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रोके जाने से पहले मेरी अमरनाथ यात्रा….

 (कीर्ति राणा)

हजारों फीट गहरी खाई वाले कच्चे-पथरीले रास्तों पर बिल्कुल किनारे किनारे जब खच्चर अपने आड़े तिरछे पैर बाबा अमरनाथ की गुफा वाले रास्ते पर आगे बढ़ाते चलता है तो सवारी यह भी नहीं देख पाती कि उदय होते सूरज की पहली किरणें दोनों तरफ आसमान छूते बर्फ की चादर ओढ़े पहाड़ों पर कैसा सौंदर्य बिखेर रही हैं।मजबूत हाथों से पकड़ी काठी के साथ ही आंखें तो जमी रहती हैं खच्चर की कदमताल पर और मन में धुकधुकी बनी रहती है कि खाई के एकदम किनारे चल रहे खच्चर के पैर का दबाव इतना अधिक ना हो जाए कि मिट्टी खिसकने पर सीधे खाई में समा जाएं।
जिस तरह ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक के पहाड़ों वालें सर्पीले मार्ग में बस ड्राईवर की कुशलता की कामना करते हुए यात्री जान की खैरियत के लिए भय में जयकारे लगाते हुए भगवान को याद करते रहते हैं वही हाल चंदनवाड़ी से गुफा मार्ग तक घोड़े से यात्रा करने वाले हजारों श्रद्धालुओं का रहता है।
पहाड़ चाहे केदारनाथ के हों, अमरनाथ के या हिल्स क्वीन कही जाने वाली शिमला के ही हों-ये पहाड़ बिना बोले समझाते रहते हैं कि जिसने झुक कर चलना सीख लिया शिखर उसी का अभिनंदन करते हैं।जब अमरनाथ के दर्शन की आतुरता गुफा के सामने पहुंचकर शांत होती है तो विश्वास नहीं होता कि हम यहां तक पहुंच गए हैं । जब दर्शन कर नीचे लौटते हैं तो बालटाल के रास्तों पर चलते हुए अचरज ही होता है कि हम इतनी चुनौतीपूर्ण यात्रा कर के सकुशल आ गए हैं क्योंकि मौसम खराब होने, पहाड़ धंसने या घोडे़ सहित यात्रियों के खाई में गिरने की घटनाएं तो अकसर होते रहती हैं।
मोह माया के बोझ वाली गठरी उठाकर चलने वाले तो पहाड़ी रास्तों पर चल नहीं सकते शायद इसीलिए बाबा अमरनाथ के दर्शन को निकलने वाले श्रद्धालुओं के जत्थे अपने साथ एक पिट्टू बैग (शोल्डर बेग) से ज्यादा सामान ले जाने की सोच भी नहीं पाते।कितना अजीब है कि पहाड़ हमें सिखाते हैं कि परिग्रह से बचो और हम हैं कि जब ऐसी तीर्थ यात्राओं से लौटते हैं तो शॉपिंग वाले सामान का बोझ बढ़ जाता है।
इस बार एक जुलाई से शुरु हुई अमरनाथ यात्रा 15 अगस्त को छड़ी मुबारक के साथ संपन्न होगी(अनुच्छेद 370 हटाने की कार्रवाई के चलते यात्रियों-पर्यटकों को 4अगस्त से ही बाहर जाने को कह दिया गया था)।अमरनाथ की यह 45दिनी यात्रा एक तरह से देवाधिदेव महादेव का बारात उत्सव माना जाता है यही वजह है कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के अनेक सेवा संगठन यात्रा अवधि में लंगर सेवा के माध्यम से लाखों लाख श्रद्धालुओं को पहलगाम, बालटाल से लेकर गुफा मार्ग वाले पहाड़ी रास्तों पर सुस्वादु भोजन प्रसाद ग्रहण करने के लिए मिन्नत करते नजर आते हैं। अमरनाथ यात्रा में खूब लंगर सेवा होती है यह सुना तो सबने है लेकिन सेवा के इस पवित्र भाव को समझ वही सकते हैं जो यात्रा पर गए हैं।लंगर लगाने वाली समितियों के लोग अपना व्यापार धंधा छोड़कर पैतालिस दिन जुटे रहते हैं बाबा की बारात में आए लाखों बारातियों की सेवा में। बरनाला (पंजाब) की शिव सेवा समिति का लंगर बालटाल रोड (पुल के पीछे) पर संचालित करने वालों में से एक कैटरर किशन जी (राजू भाई) बताते हैं लंगर का यह पच्चीसवां वर्ष है।हर रोज सुबह शाम तीन चार तरह की मिठाइयां तो प्मिरसाद में रहती ही हैं । लंगर में सबसे पहले बेकरी मशीन लगाने की शुरुआत भी इसी लंगर से हुई है।(मेरी अमरनाथ यात्रा 11से 21जुलाई के बीच हुई।)
बालटाल रोड पर विभिन्न प्रदेशों के जितने भी संगठनों के लंगर लगते हैं इनमें सजावट और भोजन के मैन्यू को लेकर भी होड़ सी लगी रहती है।महंगी शादियों में जिस तरह चार पांच प्रकार की मिठाइयां, सूप, चाऊमिन, गाजर का हलवा, इडली-वड़ा सांभर-दोसा, केशर का दूध-जलेबी, आईस्क्रीम से लेकर पान, मुखवास, चॉकलेट-टॉफी-संतरा गोली आदि खानपान का इंतजाम रहता है लगभग वही सारे दृश्य यहां देख कर श्रद्धालु भौंचक रह जाते हैं।समतल मैदान वाले पहलगाम, बालटाल की ही तरह हजारों किमी ऊपर पहाड़ों पर भी लंगर में ऐसी ही सारी व्यवस्था देखी जा सकती है। इन मैदानी क्षेत्रों में तो सारा सामान ट्रकों से पहुंचाया जा सकता है लेकिन ऊपर पहाड़ों पर तो गैस सिलेंडर तक खच्चर पर या कंधों पर कुली लेकर जाते हैं।ऊंचाई पर जहां पानी की एक बोतल पचास रु में मिलती हो ऐसे में वर्षों से संचालित किए जा रहे लंगरों के ये सारे इंतजाम बरबस ही इन संगठनों का सेवाभाव दिल जीत लेता है।
लंगर हैं यात्रियों के लिए, खच्चर वाले प्रतिबंधित
यात्रा मार्ग में भले ही ‘भूखे को रोटी, प्यासे को पानी, जय बाबा बर्फानी’ के जयकारे गूंजते हों, इस आशय के होर्डिंग्ज लंगर वाले टैंट पर नजर आते हों लेकिन यहां भोजन-प्रसाद सिर्फ यात्रियों के लिए ही रहता है। खच्चरवाले यात्रियों को इन लंगरों के आसपास उतार देते हैं, वे इन लंगरों में जा नहीं सकते। इस द्वेषभाव की वजह है बीते वर्षों में लंगर संचालकों और खच्चरवालों के बीच हुआ हिंसक संघर्ष। उस घटना के बाद से लंगर संचालक इस सख्ती के लिए मजबूर हुए हैं। फिर कुछ इन खच्चर वालों, सामान ढोने वालों (पिट्ठू) की मजहबी मान्यताएं भी कि दूसरे मजहब का नमक नहीं खाना। यही वजह रही कि यात्रियों द्वारा मिठाई आदि देने पर तो ये सहज स्वीकार कर लेते हैं लेकिन भोजन आदि नहीं।
इस बार की अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा व्यवस्थाओं से देश भर से आने वाले श्रद्धालु जितने खुश हैं उतने ही नाराज इस राज्य के रहवासी हैं।कारण यह कि जब यात्रियों की बसों का काफिला जम्मू से पहलगाम के लिए मुख्य मार्गों से निकलता है तब बाकी वाहनों के लिए रास्ते सील करने के साथ ही उस क्षेत्र में कर्फ्यू जैसी सख्ती रहती है।राज्य में पिछले वर्ष की यात्रा महबूबा मुफ्ती सरकार की देखरेख में हुई थी और अब राष्ट्रपति शासन के चलते राज्यपाल की देखरेख में हो रही है-इस एक वर्ष में क्या फर्क आया है इसे राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों की इस बैचेनी से समझा जा सकता है।आतंकी गतिविधियों पर सख्ती और यात्रियों के जानमाल की हिफाजत के लिहाज से राज्य और केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों ने जो सख्त रुख अपना रखा है वह यह भी दर्शा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के जम्मू कश्मीर दौरे के बाद तमाम एजेंसियों के लिए श्रद्धालुओं की हिफाजत पहली प्राथमिकता है।एक जुलाई से शुरु हुई यात्रा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को भी यह अहसास होता रहता है कि पुलवामा अटैक के दौरान की अपनी खामियों से इंटलीजेंस एजेंसियों ने भी सबक लिया है।
सरकार के इस रवैये का स्थानीय स्तर पर यह कह कर विरोध किया जा रहा है कि 45 दिन चलने वाली अमरनाथ यात्रा के कारण राज्य में कारोबार-आर्थिक गतिविधियां ठप्प सी रहेंगी।पहलगाम से चंदनवाड़ी के लिए श्रद्धालुओं के जत्थे को जीप से ले जाने वाले वाहिद को इस बात की खुशी है कि बीते तीन साल की अपेक्षा इस चौथे साल में यात्रियों की संख्या अधिक है। वह टैक्सी स्टैंड से लगभग तीर की गति में मात्र 19 मिनट में जीप चंदनवाड़ी तक पहुंचाने के कारण सुबह दस बजे तक दस से अधिक फेरे लगा लेता है।टैक्सी स्टैंड पर ही अपना नंबर आने का इंतजार कर रहा जीप चालक इश्तियाक खान यात्रियों की संख्या बढ़ने का तो समर्थन करता है लेकिन इस बार की सख्ती से नाखुश इसलिए है कि जम्मू में उसके अब्बा (बशीर साड़ी एम्पोरियम) का कारोबार थम सा गया है। सशस्त्र आर्मी जवानों की निगरानी में जब यात्री बसों का काफिला पहलगाम के लिए रवाना होता है तो उसके एक-डेढ़ घंटे पहले से मार्गों-गलियों पर नाकेबंदी कर दी जाती है।स्थानीय वाहन तो ठीक वहां के रहवासी भी तब तक सड़क पार नहीं कर सकते जब तक सिग्नल ना मिल जाए।सुबह से लेकर दोपहर बाद तक ऐसी स्थिति कई बार बनने से लोगों के झुंड की तरह ही बड़े-छोटे दुकानदार बिजनेस ठप्प हो जाने के कारण इस काफिले को गुजरते देखते रहते हैं।
गुरुवार को इम्तियाज वानी नामक युवक के इस ट्टिवट पर जम्मू कश्मीर पुलिस को सफाई देनी पड़ी कि जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर पिता का शव लेकर जा रहे शव वाहन को रोके जाने पर ट्विट करते हुए इस युवक ने लिखा था कि कानवाय और सुरक्षा कारणों के चलते उसके पिता के शव को ले जाने से रोक दिया गया।पुलिस ने सफाई दी है कि हकीकत यह है कि टिकरी के पास यूपी नंबर की एक एंबुलेंस कानवाय में घुसने की कोशिश कर रही थी जिसकी कानवाय कमांडर ने अनुमति नहीं दी।
निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में अमरनाथ यात्रा की यह सफलता, बेहतर सुरक्षा इंतजाम आदि भाजपा के लिए फायदेमंद भी साबित होंगे।और यह भी संयोग ही है कि यात्रा शुरु होने के बाद से अब तक ऐसी कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा भी नहीं हुई है कि एक से अधिक दिन यात्रा रोकना पड़ी हो।इस साल अभी तक मौसम भी यात्रा में बाधक नहीं बना है।यही कारण है कि पहलगाम और बालटाल दोनों यात्रा मार्गों पर हर दिन जय भोले, बोल बम, बाबा बर्फानी के जयकारे गूंज रहे हैं।

— चार साल में सर्वाधिक यात्री रहे इस बार
— एक जुलाई 19 से यात्रा शुरु हुई और समापन 15 अगस्त को छड़ी मुबारक यात्रा के साथ होगा।
— 2019से 16 (इन चार साल) में सर्वाधिक यात्री इस वर्ष आए हैं।
—18 जुलाई तक 2 लाख 32 हजार 860 यात्री दर्शन कर चुके हैं।
— 2018 में 45 दिनी यात्रा में 2लाख 85 हजार 006 श्रद्धालु बाबा के दर्शन को आए थे ।
—2017 में 2 लाख 60 हजार 003 यात्री अमरनाथ गुफा पहुंचे थे।
—2016 में 3 लाख 20हजार 490 ने यात्रा की थी।
7 2015 में सर्वाधिक 3 लाख 52 हजार 771 श्रद्धालुओं ने 45 दिन में बाबा के दर्शन किए थे।

— लाचार नजर आता है श्राइन बोर्ड

बाबा अमरनाथ के दर्शन को आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए बेहतर इंतजाम के मामले में अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने इस साल भी प्रबंधों में तो कोई कमी नहीं रखी लेकिन घोड़ों, पालकी, टैंट के किराया निर्धारण में अमरनाथ श्राइन बोर्ड की लाचारी साफ नजर आती है।यही नहीं यात्रियों और घोड़ेवालों के बीच विवाद की स्थिति बनने के मामलों में जम्मू पुलिस प्रशासन का रुख भी निष्पक्ष नहीं रहता या यूं कहें कि यात्रा मार्ग में तैनात सुरक्षाकर्मी इनसे विवाद में उलझना नहीं चाहते।यात्रा के लिए घोड़ा, पालकी का किराया तय जरूर किया है लेकिन इसका पालन हो भी रहा है या नहीं इसकी चिंता नहीं की जाती।

—यह है सरकारी किराया दर

गुफा तक जाने से लेकर वापसी के लिए सामान उठाने के लिए कुली -1650।
बालटाल से गुफा और वापसी के लिए खच्चर/ घोड़ा – 2800
गुफा और वापसी के लिए पालकी – 8500
बालटाल से बारीमार्ग के लिए कुली-700
बालटाल से बारीमार्ग के लिए घोड़ा/खच्चर- 1000
बालटाल से संगम के लिए कुली- 1000
बालटाल से संगम के लिए घोड़ा/ खच्चा- 1200
बालटाल से पंचतरणी के लिए कुली-1200
बालटाल से पंचतरण के लिए घोड़ा और खच्चर- 1450

—हेलीकॉप्टर सेवा और सस्ती हो

श्री अमरनाथ यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर टिकट की ऑनलाइन बुकिंग यात्रा के पहले दिन एक मई से सुबह दस बजे से शुरू हो जाती है । श्री अमरनाथ यात्रा श्राइन बोर्ड ने नीलग्राथ (बालटाल)-पंजतरणी-बालटाल सेक्टर के लिए हेलीकॉप्टर सेवा के लिए एमएस ग्लोबल वेक्ट्रा हेलिकॉर्प लिमिटेड और एमएस हिमालयन हेली सर्विसेज लिमिटेड और पहलगाम-पंजतरणी-पहलगाम सेक्टर के लिए एमएस यू टेयर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ व्यवस्था की है। नीलग्राथ (बालटाल)-पंजतरणी-बालटाल सेक्टर के लिए एकतरफ का किराया 1804 रुपये प्रति यात्री निर्धारित किया गया है, जबकि पहलगाम-पंजतरणी मार्ग के लिए किराया 3104 रुपये है।इस सेवा में वृद्धि के साथ ही बोर्ड को यात्री किराए में कमी के संबंध में भी प्रयास करना चाहिए।हेलीकॉप्टर सेवा किराए में कमी का असर लोगों को इस सेवा का अधिक लाभ लेने के लिए भी प्रेरित करेगा। जहां जहां रात्रिविश्राम की व्यवस्था टैंटों में है वहां जमीन पर गद्दों वाली व्यवस्था प्रति यात्री 600 और पलंग 650रु किराया निर्धारित है लेकिन गुफा वाले मार्ग पर डेढ़ सौ रु तक में सोने की जगह मिल जाती है।
-सुरक्षा में लगे जवानों का सेवाभाव
यात्रा मार्ग पर लगभग हर सौ कदम पर सीआरपीएफ के सशस्त्र जवान तैनात हैं। गुफा मार्ग तक वाली पहाड़ियों पर बने बंकरों और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात जवानों को देखा जा सकता है। संकरे रास्तों पर खच्चर वालों की मनमानी से परेशान होने वाले पैदलयात्रियों के लिए कभी इन्हें डपटते तो कभी जय भोले का उदघोष कर यात्रियों का उत्साह बढ़ाते भी देखा जा सकता है।
-आंसू निकल पड़ते हैं खुशी के मारे
पहाड़ी रास्तों पर सारे संकट पार करके जब श्रद्धालु गुफा के सामने पहुंचते हैं तो लोहे की जालियों के उस पार बूंद बूंद पानी के बर्फ में तब्सेदील होने से बनें स्वयंभू शिवलिंग, माता पार्वती और सूंडधारी गणेश की प्रतिमा के दर्शन करते वक्त खुशी के मारे आस्था के आंसू बह निकलते हैं।बाबा बर्फानी की उस गुफा में किसी कोने पर जब कबूतर का जोड़ा बैठा नजर आ जाता है तो पूरा क्षेत्र जयकारों से गूंज उठता है।वहां तैनात पुलिस जवान बताते हैं कि इस बार शिवलिंग का आकार पिछले वर्षों के मुकाबले बड़ा है। नाथद्वारा, मथुरा, बांके बिहारी आदि मंदिरों में भले ही पल भर के बाद मूर्ति के सामने से मन मसोस कर हट जाना पड़ता है लेकिन यहां बड़े इत्मिनान से दर्शन कर सकते हैं। सुरक्षा में तैनात जवान भी जानते हैं कि हजारों किमी की चढ़ाई कर के इसी उद्देश्य से आते हैं दर्शनार्थी। गुफा के ठीक सामने वाली पहाड़ी पर फन फैलाए शेषनाग के आकार वाली पाषाण प्रतिमा तब वाकई शेषनाग सी ही लगती है जब पहाड़ से नीचे तक बर्फ एक मोटी सी पूंछ के आकार में नजर आती है।
-अच्छा है मोबाइल-कैमरे पर प्रतिबंध
वैष्णोदेवी की ही तरह अमरनाथ में भी मोबाइल और कैमरा प्रतिबंधित है। यह ठीक भी है वरना सैल्फी लेने वाली भीड़ मंदिर से हटे ही नहीं।यह इसलिए भी प्रतिबंधित है कि बर्फ जल्दी न पिघले।
पूजन सामग्री बैचने वाले अधिकांश मुस्लिम अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने की धमकी देने वाले आतंकी संगठनों को भी यह हकीकत शायद ही पता हो कि खच्चर वालों की ही तरह पैंतालीस दिन की इस यात्रा में हजारों मुस्लिम परिवारों की रोजीरोटी जुड़ी है।पहलगाम, बालटाल, चंदनवाड़ी में टैंट और होटल संचालित करने वालों में अधिकांश मुस्लिम हैं।जिस तरह दीवाली से पहले हिंदू परिवार घर में रंगरोगन कराते हैं उसी तरह मुस्लिम परिवार भी यात्रा शुरु होने से पहले घरों को गेस्टहाउस में बदलने के लिए आवश्यक निर्माण करा लेते हैं।ठहरने वाले यात्रियों को भोजन भी उपलब्ध करा देते हैं।गुफा मार्ग पर पूजन सामग्री सहित, अन्य धार्मिक सामग्री की दुकानें भी मुस्लिमों द्वारा ही संचालित की जा रही है जो यात्रियों को आकर्षित करने के लिए जय भोले का उच्चारण करने में भी संकोच नहीं करते।इन दुकानों में कैमरा-मोबाइल आदि सामान रखिए, नहाना हो तो सौ रु में एक बाल्टी गर्म पानी भी मिल जाएगा, टैंट में विश्राम की सशुल्क सुविधा भी मिल जाएगी। वैष्णोदेवी से अमरनाथ तक सभी भोजनालयों में लहसुन-प्याज का उपयोग लगभग नहीं ही होता है।
-कीचड़ में लथपथ जूतों की सशुल्क सफाई
गुफा दर्शन कर यात्री जब बालटाल से नीचे उतर कर सड़क मार्जग पर आते हैं तो लंगर वाले टैंटों के आगे जूते साफ करने वाले बैठे नजर आ जाते हैं। चूंकि पहाड़ों पर बर्बफ और कीचड़ में लथपथ होने से जूतों की हालत खराब हो जाती है तो ये लोग बीस-तीस रु में जूतों को धो-पोंछकर उनका रूप निखार देते हैं।जूतों पर पॉलिश करने, उन्हें सहेजने की सेवा गुरुद्वारों में तो पूर्णत: निशुल्क रहती है, बहुत संभव है कि अगले कुछ वर्षों में ऐसी निशुल्क सेवा कोई शुरु कर दे।

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