शिक्षा की अलख जगाने तिरस्कार को बना लिया था गहना
जोरावर सिंह
मध्यप्रदेश। शिक्षा ऐसा मूल मंत्र है कि जिससे विकास के पथ पर आगे जाने का मार्ग सुगम होता है। वर्तमान समय में शिक्षा के लिए सरकारी और निजी स्तर पर बेहतर से बेहतर से संस्थान मौजूद है, जिनमें सुख सुविधाएं भी भरपूर है और शिक्षा से देश में अब कोई भी वर्ग अछूता नही है। बस इतना है कि किसी स्कूल में सुविधाए थोडी कम है तो कहीं सुविधाए ज्यादा। देश में वर्तमान दौर में उच्च शिक्षा को प्राप्त करने में गरीबों को थोडी परेशानी का सामना करना पड सकता है पर प्राथमिक शिक्षा तो आसानी से मिल जाती है, इससे अनपढ होने का कलंक मिटाया जा सकता है पर जब हम उस काल की शिक्षा व्यवस्था की बात करें जब एक बडा वर्ग शिक्षा से वंचित था। इस वंचित समाज को शिक्षित करने का बीडा उठाने वालों को कितना संघर्ष का सामना करना होगा यह तो ठीक ठीक वह खुद ही बता सकते थे पर वह कितने उत्साही रहे होंगे, जिन्होंने ऐसे वंचित समाज के बीच शिक्षा की अलख जगाने के लिए तिरस्कार को भी अपना गहना बना लिया था।
इस संघर्ष यात्रा में कुछ नाम उभरकर आते है पर हम महिला शिक्षा के लिए अपना योगदान देने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया, उसमें दो नाम प्रमुखता से आते है, जो एक दूसरे के पूरक रहे है वह नाम है जिन्हें देश की प्रथम महिला शिक्षिका भी माना जाता है सावित्री फुले और फातिमा शेख। वंचित समाज को शिक्षित करने की शुरूआत जब इन्होंने की तो उन्हें कई तरह के विरोधों का सामना करना पडा पर मजबूत इच्छाशक्ति के बदौलत। यह दोनों एक स्कूल की नींव रखने में कामयाब रही है। अब वर्तमान दौर वंचित समाज में जैसे जैसे जागरूकता बढ रही है, इनके योगदान को याद किया जाने लगा है। ज्योतिबा फुले का स्मरण हो या फिर फातिमा शेख का स्मरण।
तब खुल पाया था स्कूल
वंचित समाज को शिक्षित करने के लिए महाराष्टघ् में पफुले दंपति द्वारा लोगों को शिक्षा प्रदान की जा रही थी पर बिना स्कूल के शिक्षा के मिशन को और आगे बढाना आसान न था, इसकी वजह थी कि उस दौर में वंचितों को शिक्षा प्रदान करने वालों को भी यह समाज भला बुरा कहता था। इतिहास के पन्नों जो कुछ दर्ज है उसके आधार पर जब सावित्री फुले ने वंचितों को शिक्षा देना शुरू की तो आस-पास के सभी लोगों द्वारा त्याग दिया गया। सावित्री फुले को कई मुश्किलों का सामना करना पडा पर इसी संघर्ष के दौरान पुणे के गंज पेठ में रहने वाले उस्मान शेख का सहयोग मिला उस्मान शेख ने अपने घर की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था। यह स्कूल बहुत संघर्षों के बाद शुरू हो सका था। स्कूल खुलने के बाद उस समय जातीय दंभ में जीने वाले लोगों द्वारा सावित्री फुले और फातिमा शेख का लगातार तरह तरह से तिरस्कार किया गयाय पर तिरस्कार को गहना बनाने वाली सावित्री फुले और फातिमा शेख विंचतों को शिक्षित बनाने में जुटी रही।
तो संभव नहीं हो पाता
वर्तमान दौर में शिक्षा के व्यवसाई करण को देखकर तो यह कहा जा सकता है कि निजीकरण के दौर में अब शिक्षा का दान करना उददेश्य नहीं रह गया है। शिक्षा से पैसे कमाना ही प्रमुख उददेश्य रह गया है। यहीं सोच यदि इन दोनों महान शिक्षिकाओं की रही होती तो शिक्षा की अलख नहीं जगा पाती है। उल्लेखनीय है जब उस दौर में वंचितों को शिक्षा प्रदान करने के लिए कोई आगे नहीं आता थाए ऐसे दौर में उन फातिमा शेख ने ना कि जोखिम उठाया वरन अपनी निजी जमीन स्कूल खोलने के लिए दीए यदि वह उस दौरान अपनी निजी जमीन स्कूल खोलने के लिए नहीं देती तो शायद यह संभव नहीं होता कि सावित्री फूले का शिक्षा मिशन ज्यादा दिन तक चल पाता य शिक्षा के क्षेत्र में फातिमा शेख और सावित्री फुले के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वर्तमान दौर में उनके योगदान को कार्यक्रमों के आयोजन कर याद किया जा रहा है।