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बंदूक रखी, साथ फुटबॉल खेला और गाना गाया:क्रिसमस पर जंग छोड़ जर्मन सेना के गले मिले थे ब्रिटिश सैनिक; रूस-यूक्रेन में नहीं बनी बात

यूक्रेन में 25 दिसंबर 2022 यानी क्रिसमस के दिन भी जंग जारी रहेगी। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अमेरिका के दौरे पर ही इसकी घोषणा कर दी थी। 22 दिसंबर को अमेरिकी संसद में भाषण देते हुए जेलेंस्की ने 1944 के क्रिसमस को याद किया।

जेलेंस्की ने कहा- जिस तरह सेकेंड वर्ल्ड वॉर में बहादुर अमेरिकी सैनिकों ने हिटलर की फौज को मुंहतोड़ जवाब दिया था, 77 साल बाद अब इस साल के क्रिसमस पर हम पुतिन की फौज को उसी अंदाज में कड़ा जवाब देंगे। उन्होंने अपने बयान में सेकेंड वर्ल्ड वॉर की ‘बैटल ऑफ बल्ज’ का भी जिक्र कर रहे थे। इस लड़ाई में खराब मौसम के चलते हिटलर की सेना को अमेरिका की सेना ने वापस भागने के लिए मजबूर कर दिया था।

हालांकि, युद्ध के दौरान ही क्रिसमस का एक ऐसा किस्सा भी है, जिसमें इस त्यौहार के दिन खून नहीं बहा था, बल्कि जंग के बीच भी खुशियां मनाई गई थीं। ये कहानी पहले विश्व युद्ध के शुरुआती साल 1914 की है। आइए आज क्रिसमस के दिन इस पूरे किस्से को जानते हैं…

कहानी को पढ़ने से पहले इस तस्वीर को देखिए…

1914 में क्रिसमस के दिन बेल्जियम में जंग रोक कर एक साथ समय बिता रहे जर्मनी और ब्रिटेन के सैनिक।
1914 में जंग के मैदान से निकली ‘क्रिसमस ट्रूस’ की कहानी
आज से 108 साल पहले फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में ब्रिटेन, फ्रांस और बेल्जियम की सेना जर्मनी के सैनिकों के खिलाफ जंग के मैदान में खड़ी थी। युद्ध शुरू हुए 4 महीने ही बीते थे कि वेस्टर्न फ्रंट पर लड़ाई थम गई।

इस युद्धविराम के लिए दोनों तरफ से किसी नेता या मिलिट्री के अफसरों ने बैठक नहीं की थी, बल्कि ठिठुरती ठंड के बीच टूटे बैरकों में खस्ता हाल रह रहे दोनों ओर के सैनिकों ने ही इस दिन खून-खराबा नहीं करने का तय किया था। इसलिए 24 दिसंबर की रात से ही दोनों तरफ से गोलीबारी रोक दी गई।

दुनिया भर में इस किस्से को याद किया जाता है, लेकिन किसी को नहीं पता कि इस ऐतिहासिक युद्ध विराम की शुरुआत कैसे हुई? किताबों में इसके शुरू होने और इसके खत्म होने से जुड़े कई किस्से हैं।

लंदन राइफल ब्रिगेड की पहली बटालियन के सैनिक बेल्जियम में क्रिसमस की शाम डिनर के बाद साथ बैठे थे। ये उसी वक्त की तस्वीर है।
लंदन राइफल ब्रिगेड की पहली बटालियन के सैनिक बेल्जियम में क्रिसमस की शाम डिनर के बाद साथ बैठे थे। ये उसी वक्त की तस्वीर है।
एक गाने के साथ हुई युद्ध विराम की शुरुआत
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि युद्ध विराम की शुरुआत क्रिसमस की शाम जर्मन सैनिकों के कैरल गाने के साथ हुई। दरअसल, क्रिसमस को मनाते हुए दुनियाभर के ईसाई कुछ गाने गाते हैं जिन्हें कैरल कहा जाता है।

लंदन की पांचवी राइफल ब्रिगेड के ग्राहम विलियम के मुताबिक पहले जर्मनी की तरफ से गाने की शुरुआत हुई, जिसके जवाब में हमने भी गाना शुरू कर दिया। फिर देखते ही देखते दोनों तरफ के सैनिकों ने अपनी-अपनी भाषा में एक सुर में क्रिसमस के गीत गाए।

अगले दिन क्रिसमस की सुबह जर्मनी के सैनिक अपने बैरकों से निकले और मित्र देश के सैनिकों को अंग्रेजी में ‘मेरी क्रिसमस’ कहते हुए बधाई दी और गले लगाया।

क्रिसमस के दिन का ही एक और किस्सा ये भी है कि 25 दिसंबर 1914 की सुबह जर्मनी की तरफ से एक साइन बोर्ड दिखाया गया। इस पर लिखा था, ‘तुम गोली मत चलाओ, हम भी गोली नहीं चलाएंगे।’

इसके बाद पूरे दिन दोनों तरफ के सैनिकों ने एक दूसरे को सिगरेट, खाना और टोपियां तोहफे में दी। इस दौरान उन सैनिकों का भी अंतिम संस्कार किया गया, जो युद्ध में मरने के बाद ‘नो मैन्स लैंड’ में पड़े हुए थे। दरअसल, ‘नो मैन्स लैंड’ जंग में दोनों तरफ के बैरकों के बीच के इलाके को कहते हैं।

तस्वीर में दिख रहा एक छोटा ब्रास का बटन जर्मनी के सैनिक ने क्रिसमस के दिन तोहफे में ब्रिटिश सैनिक को दिया था।
तस्वीर में दिख रहा एक छोटा ब्रास का बटन जर्मनी के सैनिक ने क्रिसमस के दिन तोहफे में ब्रिटिश सैनिक को दिया था।
क्रिसमस के दिन जर्मनी के नाई ने काटे ब्रिटिश सैनिकों के बाल
इस दिन को लेकर कई दिलचस्प किस्से हैं। उनमें एक ये भी है कि कुछ समय के लिए हुए युद्ध विराम का फायदा ब्रिटेन के एक सैनिक ने अपने बाल कटवाने के लिए उठाया था।

दरअसल जंग शुरू होने से पहले वो ब्रिटिश सिपाही एक जर्मनी के नाई से अपने बाल कटवाता था। दोनों देशों में जंग शुरू होने के बाद वह उस नाई से बाल नहीं कटवा पाया था। लेकिन, जैसे ही क्रिसमस वाले दिन लड़ाई कुछ समय के लिए थमी तो उसने झट से जर्मनी के उस नाई को बुलवाया और अपने बाल कटवाए।

दोनों तरफ के सैनिकों ने मिलकर ‘नो मैन्स लैंड’ में फुटबॉल भी जमकर खेला था। इसमें कई टीमें बनाई गई थी। हालांकि इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है कि ये टीमें किस आधार पर बनाई गईं थी।

1914 में क्रिसमस के दिन यह युद्ध विराम हर जगह नहीं हुआ था। टाइम्स मैग्जीन के मुताबिक इस बात के सबूत हैं कि दुनिया में कई जगहों में गोलीबारी जारी रही थी। इस दिन से जुड़े दो ऐसे मामले भी थे,जिसमें एक तरफ से युद्ध विराम की कोशिश की गई लेकिन सामने से दुश्मन सेना ने फायरिंग कर दी।

बस एक दिन के लिए क्रिसमस के मौके पर थमी थी जंगयुद्ध के बीच क्रिसमस की शाम को शुरू हुई शांति ज्यादा दिनों तक नहीं चली। कई जगह दोनों तरफ के सैनिकों ने अगले दिन ही हथियार उठा लिए। जबकि कई जगह यह शांति नए साल तक जारी रही ।

ब्लैक वॉच रेजिमेंट की पांचवीं बटालियन के एलफ्रेड एंडरसन ने द ऑब्जर्वर को बताया कि उस खतरनाक जंग के लिए वो शांति बहुत छोटी थी। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि कई बार युद्ध के बीच लड़ाई रुक जाती थी, लेकिन जो 1914 में क्रिसमस के दिन हुआ ऐसा कभी नहीं हुआ था।

ब्रिटिश सैकेंड कॉर्प्स के जनरल होरेस स्मिथ के मुताबिक कई जगह ‘नो मैन्स लैंड’ में करीब 100 फीट का ही एरिया होता था। ऐसे में ये कई दुश्मन देश के सैनिक क्या बात कर रहे हैं वो स्पष्ट सुनाई देता था। यहां तक की उनके खाने की खुशबू भी हमारे बैरकों तक पहुंच जाती थी।

तस्वीर में भारतीय जवान फ्रांस और जर्मनी के सैनिकों के साथ फूटबॉल मैच खेलते हुए।
तस्वीर में भारतीय जवान फ्रांस और जर्मनी के सैनिकों के साथ फूटबॉल मैच खेलते हुए।
क्रिसमस के दिन दुश्मन सैनिकों के साथ फुटबॉल खेलने वालों में भारतीय भी शामिल थे
फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौरान क्रिसमस के दिन जब जर्मनी और फ्रांस के सैनिक बंदूक रखकर फुटबॉल मैच खेल रहे थे, तो उस वक्त कई भारतीय जवान भी उसमें शामिल थे। ये बात ब्रिहिंगम सिटी यूनिवर्सिटी की रिसर्चर इस्लाम इस्सा ने कही है। दरअसल, इस्सा ने फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में मुस्लिम और भारतीयों के योगदान पर रिसर्च की है।

इस्सा को रिसर्च के वक्त एक तस्वीर मिली जिसमें बॉर्डर पर भारतीय सैनिक और ब्रिटिश रेजिमेंट के सैनिक एक दूसरे के खिलाफ मैच खेलते नजर आए। कई बच्चे और लोग इस मैच को देख रहे थे। इसके अलावा भारत के पेशावर निवासी निसार मुहम्मद खान की एक चिट्ठी भी मिली, जो उसने क्रिसमस के दो दिन बाद यानी 27 दिसंबर को अपने भाई को लिखी थी।

इस चिट्ठी में उसने बताया था कि कैसे कई दिनों से वह फुटबॉल मैच खेलने में व्यस्त था। इसकी वजह से उसे चिट्ठी लिखने का बिल्कुल समय नहीं मिल रहा था। इसके अलावा भी कई चिट्ठियां मिली थी, जिसमें भारतीय सैनिकों के मैच में शामिल होने की बात लिखी गई थी।

नो मैन्स लैंड में पड़े शवों को दफनाते हुए दोनों तरफ के सैनिक।
नो मैन्स लैंड में पड़े शवों को दफनाते हुए दोनों तरफ के सैनिक।
अब आखिर में सैकेंड वर्ल्ड वॉर के वक्त के उस ‘बैटल ऑफ बल्ज’ के किस्से को भी जानते हैं, जिसका जिक्र अमेरिकी संसद में यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने किया है….
16 दिसंबर 1944 की बात है। सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान जर्मनी की सेना ने दो देशों बेल्जियम और लक्जमबर्ग के बीच बसे ‘अर्देंनेस’ क्षेत्र पर हमला कर दिया। ये हिस्सा मित्र देशों की मुख्य सप्लाई लाइन हुआ करता था।

इसी वजह से हिटलर को लगता था कि इस हिस्से पर कब्जा होते ही अमेरिका और यूरोपीय देशों को जर्मनी के आगे हर हाल में झुकना पड़ेगा। नाजी हमले के वक्त मौसम खराब होने की वजह से अमेरिका और यूरोपीय देशों की एयरफोर्स हवाई हमले नहीं कर पा रही थी। जिसके कारण नाजR सैनिकों को जंग के मैदान में बढ़त मिलती रही।

अर्देंनेस के बड़े हिस्से पर जर्मनी की सेना ने कब्जा कर लिया, लेकिन वह यूरोप के देशों को जोड़ने वाली मुख्य सड़क तक पहुंचते इससे पहले उनका सामना अमेरिकी सेना से हुआ। 8 दिनों तक दोनों ओर से भीषण जंग हुई। इस जंग को ‘बैटल ऑफ बल्ज’ के नाम से जानते हैं। इस जंग में जर्मन सेना पूरी ताकत लगाने के बाद भी आगे नहीं बढ़ पा रही थी।

तभी 24 दिसंबर को यहां का मौसम साफ हो गया। अमेरिका और यूरोपीय देशों की एयरफोर्स ने जोरदार हमले करने शुरू कर दिए। ठंड के मारे थकी हुई जर्मन सेना के लिए अब हवाई हमले का सामना करना मुश्किल हो गया। जर्मनी की सेना को मित्र देशों के सामने घुटने टेकने पड़े। इस तरह एक बार फिर जंग में मौसम ने अहम भूमिका निभाई। अभी यूक्रेन में भारी ठंड है, ऐसे में जेलेंस्की को उम्मीद है कि मौसम उसका साथ देगा।

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