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नशा कानून के दायरे में है तो सहीं, वरना गलत

डॉक्टर देवेन आर्य
मध्यप्रदेश। व्यक्तिगत मानवीय भावनाएं ● सामाजिक नियम ● धार्मिक नियम ● और देश का कानून। ये सब अलग अलग सिस्टम है और इनमे अलग अलग निषेध हैं। यानी कई ऐसी चीजे है, जिनकी धर्म इजाज़त नहीं देता कानून इजाजत दे देता है। और कई चीजे ऐसी है जिनकी कानून इजाज़त नहीं देता या मना करता है उसे धर्म इजाजत दे देता है ।
अब बात चूंकि नशे की चल रही है, तो नशा शराब, सिगरेट, तम्बाकू, gudaku, ड्रग्स, इंस्टेरनेट, गेमिंग, सट्टा हर चीज़ मे है। इसके अलावा और भी बहुत सारे नशे हैं, बहुत सारी लते हैं । कानून ने, समाज ने धर्म ने और व्यक्तिगत तौर पर लोगों ने अपने अपने गलत सही बना रखे हैं और वो उसके अनुसार ही अपना जीवन जीते हैं, उनको जो सही लगता है वो वही करते हैं , अगर उनका वो “सही” कानून और समाज मे गलत है तो वो छूप कर करते है ।
– कानून के दायरे में है तो गलत भी सही
अपनी चर्चा में पहले शराब और सिगरेट को लेते हैं। सरकार इन्हे नशा मानने के बावजूद बेचती है और साथ ही साथ, उसको न पीने का विज्ञापन भी देती है, लेकिन उसे मानती कानून के दायरे में ही है, उसको सही स्थान, समय और मात्रा में लिया जाये तो गैर कानूनी नहीं होता।
– यह कानून के दायरे से बाहर
ड्रग्स और सट्टा दोनो नशे सरकार की तरफ से अवेद्य है, गैर कानूनी है, तो जो कानूनी नशे वाला व्यक्ति है वह ये सोच रहा है की गैर कनूनी नशे वाला व्यक्ति एक गलत व्यक्ति यानी एक अपराधी है। बाकी लोग भी इसी तरह विचार रखते हैं। ये हुई कानून की बात। भले ही शराब सिगरेट भी समाज के युवा को नुक्सान पहुंचाए लेकिन ड्रग्स वाले को ही सजा मिलेगी, शराब वाले को नहीं । (शराब पीने और बचने वालो को गलती पर सजा मिलेगी, जैसे ड्राइव करते समय एक मात्रा से ऊपर शराब मिलना, जहा निषेध है वहा शराब बेचना आदि, लेकिन सिगरेट शराब पीने पर सामान्यत: सजा नहीं मिलती। सामाजिक और धार्मिक दृष्टी से देखें तो शराब वाला भी गलत, सिगरेट, ड्रग्स वाला भी गलत। अब सवाल सजा का तो, सजा तो जिसने कानून तोड़ा उसको होगी।
लेखक: जाने माने चिकित्सक देवेन आर्य

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