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देश में पहली बार चुनावी मैदान में उतर रहा एक मूक-बधिर उम्मीदवार

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में 28 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. इस बार प्रदेश के चुनावी समर में एक मूक-बधिर प्रत्याशी भी ताल ठोंक रहा है. देश में शायद पहली बार ऐसा हो रहा है कि विधानसभा चुनाव में कोई मूक-बधिर भी बतौर उम्मीदवार हिस्सा ले रहा है. भारत में नेत्रहीन तो चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन किसी मूक-बधिर के चुनाव मैदान में उतरने की यह पहली घटना है.

इस मूक-बधिर प्रत्याशी का नाम सुदीप शुक्ला (36) है और वे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. सुदीप, प्रदेश की सतना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. aajtak.in ने सुदीप के इंटरप्रेटर ज्ञानेंद्र पुरोहित से बात की.

ज्ञानेंद्र के मुताबिक, मध्य प्रदेश में द‍िव्यांग बच्चों के साथ बहुत गलत हो रहा है. सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर बचने की कोशि‍श कर रहे हैं. हम नेताओं को बोल-बोलकर थक गए हैं. अब एक ही रास्ता बचा है कि मूक-बधिर खुद राजनीति में उतरें.

ज्ञानेंद्र के मुताबिक, 1996 में पहली बार अफ्रीकी देश युगांडा में किसी मूक-बधिर ने चुनाव लड़ा था. अफ्रीका में 2 और नेपाल-न्यूजीलैंड में 1-1 मूक-बधिर ने चुनाव लड़ा है. भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है. उन्हें, सुदीप की जीत का भी भरोसा है और इसके पीछे उनके अपने तर्क हैं.

ज्ञानेंद्र कहते हैं विंध्य की भूमि हमेशा बदलाव के साथ रही है. यहां के जातिगत समीकरण सवर्ण और ओबीसी आधारित हैं. यहां एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर काफी प्रभावी है.

सुदीप सतना से ही आते हैं और उनके दादा कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे हैं. इसलिए सुदीप ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया.

ज्ञानेंद्र ने बताया कि दरअसल सुदीप अगले साल सांसद का चुनाव लड़ना चाहता थे, लेकिन मैंने कहा कि पहले विधायक से शुरुआत करनी चाहिए.

सुदीप निर्दलीय चुनाव क्यों लड़ रहे हैं? इस बारे में ज्ञानेंद्र कहते हैं कि अगर हम किसी पार्टी के पास जाते तो ये संदेश जाता कि हम पब्लिसिटी के लिए ऐसा कर रहे हैं. फिर एक पार्टी के साथ होने से हर वर्ग की जनता का साथ नहीं मिलता. इस काम में विदेश से भी मदद चाहिए थी, इसलिए निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया.

चुनाव लड़ने के लिए अच्छा-खासा पैसा खर्च होता है, इसकी व्यवस्था के लिए सुदीप, आम आदमी पार्टी की तर्ज पर क्राउड फंडिंग का सहारा ले रहे हैं. दुनिया भर की मूक-बधिर संस्थाओं से संपर्क कर पैसा मांगा जा रहा हैं. उन्होंने 10 लाख रुपये में चुनाव लड़ने और जीतने का लक्ष्य रखा है.

सुदीप मूक-बधिर हैं इसलिए उनका चुनाव प्रचार भी अलग तरह का है. माइम और नुक्कड़ नाटक के जरिए चुनाव प्रचार चल रहा है. स्लोगन भी जनता के मुद्दों से जुड़े बनाए गए हैं. एक यूथ विंग भी बनाई गई है जो कॉलेज कैंपस में जाकर प्रचार कर रही है.

सुदीप के साथ कुल तीन इंटरप्रेटर साथ रहते हैं जिनमें से एक खुद ज्ञानेंद्र हैं. सुदीप जैसा सोचते हैं और अपनी सांकेतिक भाषा में कहना चाहते हैं, ये इंटरप्रेटर वहां की बोली में ट्रांसलेट कर देते हैं.

ये चुनावी प्रचार कितना कारगर होने वाला है इसका पता तो चुनाव परिणामों के साथ ही चल चलेगा, लेकिन सुदीप ने चुनाव लड़ने की हामी भरने के साथ ही हौसले की लड़ाई तो जीत ही ली है.

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