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जय सियाराम : राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे नारा देने वाले सत्यनारायण मौर्य बाबा क्या बोले..पढें

 

— मंदिर तो उसी दिन बन गया, फर्क इतना है तब टाट में बैठे हमारे रामलला अब विराजेंगे ठाठ से

 

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]कीर्ति राणा[/mkd_highlight]

 

 

दशकों से राम भक्त और कार सेवक ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का गगनभेदी उदघोष करते रहे हैं वह उज्जैन निवासी सत्यनारायण मौर्य (बाबा) की जोशीली कविता की लाइनें हैं।1986 में उनकी इस कविता की ये लाईनें मंदिर निर्माण आंदोलन की प्रेरक बन गईं।

राम मंदिर निर्माण के लिए पेंटिंग-कविताओं-ओजस्वी भाषणों के माध्यम से अलख जगाने वाले सत्यनारायण मौर्य (बाबा)विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष स्व अशोक सिंघल के साथ अधिकांश समय रहते थे इसलिए सिंघल के बाएं हाथ के रूप में पहचाने जाते हैं।टेलीफोन पर चर्चा में बाबा मौर्य ने कहा ढांचा ढहाने के बाद मलबे के उस ढेर पर रामलला को विराजित कर दिया था। एक तरह से मंदिर तो उसी दिन बन गया था।अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनर्निर्माण कार्य की आधार शिला रखने आ रहे हैं। बस फर्क इतना है कि तब से टाट के पांडाल में बैठे रामलला अब ठाट से भव्य मंदिर में विराजेंगे।अपनी भावना काव्य पंक्तियों में व्यक्त करते हुए बोले ‘मंदिर तो बन चुका, उसे अब केवल भव्य बनाना है, टाट हटा कर ठाट बाट से स्वर्ण शिखर तक जाना है।’

बाबा मौर्य कहने लगे दरअसल वह टाट (बैनर का कपड़ा) का इंतजाम भी हमने तुरत फुरत किया था। कारसेवकों ने ढांचा ढहा दिया, हम सब ने राम लला की मूर्ति मलबा इकट्ठा कर बनाए ऊंचे टीले पर विराजित कर दी।चिंता यह हुई कि रामलला ऐसे खुले में कब तक रहेंगे लिहाजा बैनर वाला गुलाबी रंग के कपड़े का चारो तरफ से घेरा बना दिया, बस तब से रामलला ऐसे ही विराजे थे, जिसे लेकर मन में टीस थी।

ढांचा ढहाने वाले आंदोलन के दिनों की याद करते हुए मौर्य कहने लगे 4 दिसंबर को लखनऊ हाइकोर्ट का फैसला आना था और देश भर से कारसेवक कूच कर चुके थे। यूपी सरकार के दबाव में कोर्ट ने फैसले की तारीख 11 दिसंबर कर दी लेकिन लोग तो एकत्र हो चुके थे। ढांचे के समीप मंच से राजमाता सिंधिया, आडवाणी जी, उमा भारती जी के भाषण चल रहे थे, मैं सभा का संचालन कर रहा था।राम का काम करने का संकल्प लेकर आए लाखों लोग निहत्थे लेकिन उत्साहित तो थे ही गुंबदों पर चढ़ गए, दीवारों पर प्रहार करने लगे।परकोटे के चारों तरफ गहरे गड्ढे नींव के लिए खुदे हुए थे, उसमें मलबे के साथ ही सरयू नदी की रेती मुट्ठी-जेबों में भर कर लाए थे वह भी डाल रहे थे। उनकी पीड़ा यह भी थी कि किसान आत्महत्या करते रहें, देश की आर्थिक गरीबी भी दूर न हो तो राम मंदिर की दिव्यता भी फीकी ही रहेगी।

— भूमिपूजन के बाद लगाएंगे पोस्टर प्रदर्शनी

बाबा मौर्य का नाम भूमिपूजन वाले अतिथियों की सूची में नहीं है। उन्होंने राम मंदिर को लेकर पोस्टर प्रदर्शनी बनाई है जिसे 5 अगस्त को भूमिपूजन सम्पन्न होने के बाद वहां प्रदर्शन के लिए रखा जाएगा। इन्हीं पोस्टर के आधार पर मूर्तियां निर्मित होंगी।आजादी से पहले तक 4.50 और आजादी के बाद से अब तक 100 कारसेवक मंदिर के लिए हुए 76 बार युद्ध में शहीद हुए हैं। ऐसे शहीदों के नाम भी प्रदर्शनी स्थल पर उकेरे जाएंगे।

— ढहाए गए ढांचे की निशानी के रूप में ईंट रख ली किंतु साथियों के विचार जान कर ट्रेन से फेंक दी

क्षेत्र क्रमांक चार के भाजपा विधायक स्व लक्ष्मण सिंह गौड़ के नेततृत्व में करीब 125 कारसेवकों का जत्थालोधीपुरा स्थित निवास से बैंडबाजे के साथ ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ उद्घोष के साथ अयोध्याके लिए रवाना हुआ था। इस टोली का नेतृत्व दिनेश गुप्ता कर रहे थे अन्य युवाओं में पुष्पेंद्र धनोतिया, धनंजयगुंजाल, पार्षद राजेंद्र सोनी, लोकेंद्र सिंह राठौर, राजेश सामड़, अजय वैशंपायन आदि थे।5 तारीख को ये सभीट्रेन से पहुंचे और कुबेर टीला पर जम गए। वहां बड़े नेताओं के भाषण चल रहे थे। विवादित ढांचे के परकोटे केचारों तरफ जाली लगी थी।कारसेवकों में जैसे ही हलचल बढ़ी इंदौर की यह टोली भी गुंबद की तरफ दौड़ी।धनंजय गुंजाल के मुताबिकऊपर पहुंच गए लेकिन तोड़ने का कोई साधन नहीं था। जाली जिन रैंलिंग से बंधीथी, हमने भी रैंलिंग के पाईप निकाले और ढांचा तोड़ने लग गए।पुलिस और सुरक्षा एजेंसी के जवान एक तरहसे हमारे साथ ही थे। ढांचा टूट कर मलबे में बदलता जा रहा था। पहले चूंकि एक बार कारसेवकों पर गोलीचलाई जा चुकी थी इसलिए मन में भय भी था पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।वहां से स्टेशन पहुंचने के लिए सबइकट्ठा हो रहे थे तब निशानी के तौर पर मलबे से एक ईंट मैंने अपने साथ रख ली। ट्रेन जब चल पड़ी औरकिस्से शुरु हुए तो मैंने ईंट निकाल कर दिखाई की निशानी के लिए साथ ले आया हूं। लखन दादा और बाकीसाथियों ने कहा जिस ढांचे को हम गिराने आए उसकी निशानी क्यों रखना, बात मुझे भी ठीक लगी, चलती ट्रेनसे मैंने ईंट खिड़की से बाहर फेंक दी।गुंजाल इससे पहले दो बार गुप्त वाहिनी के सदस्य के रूप में जंगल जंगलहोते ढाचे तक जा चुके थे।

इंदौर पहुंचने के बाद धर्म जागरण के लिए जड़ावचंद जैन, समीरमल संघवी, दिनेश गुप्ता आदि के साथ बाग, टांडा, चिखली, कुक्षी आदि क्षेत्रों में ग्रामीण और वनवासी बंधुओं के बीच पहुंच कर उन्हें हिंदू अस्मिता केप्रतीक राम मंदिर की जानकारी देने जाते थे और ईधर घर पर पुलिससवाले तलाश करने आते रहते थे।

— ‘ये तो हाथ तुड़वा कर लौटे थे अयोध्या से’

कार सेवा के लिए लक्ष्मण सिंह गौड़ के नेतृत्व में ट्रेन से गए जत्थे के अलावा भाजपा नेता बाबू सिंह रघुवंशी, चंद्र प्रकाश (चंदू) नागर, हेमंत जोशी ‘ ‘स्वदेश’ से जुड़े होने के कारण प्रेस लिखी कार से गए थे। 2 को पहुंच गए थे, फैजाबाद में रुके। राम जन्मभूमि संघर्ष समिति के अशोक सिघल जी ने 3 लाख कारसेवकों के मान सेखाने रहने के इंतजाम किए थे, पहुंच गए 6-7 लाख। स्थानीय लोगों, संतों ने खूब इंतजाम कर डाले।

आंदोलन के दिनों की याद करते हुए श्रीमती विजया रघुवंशी कहने लगीं ये (बाबू सिंह) तो हाथ तुड़ा कर लौटेथे।वहां के हाल सुनाते हुए बाबू सिंह रघुवंशी बोले हम ढांचे के समीप वाले कुबेर टीले पर बैठे थे।जो लोग आएथे, सब निहत्थे थे।तोड़फोड़ शुरु हुई तो पहले मलबा गिराने में लगे रहे। पुलिस बल आगे आने लगा तो नीचे जोगुमटियां लगी हुई थीं उन्हें अवरोध के रूप में आड़ी तिरछी लगा दी, मेरी कोहनी में चोंट लग गई, उस समय तोध्यान दिया नहीं।भगदड़ शुरु शुरु हो गई थी, कहीं कोई दंगाफसाद नहीं ुआ। लेकिन कर्फ्यू लगा होने से इंदौरतक पहुंचने में परेशानी भी आई।यहां लौटकर डॉ नारी मसंद को कोहनी दिखाई तो पता चला फ्रैक्चर है, उनसेउपचार चलता रहा।

— कई भाजपा नेता तो सुमित्रा जी के पुत्र की शादी में शामिल होने के कारण नहीं गए कार सेवा करने

जिस 6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहा उसी दिन सांसद सुमित्रा महाजन के पुत्र मंदार का विवाह समारोह था।यही कारण रहा कि स्थानीय भाजपा के कई नेता-कार्यकर्ता चाहते हुए भी नहीं जा पाए।सांसद के यहांआयोजन के चलते प्रदेश संगठन के अधिकांश पदाधिकारी भी उस दिन इंदौर ही थे।मप्र में सुंदर लाल पटवाकी सरकार थी, अन्य जिन राज्यों में भी भाजपा की सरकार थी वहां के मंत्रियों को भी अयोध्या नहीं जाने केनिर्देश थे इसके विपरीत गुजरात के कुछ मंत्रियों ने पद से इस्तीफा देकर कारसेवक के रूप में अयोध्या का रुख किया था ।

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