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अनहोनी के डर से यहां नहीं मनाते होली..

जहां पूरा देश होली के रंगों में सरावोर रहता है। एक दूसरे को रंग—गुलाल लगाकर भाईचारे का संदेश दिया जाता है वहीं देश में आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां होली के पर्व पर मातम पसर जाता है, पूरे गांव में सन्नाटा नजर आता है। यहां न तो कोई होली के गीत गाता है ओर न ही किसी को कोई रंग—गुलाल लगा सकता है। किसी अनिष्ट के डर से यहां होलिका दहन भी नहीं किया जाता।
किसी को अनिष्ट का डर तो कोई होलिका का वंशज—
कानपुर के झिंझक इलाके के ग्राम रामनगर के निवासी खुद को होलिका का वंशज मानते हुए और उसके साथ घटी घटना को अन्याय मानने के कारण होली नहीं मनाते। वहीँ इसके अलावा झारखंड-प्रदेश के बोकारो जिले के दुर्गापुर तथा वहीं के गुण्डरदेही के एक ग्राम चंदनबिरही; कोरबा, छत्तीसगढ़, के धमनागुड़ी तथा खरहरी ग्रामों के निवासी अपनी अलग-अलग मान्यताओं और कारणों की वजह से होली के पर्व से दूर रहते हैं.
अनहोनी का रहता है डर…
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में खजूरपदर गांव ऐसा है जहां लोग प्रकोप के डर से आज भी होली का पर्व नहीं मनाते हैं। गरियाबंद जिले के खजूरपदर गांव के ग्रामीण किसी अनहोनी घटना के डर से एक लम्बे अरसे से होली का त्यौहार नहीं मनाते हैं। सुदूर वनांचल ग्राम के ग्रामीण आज भी आधुनिकता की चकाचौंध से परे होली के पर्व को लेकर काफी दहशत में हैं। ग्रामीणों के मुताबिक एक लम्बे अरसे से इस गांव में होली का पर्व नहीं मनाने की नसीहत बड़े बुजुर्गो के द्वारा दी जाती है,क्योंकि होलीका दहन करने के साथ ही रंग गुलाल लगाकर होली का पर्व मनाने से देवी प्रकोप की आशंका रहती है। जिसके चलते किसी अनहोनी घटना का भय बना रहता है।

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