हाथी घोड़ा पालकी-जय कन्हैया लाल की ..
होमेंद्र देशमुख
जन्माष्टमी के त्योहार का इंतज़ार स्कूल के नए सत्र की शुरुआत से ही शुरू हो जाता था । हम भी बच्चे थे । और हम बच्चों को बड़ों से बहुत लाड प्यार मिलते रहता था । कृष्ण की बाल लीलाओं को किताबों में भी पढ़ते तो कन्हैया अपने से लगते थे ।
धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी
काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था,
“इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए”
उनमें कृष्णभक्त कवि रसखान
का नाम सर्वोपरि है। हालांकि वाहिद और आलम भी इसी परम्परा में आते हैं।
रसखान की कृष्णभक्ति की इस काव्यग्रंथ के अलावा सूरदास जी ने भी भक्तिमय वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है। सूरदास ने नेत्रहीनता के बाद भी अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। उन्होंने साबित कर दिया कि जागृत हृदय को किसी नेत्र की जरूरत नही । बालकपन की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में हरि के विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है। बाल-कृष्ण की एक-एक चेष्टा के चित्रण में कवि ने कमाल की होशियारी एवं सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है़-
मैया कबहिं बढैगी चौटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
लगभग 3 पदों में सूरदास जी ने रामकाव्य के जरिये श्री राम के बचपन के कुछ घटनाओं का वर्णन किया है ।
खेलत फिरत कनकमय आँगन पहिरे लाल पनहियाँ।
दसरथ कौसिल्या के आगे लसत सुमन की छहियाँ।
मानौ चारि हंस सरबर तै बैठे आइ सदेहियाँ।
राम के हाथ में नन्हा-सा धनुष सुशोभित हो रहा है। छोटे-छोटे पैरों में लाल पनहियाँ पहने हुए हैं। राम सहित चारों भाई ऐसे प्रतीत होते हैं मानों देह धारण कर चार हंस सरोवर में आ बैठे हों ।
सूरदास जी ने संक्षेप में ही पारिवारिक जीवन के सफल एवं आत्मीयता पूर्ण चित्र खींचे हैं। पारिवारिक जीवन के प्रसंगों में वात्सल्य प्रसंग अति-महत्वपूर्ण है क्योंकि वात्सल्य से ही आगे चलकर ,किशोर और दाम्पत्य पूर्णता पाता है। बिना वात्सल्य दाम्पत्य पुष्प विहीन पौधे की तरह होता है। किसी ने लिखा है , जिस प्रकार पौधे में पुष्प आ जाने पर उसकी सुन्दरता अगणित हो जाती है, वृक्ष में फल आ जाने पर धरती पर उसका अंकुरित होना सार्थक हो जाता है, ठीक उसी प्रकार वात्सल्य से दाम्पत्य गौरवान्वित होता है। सन्तान के जन्म का अवसर माता-पिता तथा पूरे परिवार के लिए कितना आनन्द और उल्लासमय होता है, इसका सजीव अंकन सूरदास जी ने किया है। यद्यपि सूरसागर में श्री राम जन्म सम्बन्धी मात्र तीन पद हैं, परन्तु इतना ही संक्षिप्त वर्णन सम्पूर्ण भाव को प्रकट करने में समर्थ है। उनकी बाल-लीलाओं को देखकर राजा दशरथ और माता कौशल्या हर्ष-मग्न हो जाते हैं। सूरदास ने बाल-सुलभ भावों और चेष्टाओं का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया है ।
हमने कृष्ण को ही बालक रूप में सदैव पूजा । राम को मर्यादापुरुषोत्तम जाना ।
पर बचपन चाहे प्रभु के हों या भक्त के । वात्सल्य रस में डूबा यह पड़ाव सभी का सुहाना होता है । आज बच्चा जल्द बड़ा होना चाहता है और बड़ा अपने बचपन मे लौटने की लालसा में खड़ा रहता है ।
जन्माष्टमी का त्यौहार और सभी के बालजीवन का शायद पहला व्रत होता होगा । एक तो स्कूल की छुट्टी बड़ी मुश्किल से , एक पूरा दिन भूखा रहना और शाम होते होते सिंघडा तिखुर के भोग हेतु घर मे दोपहर से बन रहे सुगंधित पाग पकवान और उसके खुरचन- खढोरन से ललचाकर दिन के अंत के दो तीन घण्टों में उपवास की ऐसी तैसी कर डालते थे …
क्या करें सब्र ही नही होता था ।
ऐसा करते करते किशोर हो गए । जन्माष्टमी की पूजा देर रात कृष्ण जन्म के समय होती है ।
माता ,काकियों ,बहनों और भाभियों को पता होता था । ये बच्चे भूख नही सह पाएंगे और व्रत टूटते ही खाना निकाल कर दे देते थे- लल्ला कुछ खाले… चल बिना उपवास के सही, रात पूजा जरूर कर लेना । और फिर हम भरपेट दाल-भात खा कर शाम को दीवार पर कृष्णजन्म कथा की झांकी , जमुना जी, नाव , गोप ग्वाला बनाने की तैयारी में बिधुन हो जाते थे और हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की ,जयकारा के पहले ही में मनमंजूर नाच करने लग जाता ।
(नन्दलाला ) कन्हैया का मोहक वात्सल्य रूप हमे सदा से आकर्षित करता रहा है। इस बार तो हमारे रामलल्ला (रामलला) की भी खूब जयकारा हो रही है । अयोध्या में बिराजे, रामलला का सुंदर मनोहारी रूप भी अब भूमि पूजन के बाद जारी हुआ है । आप भी तो बचपन मे किसी के लल्ला थे ,आज भी होंगे । तो आइए उसी बचपन को सही याद करके उसी जोश में आइये आप भी बोलिये ,
हाथी घोड़ा पालकी-जय कन्हैया लाल की ..
आज बस इतना ही..
( लेखक वरिष्ठ वीडियो पत्रकार है )