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अयोध्या की जमीन पर रामलाला का मालिकाना हक

— मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड जमीन दी
— राममंदिर का बनाया जाएगा ट्रस्ट्र
— मुस्लिम पक्ष के वकील कोर्ट के निर्णय से संतुष्ट नहीं

दिल्ली। अयोध्या भूमि विवाद प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवधनिक पीठ ने 1045 पन्नों का फैसला सुनाया है। फैसले के अनुसार विवादित भूमि पर मालिकाना हक ‘रामलला विराजमान को दिया गया है। अब इस भूति पर राममंदिर का निर्माण होगा। जिसका संचालन सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट्र करेगा। वहीं अयोध्या में ही मस्जीद बनाने के लिए अन्य जगह पर पांच एकड जमीन मुस्लिम पक्ष को देने के आदेश दिए है। कोर्ट के फैसले से मुस्लिम पक्ष वकील संतुष्ट नहीं है उन्होंने रिव्यू पीटीशन दयार करने की बात कही है। कोर्ट के फैसले को लेकर अब देश भर में शांति है और सभी ने फैसले का बडे दिल से स्वागत किया है। नेताओं, धर्मिक गुरू,समाजिक संगठनों और आम लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में कोर्ट के फैसले को सही देश हितेषी बताया है। इतिहासिक फैसला सुनाने वाली पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई अध्यक्ष, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर सदस्यगण शामिल हैं।

-क्या हो सकता है अब

सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ज़फरयाब जिलानी कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है उन्होंने कहा कि वह पूरा फैसला पढने के बाद रिव्यू पीटीशन दयार करेंगे। अगर एसा होता है तो रिव्यू पीटीशन पर सुनवाई अभी फैसला सुनाने वाली पीठ ही करेगी।रिव्यू पीटीशन पर सुनवाई खुली कोर्ट में न होकर बंद कमरे में होगी और पीटीशन दायर करने वाले पक्ष को नए तथ्य पेश करने होंगे,पुराने तथ्यों को सुनवाई में शामिल नहीं किया जाएगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि रिव्यू पीटीशन पर सुनवाई होना है या नहीं।

17 नवंबर को 2019 को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई सेवानिवृत्त हो रहे है। इससे पहले अगर किसी पक्ष ने रिव्यू पीटीशन दायर की तो प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई समेत अन्य सदस्यगण पीटीशन पर सुनवाई करेंगे। लेकिन 17 नवंबर के बाद पीटीशन लगाई जाती है तो फिर नए प्रधान न्यायाधीश निर्णय लेंगे कि सुनवाई करने वाली पीठ में रंजन गोगोई के स्थान पर कौन शामिल होगा।

चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, सो, यदि पुनर्विचार याचिका 17 नवंबर से पहले दाखिल कर दी जाती है, तो उस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ही सुनवाई करेगी, लेकिन यदि पेटिशन इसके बाद आती है, तो अगले चीफ जस्टिस तय करेंगे कि पेटिशन पर सुनवाई के लिए मौजूदा पीठ में जस्टिस रंजन गोगोई की जगह पांचवां जज कौन होगा?

— कब और कहां से शुरू हुआ था विवाद
साल 1946 में मामला गर्माया कि बाबरी मस्जिद पर किसका अधिकार है? कुछ लोगों ने दावा किया कि बाबर सुन्नी था,इस आधार पर मस्जिद सुन्नियों की मानी जाए। इसी बीच साल 1949 के जुलाई माह में प्रदेश सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने का कार्य शुरू किया गया। पर विवाद के चलते काम बंद करना पडा। इसी साल 22-23 दिसंबर की रात राम चबूतरे पर रखी गई राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां उस स्थान पर रखी दी गई जहां बाबरी मस्जिद निर्माण है। यही से विवाद बढ गया और सरकार को पूरे निर्माण और जमीन को अपने काब्जे में लेना पडा। कोर्ट के आदेश के बाद उस समय नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त किया इसके बाद मूर्तियों की पूजा और देख-रेख जिम्मेदारी भी उन्हीं को मिल गई। तब से ऐसा ही चल रहा था। लेकिन समय ने तनाव बढाया और मामला इलाहाबाद ​कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। लगभग 70 साल तक इस मामले में विवाद बना रहा है। ऐसा पूर्व प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंभा राव ने आपनी किताब में ‘अयोध्याः 6 दिसंबर 1992’ में लिखा और दावा किया है।

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