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भाजपा छोडकर क्या गलती कर गए पंकज संघवी, जब से कांग्रेस में आए कोई चुनाव नहीं जीते

 

सुमित्रा महाजन की जीत को भी  पीछे छोड़ दिया लालवानी ने 

  (कीर्ति राणा)
भाजपा ने 17वीं लोकसभा के चुनाव में जिस तरह देश में जीत का रेकार्ड कायम किया लगभग उसी अंदाज में इंदौर संसदीय सीट से शंकर लालवानी ने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी पर जीत दर्ज कराई है।संघवी का यह पांचवा चुनाव था, इसमें भी वे बुरी तरह पराजित हुए हैं।लालवानी 5 लाख 47हजार 754 मतों से जीते हैं।लालवानी को कुल 1068569 मत मिले और संघवी को 520815 मिले।
उन्होंने आठ बार सांसद रहीं सुमित्रा महाजन से भी सर्वाधिक मतों से जीत का ऐसा कीर्तिमान बनाया है कि खुद लालवानी को आश्चर्य हो रहा था, खुद उन्हें इतने मतों से जीत की उम्मीद नहीं थी।आठवीं बार लड़े चुनाव में सुमित्रा महाजन कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण पटेल को हरा कर 4 लाख 66 हजार 901 मतों से जीती थीं।ताई को उस जीत में मिले मतों से लालवानी ने 79655 मत अधिक प्राप्त किए हैं।
कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले अपने भाई  प्रकाश को हराकर पार्षद बने थे लालवानी 
शंकर लालवानी की भाजपा में निरंतर सक्रियता  के कारण ही 1993 में उन्हें नगर भाजपा अध्यक्ष बनाया गया। 1996 में हुए नगर निगम चुनाव में कांग्रेस विधायक नंदलाल माटा के समर्थक प्रकाश लालवानी को कांग्रेस से टिकट दिया तो भाजपा ने भी प्रकाश के भाई शंकर को पार्षद का टिकट देकर सिंधी वोट में बिखराव रोकने की रणनीति पर काम किया था।तब वे अपने भाई और कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश लालवानी को हराकर पार्षद बने। बाद में वे नगर निगम सभापति और लगातार दो बार इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे।अभी जब उनका नाम फायनल हुआ तो भाई प्रकाश लालवानी कांग्रेस से इस्तीफा देकर उनके साथ सक्रिय हो गए थे।
भाजपा में रहते पंकज जीते थे पार्षद का चुनाव 
छात्र नेता के रूप में पहचान बना चुके पंकज संघवी 1983 में हुए नगर निगम चुनाव में भाजपा के टिकट पर पार्षद का चुनाव लड़े और जीते भी थे। बाद में जब उन्होंने अचानक कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया तब भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनके निवास पर प्रदर्शन कर गुस्सा भी जाहिर किया था।कांग्रेस में शामिल होने, प्रदेश में दिग्विजय सिंह और केंद्र में अर्जुनसिंह के मंत्री रहते संघवी परिवार के कारोबारी हितों, जमीन-कॉलोनियों के काम में चाहे जितना फायदा मिला हो लेकिन चुनाव मामले में तो कांग्रेस या तो उन्हें नहीं फली या पनौती साबित हुए।
कांग्रेस में शामिल हुए पंकज पर पांचवीं बार भरोसा करते हुए उन्हें इस बार लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था लेकिन कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी से अधिक मोदी लहर के असर ने उनका जीत का सपना चकनाचूर कर दिया।इससे पहले भी वे सांसद का, दो बार विधायक और एक बार महापौर का चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर लड़ कर हार चुके हैं।
समानांतर टीम से रहती थी नेताओं की नाराजी
इससे पहले पंकज ने जितने भी चुनाव लड़े संघवी परिवार की समानांतर टीम भी काम करती थी। तब इसे लेकर कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रपों की नाराजी भी रहती थी क्योंकि अधिकांश कांग्रेस नेताओं और उनके समर्थकों को लगता था ये पेरेलल टीम उनके काम पर नजर रखने का काम अधिक करती है।इस बार जब पंकज का नाम फायनल होने के बाद पहली बैठक हुई तो दोनों मंत्रियों सहित अन्य बड़े नेताओं ने पहली शर्त ही यह रखी कि पेरेलल टीम काम नहीं करेगी और चुनाव संचालन हमारे हाथों में होगा।जो जीतू पटवारी चुनाव की कमान अपने हाथों में रखे हुए थे खुद उनके विधानसभा क्षेत्र सहित उनके बूथ तक पर कांग्रेस की शर्मनाक स्थिति रही है।पिछले चुनाव में पटवारी से पराजित रहे जीतू जिराती ने भाजपा के पक्ष में मतदान करा के उस हार के सारे हिसाब चुकता कर लिए हैं पटवारी से।दूसरे मंत्री तुलसी सिलावट भी सांवेर क्षेत्र से लालवानी को मिले 67 हजार मतों का ऊपर तक शायद ही जवाब दे सकें।भाजपा के डॉ राजेश सोनकर से वो तीन हजार मतों से ही जीते थे।हाथ से जाती इस सीट को रोकने के लिए भाजपा ने सावन सोनकर को सांवेर में सक्रियता बढ़ाने के निर्देश दिए थे।यही कारण रहा कि मात्र छह माह में सावन सोनकर ने भिड़ कर ऐसा काम किया कि लालवानी को करीब 67 हजार मत तब मिले जब इस क्षेत्र में इस दौरान मतदाता भी बढ़ गए थे।
तब महापौर चुनाव में हुई पंकज की पराजय और समर्थकों का दावा  
महापौर चुनाव में पंकज का सामना भाजपा प्रत्याशी कृष्णमुरारी मोघे से था।उस चुनाव में बहुत कम मतों से संघवी की हार को लेकर आज भी मीडिया कक्ष में उनके समर्थक यह कहते रहे कि उस चुनाव में तो जीत हो ही गई थी। तत्कालीन कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव ने अंतिम समय में मतगणना क्षेत्र में लाठीचार्ज करवा कर अफरा तफरी की ऐसी स्थिति निर्मित करा दी कि मतगणना टेबलों पर रखी मतपत्र की गड्डियों में गड़बड़ी करने का समय मिल गया।पंकज मतगणना में आगे चल रहे थे लेकिन देर रात घोषित परिणाम में मोघे की जीत घोषित कर दी गई।
उधर बिखरा बिखरा तो इधर व्यवस्थित प्रचार 
हार जीत की समीक्षा में कई छोटी बातें भी महत्वपूर्ण हो जाती है।लालवानी का प्रचार देख रहे सुनील अग्रवाल के खाते में भी यह दूसरी सफलता दर्ज हुई है। इससे पहले विधायक संजय शुक्ला का प्रचार संभाला था।लालवानी  का प्रचार काम जितना व्यवस्थित रहा उतना पंकज का नहीं था। चाहे नियमित होने वाली प्रेस कांफ्रेंस हो या कांग्रेस द्वारा जारी किया जाने वाला संकल्प पत्र कई बार तो खुद चुनाव संचालक या प्रचार कार्य देखने वाले तक को पता नहीं होता था कि किसे क्या करना है।लालवानी की ऐतिहासिक मतों से जीत के जब कारण तलाशे जाएंगे तो यह बिंदु भी महत्वपूर्ण माना जाए

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