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पुत्र मोह में भाजपा को गड्डे में डाल दिया !
– फिर चाहे वो कैलाश विजयवर्गीय, थावरचंद गेहलोत या नए नवेले भाजपा नेता प्रेमचंद गुड्डू हों
(कीर्ति राणा )
भारतीय जनता पार्टी जो सरकार बनाने में 8 विधायकों की कमी से रह गई, उसमें पुत्र मोह से ग्रसित भाजपा के कद्दावर नेताओं का भी योगदान कम नहीं है। ये नेता अपने पुत्रों को जितवाने के चक्कर में इंदौर-उज्जैन संभाग की सीटों पर पार्टी के प्रत्याशियों को जितवाने में मदद ही नहीं कर पाए।यही नहीं दोनों संभागों में भाजपा के जो बागी खड़े थे उन तक को भी चुनाव मैदान से नहीं हटा पाए, पिछली बार 66 में से 57 सीटें भाजपा के पास थीं लेकिन इस बार उसे 35 सीटें ही मिली हैं। कांग्रेस को पिछले चुनाव में 9 ही सीटें मिली थीं जबकि इस बार 28 सीटों पर सफलता के साथ दोनों संभाग में जीते निर्दलीय भी उसके साथ हैं। नतीजा यह हुआ कि पार्टी सरकार बनाने से वंचित रह गई। भाजपा के आम कार्यकर्ता को पार्टी के बेदखल होने से ज्यादा दुख इस बात का है कि शिवराज अब कॉमन मेन हो गए।
चुनाव विश्लेषण में मैंने एकाधिक बार लिखा था जिसने मालवा-निमाड़ को रिझाया उस दल ने ही सत्ता सिंहासन पाया । भाजपा के लिए इस गढ़ को फतह कर पाना मुश्किल भी नहीं था पर जिन्हें यह दायित्व सौंपा मालवा-निमाड़ के वे प्रभारी पहले अपने पुत्रों को टिकट दिलाने और फिर उन्हें जिताने की मशक्कत में लग गए।भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को अमित शाह ने पं बंगाल का दायित्व सौंप रखा है लेकिन मप्र चुनाव के चलते उन्हें उनके देखेभाले मालवा निमाड़ की 66 सीटों पर अधिकाधिक सीटें फतह करने के काम पर लगा रखा था। चुनाव में जीत के लिए हर तरह के मैनेजमेंट में माहिर विजयवर्गीय भले ही अपने पुत्र आकाश के विधानसभा क्षेत्र में एक बार भी नहीं गए लेकिन वे आकाश की जीत के लिए जरूरी हर तरह के मैनेजमेंट में लगे रहे।उनके समर्थक, क्षेत्र के लोगों ने तीन नंबर में प्रचार के लिए जाने का अनुरोध भी किया लेकिन उनका जवाब था बच्चे को परीक्षा हॉल तक छोड़ना तो समझ आता है, परीक्षा तो उसे ही देने दो। वे तीन नंबर में नहीं गए लेकिन दोनों संभागों में भी अधिकाधिक सीटों पर सफलता की धुंआधार उपलब्धि उनके खाते में दर्ज नहीं हो पाई-यानी गढ़ आला पर सिंह गेला जैसे हालात का सामना करना पड़ा।
15 हजार से ना सही 5 हजार से ही सही विजयवर्गीय तो फिर भी अपने बेटे को जिता लाए, अमित शाह के सामने वो फिर भी तन के खड़े रह सकते हैं लेकिन एससी एसटी के कद्दावर नेता की हैसियत से मोदी की बगल में बैठने वाले केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत के बेटे जितेंद्र की आलोट में हुई शर्मनाक पराजय से उनका सारा आभा मंडल ही स्याह हो गया।जिस बलाई समाज के वो सर्वमान्य नेता माने जाते हैं उस समाज के सर्वाधिक वोट भी मनोज चांवला को मिले हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष से लेकर आरएसएस के सर्वे और प्रशासन की खुफिया रिपोर्ट में भी जितेंद्र गेहलोत की अपेक्षा किसी अन्य को टिकट देने पर सीट निकलने की संभावना बताई गई थी लेकिन पिछली बार की तरह इस बार भी शिवराज पर दबाव बनाने के साथ ही पार्टी आलाकमान से लड़ झगड़कर बेटे का टिकट ले आए। पिछले चुनाव में भी मनोहर ऊंटवाल का नाम घोषित हो गया था, उन्होंने कार्यालय का उद्घाटन भी कर दिया लेकिन बेटे जितेंद्र को यहीं से टिकट देने पर थावरचंद के अड़ जाने के कारण ऊंटवाल का क्षेत्र बदलना पड़ा था।
इस बार एट्रोसिटी एक्ट के विरोध का असर उज्जैन संभाग में तो था ही आलोट में तो केंद्रीय मंत्री द्वय प्रकाश जावड़ेकर और गेहलोत जब नवोदय विद्यालय के भूमिपूजन समारोह में आए थे तब एक्ट के विरोध में आलोट स्वैच्छा से पूर्णत: बंद रहा था। खुद उनके समाज के ही लोगों की लंबे समय से नाराजी इस बात को लेकर है कि सवर्ण समाज के प्रति जितनी सहृदयता दिखाते हैं उतना समाज के प्रति नहीं। विरोध में बहती ऐसी हवा के बाद भी बेटे को आलोट से टिकट दिलाना उनके राजनीतिक जीवन की बड़ी भूल साबित हुई। स्थानीय भाजपा नेतृत्व मानता है कि जितेंद्र को घटिया से ऊंटवाल को यहां से टिकट दिया होता तो दोनों सीटें निकल जातीं। गेहलोत पर अपने बेटे को नहीं जितवाने का ठप्पा ही नहीं लगा है इंदौर-उज्जैन संभाग की एससीएसटी बहुल सीटों पर भी पार्टी को मिली हार भी उनकी नाकामियों में ही शामिल हुई है। विजयवर्गीय के साथ उन्हें भी इन दोनों संभागों का दायित्व इसीलिए सौंपा गया था कि अजा जजा वर्ग वाली सीटों पर वे जादू दिखा सकेंगे लेकिन हुआ उल्टा ।
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गेहलोत का गुड्डू वाला गणित फेल, वो पाला बदल कर भी पुत्र को जितवा नहीं बनवा पाए
पुत्र मोह में उलझे तीसरे नेता-पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू का हाल तो और भी बुरा हुआ। ऐन चुनाव के चलते वो पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो गए थे।भाजपा को उम्मीद थी कि विजयवर्गीय और गेहलोत के संयुक्त प्रयासों से भगवा हुए गुड्डू के कारण इस वर्ग के वोटों की फसल काटना आसान हो जाएगा लेकिन गुड्डू भी अपने पुत्र अजीत को घट्टिया से नहीं जितवा सके।यह बात अलग है कि बोरासी को हराने वाले रामलाल मालवीय को मंत्री बनाने के कारणों में यह खासियत भी रेखांकित की जा रही है कि गुड्डू के बेटे को हराया है।उज्जैन जिले में तराना, घटिया और आलोट सीट भाजपा हारी है तो इन तीनों का ये पुत्र मोह भी बड़ा कारण है।
अब जब कि गुड्डू अपने बेटे तक को नहीं जितवा सके तो भाजपा का एक खेमा चिंतन कर रहा है कि उन्हें पार्टी में शामिल करने का निर्णय जल्दबाजी में तो नहीं लिया गया। दूसरी तरफ कांग्रेस के लगभग सभी गुट खुश हैं कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी पीसीजी ने हवा का रुख पहचानने में गलती कर अपने ही हाथों पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। गुड्डू के कांग्रेस छोड़ने की स्थितियां भी उज्जैन में सिंधिया की सभा के दौरान मंच पर भीड़ हटाने को लेकर बनी थी जब सिंधिया ने किसी को बास्टर्ड कह दिया था।
विजयवर्गीय-गेहलोत ने इस निर्णय के लिए पार्टी को राजी करते वक्त कारण तो यह गिनाए थे कि उज्जैन के अजा जजा वोट बैंक का फायदा मिलेगा जबकि असली मकसद आलोट सीट से गुड्डू की तैयारियों पर पानी फेर कर अपने बेटे जितेंद्र के लिए यह सीट सुरक्षित करना था। गुड्डू के पुत्र की घटिया में पेराशूट लैंडिंग भी इन्हीं दोनों नेताओं के कारण हुई। यह बात गौर करने लायक है कि बोरासी न भाजपा से जीत पाए और न ही पिछला चुनाव आलोट से बीफार्म पप्पू बोरासी के नाम जारी होने के बावजूद पप्पू काट कर अजीत का नाम लिखने के बाद वहां से जीत सके थे।
🔹2018 में 66 सीटें
भाजपा 35 । कांग्रेस+निर्दलीय 31
🔹2013 में भाजपा 56।कांग्रेस 10।
🔹2008 में भाजपा 40,कांग्रेस 25, निर्दलीय 01 जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)