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लॉकडाउन 2 सवाल बहुत है कोई जवाब देगा क्या ?

 

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]संजीव कुमार भूकेश[/mkd_highlight]

 

 

 

 

प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए लॉक डाउन को देश हित में 19 दिन अतिरिक्त बढ़ाने की जानकारी दी, साथ ही उन्होंने देशवासियों को सहयोग करने के लिए धन्यवाद दिया और लॉक डाउन के अगले चरण में बुजुर्गों का ख्याल रखने के लिए कहा, फिजिकलडिस्टेंस मेंटेन करने को महत्व दिया, इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए गर्म पानी और काढ़ा पीने की सलाह दी, आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करने को जरूरी बताया गरीबों की देखरेख और उन्हें खाना देने की अपील की, कामगारों को नौकरी से ना निकालने की अपील की और डॉक्टर नर्स सफाई कर्मी पुलिसकर्मियों के लिए सम्मान मांगा अर्थात सभी नियमों का सख्ती से पालन का अनुरोध किया।

इस बात पर भी जोर दिया कि देश के किसी भी राज्य में नए हॉटस्पॉट्स ना बने यहां तक तो प्रधानमंत्री की बात ठीक है, किंतु उन्होंने किसानों, मजदूरों, सरकारी और निजी कंपनियों के कर्मचारियों छोटे, मझोले और बड़े उद्योगों की अगले 19 दिन की और इसके बाद की समस्याओं के समाधान और राहत पर कोई ठोस योजना और नीति की घोषणा नहीं की।

मसलन अगले 19 दिन में दिहाड़ी मजदूरों के लिए भोजन की क्या और कैसे व्यवस्था होगी, क्योंकि पहले चरण में तमाम दावों के बावजूद कई मजदूरों ने भूख से दम तोड़ दिया, एक महिला ने विवश होकर व्यवस्था के सामने घुटने टेक दिए और अपने चार बच्चों को नदी में फेंक दिया, दिल्ली में उत्तराखंड की मजदूर महिला महक ने बेटी को जन्म दिया किंतु उसने पिछले 2 दिनों में एक मुट्ठी चावल खाया इस कारण उसके स्तनों में दूध ना उतरा और बच्ची को कुछ ना पिला सकी ।

इससे ज्यादा विभक्त दशाक्याहो सकती है, किसानों की फसल कटाई और सब्जियों का क्या होगा, सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कितनी कटौती होगी, क्योंकि पीएम केयर की राशि का अब तक कोई खुलासा नहीं हुआ है, निजी कंपनियों के मालिक उनके कर्मचारियों का अगले दो-तीन महीने का वेतन कटौती की बात कह रहे हैं, कई मीडिया हाउस ने अपने स्टाफ में कटौती की है, सभी उद्योगों को इस महामंदी के दौर से किस प्रकार उभारा जाएगा।

उद्योगपतियों ने भले ही लॉक डाउन के भाग 2 का जरूर समर्थन किया हो, किंतु सभी उद्योग राहत पैकेज की मांग भी कर रहे हैं लेकिन सरकार के पास कोई ऐसा तंत्र नहीं है जिसके आसरे सही सही गणना कर सके कि किस क्षेत्र को कितना धन बतौर राहत प्रदान किया जाए।

कहने का अर्थ यह है कि आने वाला समय आम आदमी और उद्योग जगत के लिए चुनौतियों से भरा है। पीएम ने कोरोना से जंग में भारत की स्थिति दूसरे कई मजबूत राष्ट्रों से बेहतर बताई, जबकि उन्होंने टेस्ट की संख्या पर कोई टिप्पणी नहीं की, जबकि सच्चाई यह है कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में डेढ़ लाख टेस्ट बहुत कम है।

केवल संक्रमित लोगों के जारी हुए आंकड़ों पर ही अपनी पीठ थपथपा रही है, इसके बावजूद भी ट्रंप धमकाकर दवाई और टेस्ट किट हासिल कर ले रहे हैं, जबकि इनकी सबसे ज्यादा जरूरत देश को है क्योंकि आगे हालात और कितने बिगड़ेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता।

निजी क्षेत्र के हॉस्पिटल का आंशिक राष्ट्रीयकरण करके समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकता था! महामारी संकट के दौर में तमाम राष्ट्रों ने ऐसा किया है, ऐसा करने से टेस्ट की संख्या बढ़ाई जा सकती थी, बेड वेंटिलेटर, दवाइयां और बाकी जरूरतों की काफी हद तक भरपाई इन प्राइवेट हॉस्पिटल के जरिए की जा सकती थी।

प्राइवेट स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, मंदिरों को, धर्मशाला को मजदूरों को क्वॉरेंटाइन करने के लिए प्रयोग किया जा सकता था, वहीं भोजन उपलब्ध कराया जा सकता था, किंतु महामारी के दौर में राष्ट्रभक्ति और सेवा का दंभ भरने वाले इन निजी संस्थाओं के मालिकों को पता नहीं क्या हो गया, शायद याद नहीं रहा होगा कि अपनी संस्थाओं के द्वार मजदूरों के लिए खोलकर उन्हें वही क्वॉरेंटाइन करें और भोजन उपलब्ध कराएं और इस मुश्किल घड़ी में सच्चा राष्ट्र धर्म निभाएं किसानों की फसल कटाई के लिए तैयार है।

सब्जियां या तो ट्रक में सड़ रही है या गांव में किसान उन्हें मवेशियों को खिलाने के लिए मजबूर हैं या फेंकने के लिए जबकि शहरों में सब्जी महंगी मिल रही है, यदि सरकार उचित तंत्र विकसित करती तो सब्जियां बाजार तक पहुंच सकती थी जिससे किसानों और लोगों दोनों को लाभ होता है! आईसीएआर (इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च) के वैज्ञानिकों ने उन्हें चटनी बनाने की सलाह जरूर दी, किंतु उसके लिए भी यूनिट लगाने की आवश्यकता होती है जो गांव में नहीं है।

बड़े ट्रकों का प्रयोग बड़े रेफ्रिजरेटर रखकर उसमें सब्जी स्टोर करने के लिए हो सकता था रेफ्रिजरेटर के लिए बिजली स्टैंडअलोन छोटे सोलर पीवी सिस्टम से प्रदान की जा सकती थी! दूसरी ओर मध्यम वर्ग के घरों का राशन खत्म हो रहा है और सब्जियों की भी आपूर्ति पर्याप्त नहीं हो रही है! कुछ दुकान खुल रही है वह मनमाने दामों पर राशन दे रही है, इसी प्रकार इसी प्रकार सब्जी के दामों पर नियंत्रण नहीं है।

सरकार ने कोई विशेष मैकेनिज्म इसके लिए विकसित नहीं की! प्रधानमंत्री ने देश के उद्योगपतियों से मजदूरों और कर्मचारियों को फैक्ट्री से ना निकालने का अनुरोध तो किया है किंतु यह विचारणीय तथ्य है कि प्रत्येक सेक्टर के उद्योग राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं।

फिक्की ने लगभग 1600000 करोड की राहत पैकेज की मांग की है जबकि केंद्र सरकार का कुल टैक्स संग्रहण लगभग 2400000 करोड अनुमानित है,समझ नहीं आता कि कठोर पूंजीवादी नीतियों का अनुसरण करने वाले कॉरपोरेट सेक्टर को समाजवाद की याद कहां से आ गई, जब यह उद्योग अधिक से अधिक लाभ कमा रहे होते हैं तब तो इन्हें याद नहीं आती कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी कुछ डिविडेंड दिया जा सकता है! सीएसआर के नाम पर खानापूर्ति कर दी जाती है, यदि पैकेज नहीं मिला तो क्या वह फिर भी पीएम का साथ इस मुश्किल घड़ी में देंगे जो कि उन्हें वास्तव में देना चाहिए।

आपसी मतभेदों को त्याग कर अगर केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर यदि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए तो कोरोना महामारी से तो देश जल ही रहा है, साथ ही अर्थव्यवस्था के चरमरा जाने के गंभीर दुष्परिणाम भी मजदूर से लेकर उद्योगपति तक भुगतेगें।

कोरोना लॉक डाउन भाग 2 की शुरूआत तक विश्व में लगभग 2000000 संक्रमित पाए गए हैं, 124000 मौतें हो चुकी हैं, नए संक्रमित की संख्या 56000 है, लगभग 470000 मरीज ठीक हो चुके हैं, अमेरिका की बात की जाए तो ताजा स्थिति के अनुसार वहां संक्रमितओं की संख्या 600000 है, 25000 मौतें अभी तक हो चुकी है, भारत में 12000 से अधिक संक्रमित है, 389 मौतें अभी तक हो चुकी है, 1220 मरीज ठीक हो चुके हैं ।

 

 

      ( लेखक रिसर्च स्कॉलर, एनआईटी भोपाल है )

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