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कोरोना के भंवर में मध्यमवर्गीय परिवार, कर्ज और नौकरी की चिंता में सूख रहा खून

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”][/mkd_highlight]विनीत दुबे

 

 

कोरोना संकट के पिछले एक माह के दौरान आम लोगों की समस्याओं के अनगिनत रंग देखे। किसी को बदहवाश नंगे पैर भागते हुए देखा तो किसी को कोरोना संकट से बचने केे लिए अपने शरीर पर कीटनाशक दवाओं के छिड़काव भी झेलते हुए देखा। किसी को पुलिस की लाठियां तो किसी को मुर्गा बन उठक बैठक करते हुए थी देखा। इन दृश्यों को देखकर मन दृवित हो जाता है कि क्या यही असली सच है महाशक्ति बनने जा रहे इस भारत का।

देश की जनता ने कफ्र्यू तो सुना था लेकिन जनता कफ्र्यू का नाम पहली बार सुना और पूरी तत्परता केे साथ उसका पालन किया। लोगों ने तब सोचा एक दिन की ही तो बात है लेकिन उन्हे क्या पता था कि आगे उन्हे लाॅक डाउन के बाद संपूर्ण लाॅक डाउन के अलावा कोरोन्टाइन और आइसोलेशन जैसी मिसाइलों का भी सामना करना पड़ेगा। इन सब के बीच के आम आदमी का सारा समीकरण, भूगोल, गणित और विज्ञान गड़बड़ा गया है। खासकर मध्यम वर्गीय परिवारों के सामने भविष्य का संकट सताने लगा है।

उद्योगों और बाजारों के बंद रहने से नौकरियों और काम धंधों पर व्यापक असर पड़ा है आने वाले कुछ महीनों में क्या स्थिति होगी कोई भी कुछ नहीं कह पा रहा है। ऐसी स्थिति में एक माह बीत चुका है पिछले महीने मिली 22 दिन की पगार और कमाई अब साथ छोड़ चुकी है आगे क्या होगा पता नहीं।

जिस कारखाने में काम करते थे अब जाने वहां कब काम शुरू हो। होटलों, ढाबों, परिवहन कंपनियों के अलावा सड़क किनारे ठेले लगाकर परिवार के पेट पालने वालों को आने वाले कुछ महीनों और काम की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

समाचार पत्रों में प्रधानमंत्री के हवाले से यह कहा गया था कि किसी भी प्रकार के कर्ज की वसूली आगामी तीन महीनों तक नहीं की जाएगी। दूसरी तरफ निजी फायनेंस कंपनियां प्रधानमंत्री जी अपील के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहे हैं। लोगों से कर्ज की वसूली की जा रही है वहीं किश्त नहीं देने वालों को धमकाया भी जा रहा है।

ऐसे में कई निजी कंपनियों के कर्मचारियों के अलावा स्वरोजगारियों को कर्ज की अदायगी की चिंता सताने लगी है। अधिकांश लोगों ने व्यापार, वाहनों, मकान, मोबाइल, घरेलू सामान आदि के लिए कर्ज लिए हैं और उनकी प्रतिमाह किश्तों की अदायगी की जाती है।

नगर के देवकीनंदन कहते हैं कि उन्होंने चार पांच महीने पहले पाई पाई जोड़कर निजी फाइनेंस कंपनी से किश्तों पर एक आटो लिया था सोचा था कि इसी की कमाई से घर परिवार पालेंगे और ऑटो की किश्त भी भर देगें। लेकिन कोरोना संकट में ऑटो बंद है बैंक वालों ने प्रधानमंत्री मोदी की भी नहीं सुनी पिछले महीने की किश्त काट ली। अब इस महीने को मेरे सामने घोर संकट है कि किश्त कहां से लाउंगा फिर परिवार भी पालना है। यही सब सोच सोच कर रात रात भर नींद नहीं आ रही है।

इसी तरह नया करने की चाह रखने वाले युवा सुधीर ने एक निजी फाइनेंस कंपनी से कर्ज लेकर करीब 70 लाख रूपए की अर्थ मूविंग मशीन जिसे पोक्लीन मशीन भी कहते हैं खरीदी है।

उस मशीन की प्रतिमाह किश्त ही करीब 2 लाख रूपए है इसके अलावा मशीन पर काम करने वाले स्टाफ का वेतन, वाहन का टैक्स, बीमा आदि का करीब 2 लाख रूपए का खर्च प्रतिमाह चाहिए। अब एक माह से मशीन घर के सामने खड़ी है तो उसे देख देखकर खून सूखा जा रहा है कि आखिर अब करें तो क्या करें।

इसी तरह के सैकड़ों लोग अपने भविष्य की चिंता के सागर में उस जहाज की तरह हो गए हैं जो लहरों के साथ चल तो रहा है लेकिन उसे पता ही नहीं है कि आखिर किनारा कहां है और आखिर कब तक वह किनारे पर पहुंच पाएगा।

मशहूर शायर निदा फाजली साहब का यह शेर यहां काफी उपयुक्त है, कि………

आज तक उस थकान से दुख रहा है बदन,
एक सफ़र किया था मैंने ख़्वाहिशों के साथ

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हैं हम,
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हैं हम

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