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आम आदमी के मुँह का निबाला होगा और महंगा …

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]शैलेश तिवारी[/mkd_highlight]

 

रोटी..गरीब हो या अमीर,हर वर्ग दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत से लेकर स्मार्ट वर्क तक करता है। अब इन्हीं रोटियों को नए कानून की नज़र लग रही है। खाली थाली बजवाने वाले मुखिया की सरकार ने सभी के मुँह में जाने वाला निबाला महंगा करने का कदम उठा लिया है। आम आदमी के महंगे निबाले,और गरीब की खाली थाली दोनों मिलकर भविष्य में शायद ऐसी हाय का निर्माण करें। जिसमें बहुत कुछ भस्म करने की क्षमता होगी। हम अपनी बात शुरू करें। इससे पहले आपको कविवर गोपाल सिंह नेपाली द्वारा बीती बीसवीं सदी में लिखी गई एक कविता पढवाते हैं…..

रोटियाँ गरीब की प्रार्थना बनी रहीं
एक ही तो प्रश्न है रोटियों की पीर का
पर उसे भी आसरा आँसुओं के नीर का
राज है गरीब का ताज दानवीर का
तख्त भी पलट गया कामना गई नहीं
रोटियाँ गरीब की प्रार्थना बनी रहीं।

चूम कर जिन्हें सदा क्राँतियाँ गुजर गईं
गोद में लिए जिन्हें आँधियाँ बिखर गईं
पूछता गरीब वह रोटियाँ किधर गईं
राज भी तो बदल गया वेदना बदली नहीं
रोटियाँ गरीब की प्रार्थना बनी रही।।

 

इस कविता को पढ़ने के बाद आपको 1857 की आजादी की लड़ाई का वह दौर भी याद आ सकता है, जिसमें रोटी क्रांति का संदेश देती थी। अब आने वाले वक्त में जब आम आदमी के सामने उसके बच्चे भूख से बिलबिलायेंगे तब क्या उसे देश भक्ति का पाठ पढ़ाया जा सकेगा ? जो भूख इंसान को गद्दार बना देती है,उस भूख की आग को तेज करने का अध्यादेश केंद्र सरकार ने 5 जून 20 को ही जारी कर दिया था । अब उस पर 15 सितंबर 20 को पहले लोक सभा ने और उसके एक हफ्ते बाद राज्य सभा ने पारित कर कानून की शक्ल दे दी है। अब यह कानून आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 कहलायेगा। पहले यह कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के नाम से पहचाना जाता था।
यह कानून उस दौर में सरकार ले कर आई थी ,जब आम आदमी की जरूरत वाली वस्तुयें अनाज, दाल, तिलहन खाद्य तेल, आलू, प्याज आदि की जमाखोरी अपने चरम पर थी। ज़ाहिर है जमाखोर पूँजीपति ही हुआ करते थे,जो बाजार में इन सामानों की बनावटी कमी बनाकर… जमा किये गए सामान की कालाबाजारी किया करते थे,यानि इन चीजों को मनमाने दामों पर बेच करते थे। आम आदमी के वोटो से चुनी तत्कालीन सरकार ने पूंजीपतियों की इस कारगुजारी पर लगाम कसने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम बना दिया। इस कानून से बाजार पर सरकार का नियंत्रण रहने लगा। तय कर दिया गया कि,किस सामान का कितना भंडारण किया जा सकेग। आम आदमी की किल्लत काफी हद तक दूर रही। अब 65 साल बाद,इन वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। कोई भी व्यक्ति चाहे जितना भंडारण कर सकता है और समय आने पर भंडारण की गई वस्तु के मनमाने दाम वसूल सकता है। हालांकि इसमे एक प्रतिबंध लगाया गया है कि,युद्ध और आपदा के समय इन सामानों का भंडारण सरकार के निर्देश पर होगा।
जिस दौर में देश कोरोना जैसी विश्व व्यापी आपदा से जूझ रहा हो उसी दौर के पांच जून 20 को ऐसा अध्यादेश लाने की जल्दी क्या रही होगी? इसको सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है।
गौरतलब है कि जून से ही बहुत से जरूरी सामानों की कीमतें बढ़ गई हैं जिनका लाभ किसान ने कितना उठाया है ,इसका अंदाज लगाया जा सकता है और अब तो संसद के दोनों सदन इसको पारित कर चुके हैं। तब यह अंदाज लगाया जा सकता है कि,आने वाला समय जमाखोरी और कालाबाजारी को बढ़ावा देने वाला होने की पूरी संभावना लिए होगा। बिल के समर्थन में सरकार इसको किसान हितैषी बता रही है। सरकार का कहना है कि अच्छे दाम मिलने तक किसान इसको अपने पास भंडारण कर सकता है और समय आने पर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकता है।

( लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार है )

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