महाभारत का अज्ञातवास और कोरोना संकट में लॉकडाउन
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]मनीषा शाह[/mkd_highlight]
लॉकडाउन में जहां हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है उसी प्रकार नाट्य संचार माध्यम भी प्रभावित हुए हैं। आजकल वे पुराने धारावाहिक प्रस्तुत कर रहे हैं जोकि अपने समय में बहुत प्रसिद्ध हुए थे,ताकि मनुष्य ऐसे समय में भी चिंता मुक्त रहकर तनाव ग्रस्त होने से बचे। उन कार्यक्रमों की श्रेणी में दो ऐसे कार्यक्रम जो बहुत ही चर्चित हुए वह है रामायण और महाभारत जो कई चैनलों में प्रसारित किए जा रहे हैं मैं भी प्रतिदिन इन कार्यक्रमों को देखती हूं।
हर दिन की तरह मैं प्रसिद्ध धारावाहिक महाभारत का वह भाग देख रही थी,जिसमें पांडवों को अज्ञातवास के लिए जाना पड़ता है। जो हमारे इस समय में प्रासंगिक दिखाई देता है। इस भाग में यह दिखाया जा रहा था जब पांडव द्रुत कीड़ा में अपना सब कुछ हार चुके थे और उन्हें राजकीय फैसले के अनुसार 12 वर्ष का वनवास 1 वर्ष का अज्ञातवास का निर्णय सुनाया गया। वनवास से तो हम सब अवगत हैं, परंतु यह अज्ञातवास क्या है ? और आज हमारे विचार का विषय भी यही है।
इस एपिसोड में यह दिखाया गया की पांचो पांडव और उनकी पत्नी द्रौपदी ने अज्ञातवास के परिणाम स्वरूप सबसे पहले यह निर्णय लिया की अपने नाम वेशभूषा और कार्यों को बदला जाए जिससे उन्हें कोई पहचान ना पाए और वह अपना अज्ञातवास सफलतापूर्वक पूर्ण कर सके। पांचो पांडव अज्ञातवास में अपनी पहचान को बदल कर मत्स्य राज्य में रहने लगे, युधिष्ठिर अपने नए नाम कंक के साथ विराट के व्यक्तिगत सलाहकार के रूप में जीवन यापन करने लगे। इसी प्रकार भीम वल्लभ नामक रसोइयों के रूप में अर्जुन वृहनलला के रूप में जो राजा की पुत्री को संगीत की कला में पारंगत बना रहे थे, नकुल ग्रंथिक के रूप में अश्वसाला की निगरानी करते थे सहदेव तंतीपाल के नाम से गो पालन का काम कर रहे थे,द्रोपदी रानी की दासी बनकर सेवा कर रही थी।
परिणाम स्वरूप यह देखा गया कि मत्स्य राज विराट के सलाहकार के रूप में काम कर रहे युधिष्ठिर की राजनीतिक कला की बदौलत कई राज्यों से मैत्रीपूर्ण संधि हो गई,और मत्स्य राज्य हर तरीके से दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करने लगा। नकुल की वजह से मत्स्य राज्य के अश्वों की प्रसिद्धि संपूर्ण आर्यव्रत में फैल गई, इस श्रेणी में मुझे धारावाहिक कि वह भाग भी याद आ गया जब अर्जुन वीणा बजाता दिखाया गया और एक भाग में उसे स्त्री का रूप धारण करना पड़ा था। आज यह हुनर उसे वृहनलला के रूप में राजा की पुत्री को संगीत में निपुण बनाने एवं स्वयं को छुपाने के काम आ रहा है,अब यह देखते—देखते मस्तिष्क में एक सवाल बार-बार आ रहा है कि अज्ञातवास होना मतलब क्या ?
पहले तो मुझे लगा अज्ञात वास होना अर्थात स्वयं को पूरा परिवर्तित कर लेना और पहचान हीन हो जाना, स्वभाव परिवर्तित हो जाना… परंतु नहीं यही तो में गलत साबित हुई जब धारावाहिक के अगले एपिसोड में यह दिखाया गया कुटिल रणनीतिकार शकुनी और एन केन प्रकारेण हस्तिनापुर राज्य को अपने अधिकार में रखने के लिए के युवराज दुर्योधन नई योजना बनाई कि आखिर इन छुपे हुए पांडवों को कैसे ढूंढा जाए। सारे मित्र राष्ट्रों में जब पांडवों का पता नहीं लगा एवं अज्ञातवास का केवल एक माह शेष रह गया,तब कौरव की चिंता बढ़ने लगी।
किसी भी प्रकार से पांडवों का अज्ञातवास भंग करने की योजना बनाने लगे, उन्होंने विचार किया कि क्षत्रियों का मुख्य कार्य तो युद्ध कला ही रहता है। परंतु पांडवों के द्वारा कहीं पर भी युद्ध कौशल का प्रयोग दिखाई नहीं दे रहा उनके, बाहरी गुणं लुप्त नजर आ रहे हैं। ऐसे समय में पांडवों और द्रौपदी के आंतरिक और वैकल्पिक गुणों से उनका पता लगाया जाए, और मामा शकुनि की कुटिल योजना काफी हद तक सफल हुई।
इससे मैंने यह निष्कर्ष निकाला नाम वेशभूषा और कार्य बदल लेने से व्यक्ति का आंतरिक स्वभाव नहीं बदलता। इस पूरे घटनाक्रम से इस निर्णय पर पहुंचती हूं की अज्ञात होना स्वभाव परिवर्तन करना नहीं वरन एक अद्भुत अवसर है अपने अंदर छुपी हुई प्रतिभा को ढूंढ निकालने का ताकि विषम परिस्थितियों में भी अडिग रह सकें। यह वह भी मौका होता है की छुपी हुई प्रतिभा को निखार कर अधिक कुशल बनकर आगे आने वाली परीक्षा में स्वयं को तैयार कर सकें।
यह समय स्वयं को परिवर्तित या नाम हीन होना नहीं बल्कि अपने अंदर छुपे हुए नए आयामों को जानना होता है। आज पूरा विश्व एक विकराल शत्रु जो कौरव की सेना की तरह चतुर है , एवं कुटिल तथा शातिर मामा शकुनी की रणनीति के साथ लड़ने के लिए आतुर है हमें भी उसी से लड़ने के लिए तैयार रहना है जिस प्रकार महान धनुर्धर अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के मुख से गीता ज्ञान सुनकर सज्ज था ।
लॉकडाउन खुलने के बाद हर तरह की महाभारत चाहे वह स्वास्थ्य के रूप में चुनौती हो या आर्थिक रूप में या व्यवहारिक रूप में हमारे सामने कौरव सेना बनकर चुनौती के रूप में सामने आने वाली है। हमें हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना है, यह देखने में भी आ रहा है कई माध्यमों से हर कोई इस अज्ञातवास को एक अवसर के रूप में लेकर अपने अंदर के छुपे हुए आयामों को निखारने का प्रयास कर रहा है। और यह समय की मांग भी है क्योंकि अब आने वाली प्रतिस्पर्धा उन लोगों के लिए नहीं होगी जो पुराने तरीके के साथ चुनौतियों का सामना करना चाह रहे हैं बल्कि या युद्ध उनके माथे पर विजय श्री का मुकुट धारण करवायेगा जो हर परिस्थिति में हर रणनीति को भेदने के लिए सज्ज होंगें ।
“Be the leader of change,rather being a follower of situations”