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मास्क को अपने पहनावे में कर लें शामिल और बनायें अपनी अलग पहचान

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]सारिका घारू[/mkd_highlight]

 

 

लाॅकडाउन के खुलते या थोडी ढील मिलते ही मास्क या फेस कव्हर  कोरोना संक्रमण से बचाव  का एक मात्र सुरक्षा कवच होगा। मास्क वर्तमान समय की बहेद जरूरी बन गया है। मानव मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुये मास्क का स्वैच्छिक प्रचलन के लिये ,इनका स्वरूप अर्कषक और नए प्रकार होना चाहिए।

मास्क का स्वरूप रूचिकर करके अवचेतन में समाये रोग के भय का भाव कम किया जा सकता है। इसके लिये डब्लूएचओ के सुरक्षा मानकों का परिपालन करते हुये बच्चों के लिये उनके कार्टून कैरेक्टर वाले मास्क, लड़कियों के लिये उनकी रूचि को देखते हुये मास्क डिजाईन किये जा सकते है।

मास्क स्कूल युूनिफार्म का हिस्सा बनाया जाना चाहिये। इनको बनाने पर अधिक खर्च न हो यह देखना जरूरी होगा। मास्क को लगाकर बोलने में कठिनाई महसूस होती है इसके लिये मास्क का मुंह के सामने वाले भाग कीं डिजाईन में परिवर्तन भी किये जाने की आवश्यकता महसूस होती है।

भारतीय ग्रामीण परंपरा का गमछा एवं लड़कियो द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाला स्टाल की तीन परत से चेहरे को कव्हर करना तो सबसे अच्छा होगा। इनके उपयोग से पूर्व से ही सभी अभ्यस्त है। 6 से 8 घंटे के हर उपयोग के बाद इन्हें सेनिटाइज किया जाना जरूरी होगा।

इसी प्रकार मास्क या फेस कव्हर हैंगर को घर के बाहर ही लगाने के लिये भी नई  व्यवस्था बनाना आवश्यक। जिसमें घर के सभी सदस्य बाहर से आकर सबसे पहले
मास्क को बाहर ही उतार कर टांग दें। तो अब मास्क के साथ अपनी पहचान बनाने की जब तक कि साइंस कोरोना संक्रमण का उपचार की खोज न कर लें।

 

 

( लेखिका राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसा​रक है )

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