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कविता: सूरज पर तम का पहरा है….

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शालिनी रस्तोगी[/mkd_highlight]

 

 

माना घनघोर अँधेरा है,

सूरज पर तम का पहरा है,

निराशा घन घनघोर बड़े

अवसाद ने डाला डेरा है……

पर कब तक आशा पुंज छिपेगा?

कब तक तम दम-ख़म भरेगा?

तम के गहरे गह्वर को चीर

कल फिर से सूरज चमकेगा,

अँधेरे से क्या डरना!!

जब तक जीवन है जीना है,

मौत से पहले क्या मरना !!!

कौन किसी को बना सका ..

जो कोई तुम्हें बनाएगा ?

जब बना न पाया कोई तो ..

कोई कैसे तुम्हें मिटाएगा?

तुम खुद अपने निर्माता हो,

खुद अपने भाग्य विधाता हो!

कर्म-डगर हो निडर चलो,

ईश्वर साथ तेरा देगा!

इन्सान के धोखे के कारण,

भगवान पर शंका क्यों करना?

जब तक जीवन है जीना है,

मौत से पहले क्या मरना !!!

तुम सोचो कितने अपने हैं,

उनके भी कितने सपने हैं,

तुम ज्योति कितने नयनों की

तुमसे वे दीपक जलने हैं!!

कलुषित कपटी इंसानों को

कुछ स्वनिर्मित भगवानों को

मत हक़ दो कि वे रौंदें आकर

सपनों के महल मकानों को |

कमजोर चलन वालों के सम्मुख

कमज़ोर इरादा क्या करना !

जब तक जीवन है जीना है,

मौत से पहले क्या मरना !

 

( लेखिका दिल्ली की साहित्यकार है )

 

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