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सरकार..मुन्नी का पिता भी भारतीय ही है,उसे कौन बचाएगा

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]ए.के माथूर[/mkd_highlight]

 

 

करीब 1 लाख 50 हजार अमीरों के बच्चों को एयर लिफ्ट किया गया। अच्छा किया। करना था। पाकिस्तान ने नहीं किया था तो हमने मजाक उड़ाया था। वहां के रोते हुए युवाओं के वीडियो वायरल किए थे।

यह सब कोरोना संक्रमण के दौरान ही हुआ। अमीरों के बच्चों को घर पहुंचने के बाद याद आया कि अब तो संक्रमण फैलेगा..और फैला भी, फिर लॉक डाउन किया। करना भी था देश को जो बचाना था।

इस लॉक डाउन ने गरीबों की मुश्किल बढ़ा दी। इतनी कि मौत भी छोटी हो गई। अभी कुछ और तो बताएं। मेरे प्रदेश के जो बच्चे दूसरे प्रदेशों में पढ़ने गए थे उन्हें लाया गया। यह सब सरकार कर रही थी। इसमें कोई बुराई नहीं..। वो फंसे थे, उन्हें घर लाना था। पर 12 साल की मुन्नी पैदल चल रही थी। छुटकी 15 साल की थी वो छोटे भाई को गोद में लिए पैदल चल रही थी।

उसके पिता ने घर का बोझ सर पर उठा रखा था और मां ने एक बहन को गोद में लिया हुआ था। कुछ सामान भी सिर पर लादे थी मां। ऐसे कई मासूम पैदल चल रहे थे। यह सबको रौनक संक्रमण को रोकने के दौरान हो रहा है। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन की घोषणा किए जाने के बाद से ही प्रवासी मज़दूरों के पलायन की ख़बरें सामने आती रही हैं।

ये उन्हीं की दास्तां है। क्या करोना को देश की सीमा पर नहीं रोका जा सकता था। कुछ लोगों की सहूलियत के लिए 135 करोड़ लोगों की जिंदगी मुहाल कर दी। खैर सिर्फ कोरोना ही नहीं आम परिस्थितियों में भी मुन्नी पैदल ही चलती है। मुन्नी मर भी जाती है..किसे परवाह है?

पलायन के इस दौर में कई लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर या साइकिल से भी अपने घरों तक पहुंच रहे हैं। हालांकि शहरों से गांव लौट रहे लोगों की मुश्किलें कम नहीं हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन में पैदल ही अपने घर का रुख करने वाली 12 साल की एक लड़की की मौत घर पहुंचने से पहले ही हो गई।

रिपोर्ट के मुताबिक, 12 साल की जमालो मडकाम करीब दो महीने पहले तेलंगाना में मिर्च की खेती में काम करने के लिए अपने रिश्तेदारों के साथ पहली बार घर से बाहर निकली थी, लेकिन ज़िंदा वापस नहीं लौटी। करीब 100 किमी पैदल चलने के बाद उसकी मौत गई।

अख़बार ने अधिकारियों के हवाले ले लिखा कि उसके साथ 13 अन्य लोग भी थे। 12 साल की लड़की लगातार तीन दिन तक पैदल चली और 18 अप्रैल को इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और थकान की वजह से छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में स्थित अपने घर से 11 किमी दूर उसने दम तौड दिया।

कितने ही लोग कोरोना संक्रामण से, लॉकडाउन में अपनी जान गवां रहे है,लेकिन कोई परवाह नहीं कर रहा है,सब अपी मस्ती है पुलिस को चकमा देकर घर आ गए, शहर में सन्नटा देख आए। दोस्तो से मिल आए। खुश तो बहुत हो गए तुम लेकिन क्या पता है तुम्हें कि तुम जानलेवा कोरोना को घर ले आए,तुम्हें जो होगा सो होगा। तुम्हारा परिवार भी मुसीबत में आ जाएगा। तुम्हारी ही वजह से लॉकडाउन बढेगा और फिर कोई मजदूर की बेटी दम तौड देगी…पर तुम्हें क्या?

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