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नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ :चिंता ही नहीं शर्म का विषय

       (शालिनी रस्तोगी)
मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी,
यशोदा की हम-जिंस राधा की बेटी,
पयम्बर की उम्मत, जुलेखा की बेटी,
ये हिन्द की अस्मत, ये हिन्द की बेटी
उसे न किसी को उकसाना आता था न भावनाओं को भड़काना, उसका मासूम ज़िस्म न विरोध करना जानता था न अपना बचाव करना. उस मासूम के साथ हुई दरिंदगी को कभी छिपाने की कोशिश की गई, कभी उसके परिवार वालों को धमकाकर उनका मुँह बंद करने की, उसके उघडे ज़िस्म को सियासी जामा पहनाया गया तो कभी धार्मिक रंग देकर उसके लहू को छिपाया गया| कभी पुलिस ने लापरवाही दिखाई तो कभी कानून ने देर लगाई.  मासूम बेबस बच्ची को आखिर इंसाफ़ कहाँ मिल पाया? सिर्फ कुछ धरने, प्रदर्शन, कुछ बहस ….. पर क्या इस सबसे उन दरिंदों की वहशत रुकने का नाम ले रही है जो मासूम बच्चियों  न सिर्फ अपनी हवस का शिकार बना रहें हैं बल्कि उनकी क्रूरता पूर्वक हत्या भी कर रहे हैं|
जिस तीव्रता के साथ भारत में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं , वह चिंता ही नहीं शर्म का विषय है कि इन घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कोई प्रभावी कानून लागू नहीं किया जा रहा है| पुलिस की संवेदनहीनता व लापरवाही, मामले को सांप्रदायिक रंग देने की की कोशिशें, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के आधार पर इन अपराधों को देखना, तथाकथित रूप से सेक्युलर कहलाने वाली बड़ी बड़ी हस्तियों का इन अपराधों के प्रति दोगला रवैया वास्तव में इस समस्या की गंभीरता को और अधिक बड़ा रहा है| न्यूज़ चैनलों पर आरोपी की सज़ा को लेकर बड़ी बड़ी बहसें की जा रही हैं| मासूम बच्चियों के साथ हैवानियत की हद तक क्रूरता के साथ किए गए बलात्कार और शव को क्षत-विक्षत करने को जघन्यतम अपराध की श्रेणी में रखते हुए जहाँ एक ओर अपराधी को छह माह के भीतर फाँसी देने कि सज़ा की पैरवी की जा रही है, इस कानून को पारित करवाने के लिए ‘दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष अनशन पर बैठी हैं, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान सरकार ने अपने राज्यों में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले में फाँसी की सज़ा देने का विधेयक तैयार कर लिया है और अब इसपर कानून बनाने की तैयारी है वहीँ ‘हक़ – सेंटर फॉर चाइल्ड राईट’ की सहनिदेशक भारती अली का कहना है – “दुनिया के ज़्यादातर देश फाँसी की सज़ा पर रोक लगा रहे हैं| जो लोग बच्चियों के बलात्कार पर फाँसी की वक़ालत करते हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि रेप पर फाँसी होने पर हर दोषी रेप के बाद बच्ची की ह्त्या कर सकता है, इस तर्क पर ध्यान देने की ज़रूरत है|”
अलग-अलग देशों में बच्चियों के साथ रेप पर अलग-अलग सज़ाओं का प्रावधान है| मलेशिया में 30 साल की जेल और कोड़े मारने की सज़ा, सिंगापूर में 20 साल की जेल और कोड़े मारने की सज़ा, फिलीपींस में दोषी को बिना पैरोल के ४० साल की जेल, आस्ट्रेलिया में 15 से 20 साल की जेल, कनाडा में 14 साल, इंग्लैंड में 6 साल से लेकर आजीवन कारावास की सज़ा, जर्मनी में बलात्कार के बाद मौत पर उम्रकैद और सिर्फ बलात्कार के लिए 10 साल की जेल, दक्षिण अफ्रीका में अपराध की बारंबारता के अनुसार क्रमशः 15, 20 और 25 साल की जेल का प्रावधान है| न्यूज़ीलैंड में इस अपराध के लिए 20 साल की सज़ा दी जाती है| अमेरीका में पहले इस अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान था परन्तु बाद में इसे ख़त्म कर दिया गया| अमेरीका में अलग अलग राज्यों में अलग अलग सजाओं का प्रावधान है| चीन, नाईजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, यमन और सूडान में इस अपराध के लिए दोषी को फाँसी की सज़ा दी जाती है|
पिछले साल की शुरुआत में पूरे देश को झकझोर देने वाली जम्मू-कश्मीर के कठुआ में हुई रेप और मर्डर की घटना पर सोमवार 10 जून 2019 को  फैसला सुनाया गया. 8 साल की बच्ची के साथ रेप करने वाले कुल सात में से 6 आरोपियों को दोषी करार दिया है. इनमें से तीन को उम्रकैद और अन्य तीन को 5-5 साल की सजा सुनाई गई है| इस तरह की सज़ा अपराध कि जघन्यता को देखते हुए बहुत कम लगती है| इसी का नतीजा कि साल दर साल इन अपराधों की संख्या में कमी आने की अपेक्षा बढ़ोतरी ही हो रही है| यदि 2016 तक के आंकड़े देखे जाएँ तो हर साल इन अपराधों कि दर भयंकर गति से बढती नज़र आती है| 2016 में बलात्कार के 38947  केस दर्ज किए गए जिनमें से  520 मामले छह साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के थे तथा   1596  छह से बारह साल की बच्चियों के साथ  बलात्कार के| कुल मामलों में लगभग 43.2% अपराध नाबालिगों के साथ किए गए थे| इन आंकड़ों से समस्या की गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है|
भारत में जिस तीव्रता से इन अपराधों के आंकड़े और भयावहता बढ़ रही है उसको देखते हुए ऐसे अपराधियों के लिए कठोरतम सज़ा का कानून बनाना तथा उसे सम्पूर्ण देश में समान रूप से लागू करना आवश्यक है| ‘बलात्कारी बलात्कार के बाद छोटी बच्चियों को मार देंगे’ –   कब तक इन संभावनाओं से डर कर बलात्कारियों के रूप में वहशी दरिंदों को जीवनदान दिया जाता रहेगा, कहीं तो मन में डर पैदा करना पड़ेगा कि किसी वारदात को अंजाम देने से पहले अपराधी हज़ार बार सोचे.
                                                                                                                                                      (लेखिका साहित्यकार है।)

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