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वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज ‘हिंदी में हस्ताक्षर’

-हिंदी में हस्ताक्षर को बनाया अभियान
-11लाख से अधिक ने अपनाया

      ( कीर्ति राणा )

 

तीन साल पहले जब हिंदी में हस्ताक्षर के लिए प्रेरित करने का अभियान डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ ने शुरु किया था तब साथ के कई मित्र पागलपंती कह कर मजाक उड़ाते थे।धुन के पक्के अर्पण लगे रहे, उद्देश्य पवित्र था इसलिए धीरे धीरे न सिर्फ हिंदी प्रेमी जुड़ते गए बल्कि गैर हिंदी भाषी और हिंदी के नाम से चिढ़ने वाले प्रदेशों में भी ‘हिंदी में हस्ताक्षर’ का प्रभावी असर पड़ा।इन तीन वर्षों में 400 शहरों में बैठकें, एक लाख किमी यात्रा और देश भर में सक्रिय एक हजार से अधिक हिंदी योद्धा के निस्वार्थ कार्य का ही असर रहा है कि अभी तक 11 लाख 23 हजार 882 लोगों के समर्थन पत्र संस्थान को प्राप्त हो गए हैं। इन सभी लोगों ने हिन्दी में हस्ताक्षर करने का प्रण भी लिया है।
विश्व के इस सबसे बड़े अभियान को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, लंदन ने भी विश्व कीर्तिमान माना है। मातृभाषा उन्नयन संस्थान को विश्व कीर्तिमान का प्रमाण पत्र जनवरी में दिल्ली में दिया जाएगा।
समाजवादी सांसद (स्व)डॉ राम मनोहर लोहिया ने सबसे पहले हिंदी में हस्ताक्षर का आह्वान किया था, जिसे बाद में डॉ वेदप्रताप वैदिक ने आगे बढ़ाया और अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी हस्ताक्षर का आह्वान किया। तीन साल पहले मातृभाषा उन्नयन संस्थान के बैनर तले डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ ने हिंदी में हस्ताक्षर के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया। 2017 में की गई मेहनत का असर बाद के दो सालों में नजर आने लगा।इस अभियान का असर यह हुआ कि पहले जो लोग बैंक से लेकर अन्य सरकारी कामकाज में अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते थे न सिर्फ हिंदी में हस्ताक्षर करने लगे हैं बल्कि संस्थान के अभियान का समर्थन करने के साथ प्रधानमंत्री से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का आग्रह भी कर चुके हैं।
पहले अंग्रेजी में साइन करने वाले अब करने लगे हिंदी में हस्ताक्षर
उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 3.50 लाख
मध्य प्रदेश में 2.85 लाख
राजस्थान में 1.62 लाख
दिल्ली एनसीआर 1.00 लाख
उत्तराखंड 65,800 हजार
कर्नाटक 55,000 हजार
केरल, सिलीगुड़ी 22000 हजार
तमिलनाडु 20000 हजार
झारखंड 12000 हजार
असम 3000 हजार

-कर्नाटक, कश्मीर में हिंदी के संकेतक लगाए जाने लगे लेकिन बंगलाभाषी को हिंदी से नहीं मोह

400 शहरों में बैठकें कर चुके डॉ अर्पण जैन और उनकी टीम को खट्टे मीठे अनुभव भी हुए हैं। आम धारणा है कि दक्षिण प्रदेशों में हिंदी से नफरत की जाती है लेकिन उनका अनुभव यह रहा कि इन प्रदेशों में तो लोगों को हिंदी की उपयोगिता समझ आने लगी है लेकिन बंगालीजन मातृभाषा के मोह से आसानी से मुक्त नहीं हो पाते। केरललऔर कश्मीर में पर्यटन वाले राज्य हैं यह बात समझाने का ही नतीजा रहा कि वहां बच्चों को हिंदी पढ़ाने के लिए न सिर्फ लोग राजी हुए हैं बल्कि क्षेत्रीय भाषा वाले संकेतक बोर्ड पर अब हिंदी को भी स्थान मिलने लगा है।
-तैयार किए एक हजार हिंदी योद्धा
अपने अभियान की शुरुआत गृह नगर इंदौर से करने वाले डॉ अर्पण जैन ने हरिद्वार में बाबा रामदेव के पंतजलि संस्थान में व्याख्यान दिया, नतीजा यह रहा कि बाबाजी के शिष्यों में से डेढ़ हजार हिंदी के प्रचार को तैयार हो गए।इसके साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में हिंदी के एक हजार योद्धा सक्रिय हैं जो लोगों को हिंदी का महत्व समझाते हैं और हिंदी में हस्ताक्षर के संकल्प पत्र भरवाते हैं। संस्थान के इस आंदोलन को देश की अन्य हिन्दी सेवी संस्थाओं का भी साथ मिल रहा है।कश्मीर में तो 10 हजार बच्चों को उनके अभिभावकों ने प्रथम विषय हिंदी दिलाने में तत्परता दिखाई। इस बदलाव पर 2017 में महबूबा मुफ्ती सरकार के वक्त वागीष हिंदी शिक्षा समिति और जम्मू कशमीर पर्यटन विभाग डॉ अर्पण जैन का सम्मान भी कर चुका दूसरी तरफ बंगाल में हिंदी के प्रचार के दौरान कई स्थानों पर उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा है।

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