन कहानी स्वर है.. नारी रूपी उन साजों का… जो स्वस्फूर्त नहीं है। छोटा सा यह कथानक सागर की तरह अथाह गहराई वाला है.. विचारों की लहरों में ज्वार लाने का काम करता है..। अबला को सबला बनाने का हिमायती है। सीधे सरल शब्दों मे कहता है नारी के मन की उलझन वाली पीड़ा को…। कहानी पढियेगा… जरूर.. कुछ अपील करती है आपसे..।

    (कहानी रेखा जी..)

बात एक कार्यशाला की है। जो मी-टू की चर्चाओं के बाद आयोजित की गई थी। जहाँ कई प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश, समाजसेवी और अन्य वर्ग के लोग शामिल हुए। मैं वहाँ कवरेज के लिए गया था। जहाँ महिलाओं के साथ हो रहे शोषण को लेकर चर्चाएं हुई। वहाँ एक समाजसेवी महिला जो किसी महिलाओं को जागरूक करने वाली संस्था से जुड़ी थीं। महिलाओं के हक में बात नहीं कर रही थी, वो सवालों के जरिए विरोध कर रहीं थीं। बात महिलाओं के हक की थी, पर विरोध क्यों हो रहा था, समझ नहीं आ रहा था। मुझे कुछ बोलने का अधिकार नहीं था, इसलिए बस सुन रहा था। बात आगे बड़ी..कई बार मन किया कि ये जो मोहतरमा हैं, इनसे पूछ लूं कि यहाँ हक की बात हो रही है और ये विरोध क्यों कर रही हैं? पूरी कार्यशाला जो महिलाओं के लिए थी। जहाँ न्यायाधीशों से लोग खुल कर सवाल कर रहे थे। वहाँ एक महिला विरोधााभास के सवाल करती रहीं, लेकिन रोचक बात यह थी कि उन्हीं के सवालों से पूरी खबर बनी। कार्यशाला के अंत में उन्हीं के सवालों से कुछ सच भी सामने आए। वो पूछ रहीं थीं। वो..मेरे लिए तो  कार्यशाला खत्म होने तक वो ही थीं, पर आपको नाम बताता हूँ।
उनका नाम रेखा था। रेखा जी, क्योंकि वे उम्र के साथ तजुर्बे में भी मुझसे बहुत बड़ी थीं। उनकी समझ भी बहुत बड़ी थी। तो उनका एक सवाल जो उन्होंने न्यायाधीश से पूछा कि महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म जिनमें सजा भी होती है उनमें से कितने सही और कितने गलत होते हैं।
इस पर जज साहब ने गंभीरता से कहा कि जब कोई महिला आरोप लगाती है तो पुरुष आरोपी तो तब ही हो जाता है, लेकिन कई बार हमें पता होता है कि संबंध आपसी सहमति से बने हैं। फिर भी सजा सुनानी पड़ती है। ऐसे मामले 40 प्रतिशत से ज्यादा हैं, लेकिन 40 प्रतिशत मामले ऐसे भी हैं, जिनमें महिलाएं रोज शोषण का शिकार होती हैं। एक नशे में धुत आदमी, एक गाली गलोज और मारपीट करने वाला पति। अपनी पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाता है।
मामला बढ़ता गया। अब कार्यशाला वाद-विवाद  प्रतियोगिता जैसी दिख रही थी। मंच नहीं था। दो टेबल जिसके एक तरफ आठ लोग और दूसरी तरफ साठ लोग बैठे थे। कई बार माहौल ऐसा हो जाता था मानो कोई मर गया हो। फिर ऐसा लगता कि ये क्या हो रहा है। माहौल गर्म था। सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा। मेरे मन में कई बातें घर कर गई थीं। तभी मेरा ध्यान रेखा जी पर गया। जो शांत थीं, मानों वाद-विवाद प्रतियोगिता में वो हार गई हों। और ये हुआ तब था, जब जज साहब ने कहा था कि कई महिलाओं के साथ रोज उन्हीं के पति जबर्दस्ती करते हैं। मैं  रेखा जी और जज साहब दोनों से प्रभावित हो चुका था। मुझे ऐसे पहलू सुनने को मिल रहे थे। जिनके बारे में मैंने कभी सुना, समझा और यहाँ तक की उनके बारे में सोचा भी नहीं था। मैं दोनों से कार्यशाला के बाद मिलना चाहता था, लेकिन जज साहब तो जल्दी निकल गए। इसके तुरंत बाद में रेखा जी की तरफ मुड़ा वो वहाँ नहीं थीं। मैंने सोचा शायद वे भी चली गईं। मैं ऑफिस जाने के लिए पार्किंग की तरफ जाने लगा। देखा तो पार्किंग में रेखा जी खड़ी थीं। मैंने उनसे नमस्ते किया।  उन्होंने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया। मैंने कहा आपके सवाल बहुत अच्छे थे। इस पर वे मुस्कुराई। मैं चुप हो गया। मुझे लगा उनकी बात करने की इच्छा नहीं। मैं जाने ही वाला था कि उन्होंने पूछा‍‍ – आप कहा से हैं, मतलब किस संस्था से आए हैं। क्या नाम है आपका। मैंने कहा – मैं पत्रकार हूं। नाम आकाश है। मैंने
पूछा और आप। अच्छा कवरेज के लिए आए हैं। बहुत अच्छा। हमारी संस्था की खबरें भी आप प्रकाशित कर सकते हैं
क्या? मेरा नाम रेखा है और मैं महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था के लिए काम करती हूँ। मैंने कहा- बिलकुल आप सूचना दे दिया करें। मेरे मन में सवाल चल रहे थे। मैंने हिम्मत की और पूछ ही लिया कि आप महिला विरोधी बातें क्यों कर रहीं थीं?
इस पर वे मुस्कुराई और बोली आपको ऐसा लगा, पर मैं महिलाओं के हक की ही बात कर रही थी। आज कल महिलाएं पुरुर्षों पर गलत आरोप भी लगा रही हैं। ऐसे मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। जो शोषित और प्रताड़ित हैं। उनको न्याय नहीं मिल पा रहा। ऐसे मामलों में कुछ होना चाहिए, जो झूठे हैं। अब मुझे लगा कि मैं उन पर अगला सवाल दाग सकता हूँ। मैंने पूछ ही लिया कि शुस्र्आत में आप बहुत ज्यादा ऊर्जा के साथ बात कर रहीं थीं। सवाल पर सवाल दाग रहीं थीं। अचानक क्या हो गया था? मानो आपने हार मान ली हो।  यह सुनते ही वो फिर उदास हो गई।  मुझे लगा मैंने कुछ गलत पूछ लिया। मैं घबरा गया, लेकिन उन्होंने सहजता से जवाब दिया कुछ नहीं। उन्होंने मेरा नंबर लिया और चली गईं।
अब उनकी संस्था के आयोजन के लिए मेरे पास फोन आने लगे। कई आयोजनों में जाता भी था। उनकी संस्था स्वच्छता और महिला जागरुकता के लिए काम करती थी। उनकी संस्था के कई लोगों से मेरी अच्छी-खासी बात होने लगी थी। एक दिन उनके ऑफिस में काम करने वाले लोग और मैं उनकी संस्था के ऑफिस में निजी जिदंगी के बारे में बात कर रहे थे। तब मैंने रेखा जी से पूछा आपके परिवार में कौन-कौन है? तो उन्होंने बताया एक बेटी है।
मैंने पूछा – सर क्या करते हैं तो उन्होंने बताया वे नहीं रहे। मैंने दुख व्यक्त करते हुए सॉरी कहा। वो मुस्कुराई और बोली मुझे दुख नहीं है। वो कुछ देर चुप रहीं।
फिर बोलीं। आकाश तुमको याद है। मैं तुमने उस कार्यशाला में पहली बार मिली थी। तब तुमने मुझमे पूछा था कि मैं उदास क्यों हो गई थी।
मैंने कहा-  हम्म …
उन्होंने अपनी बात काे जारी रखा और बोलीं- दरअसल मेरे पति विनोद शादी के पांच साल बाद से बहुत शराब पीने लगे थे। वो मुझको मारते थे और मेरी मर्जी के बिना पुरुषार्थ दिखाते थे। वो शोषण जैसा ही था। रोज दुष्कर्म। मैं रोज रात वो सब सहन करती थी और सुबह उनको मुझसे कोई मतलब नहीं रहता था। मेरे साथ भी हुआ है। वो सब मैंने भी सहा है। मैं किससे कहूं। मी-टू। अब शांति थी, मैं समझ गया था कि मी-टू कहने वालों से ज्यादा सहने वाले हैं। जो चुप हैं कारण कई हैं।

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