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कोरोना का गुड फ्राइडे और सुनामी वाला क्रिसमस

 

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेंद्र देशमुख[/mkd_highlight]

 

 

 

भोपाल में दो दिन पहले ही एक और पत्रकार के कोरोना पाज़िटिव होने की खबर आ गई ।
पता चलते ही उनके शुभचिंतक उन्हें संक्रमण से लड़ने हौसला और हिम्मत दे रहे थे । और वह पत्रकार खुद, हंसी के emmoji से सबका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे । आश्चर्य उनको भी नही होगा क्योंकि वो जानते थे कि देश के साथ साथ भोपाल में जिस तरह कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ी है और लगातार बढ़ते जा रही है उससे, स्वास्थ, प्रसाशन, पुलिस और तीमारदारी में लगे दूसरे लोगऔर उनके परिवारों में जब संक्रमित होने के रोज नए आंकड़े आ रहे हों तब दूसरे कोरोना वॉरियर्स को भी फैलने में समय नही लगेगा । पत्रकारों में को भी । इससे पहले एक और पत्रकार कोरोना को हराकर घर लौट चुके हैं । ये योद्धा हैं जीत कर ही लौटेंगे ।

आग लगी – आग लगी भागो
बम फूटा भागो बाढ़ आई भागो
शेर आया भागो
तूफान आया भागो !
और भीड़ जान बचाने उससे दूर भागती है ।
पर पत्रकार उससे दूर नही भागता । ख़ास कर, लाइव विज़ुअल, जल्दी रिपोर्टिंग और एक अच्छे फ़ोटो के लिए टीवी का रिपोर्टर कैमेरामन और फोटोग्राफर भीड़ के विपरीत ,अपने जान माल की परवाह किये बिना , उल्टे उसी ओर भागता है जिधर ये घटनाएं घट रही होती हैं । सोचिए जब हज़ारों लोग एक ही तरफ भाग रहे होते हैं तब पत्रकार उस भीड़ को चीरते,मुकाबला करते, टकराते उसके विपरीत भाग रहा होता है । भीड़ को भरोसा होता है कि अभी तो भागो, कारण घर जाकर टीवी पर या सुबह अख़बार पढ़कर जान लेंगे ।
भीड़ की ये निश्चिन्तता और भरोसे का नाम मीडिया है । झंझावतें,तिरस्कार आती रहेंगी ,परन्तु समाज मे इसीलिए मीडिया ज़िंदा है और ज़िंदाबाद रहेगा ।

29 दिसंबर 2004 को हम चेन्नई एयरपोर्ट से बाहर निकले । और वहीं से सात घण्टे की लंबी यात्रा पर नागपट्टिनम शहर ,जो यहां से 370 किमी दूर था , सीधे कार से निकल गए ।

वेलकम टू चेन्नई अंग्रेजी में लिखा था ।

मेरी आदत के अनुसार अपने चालक से मैं थोड़ी बातें शुरुआत में ही कर लेता हूं । और ऐसा साथी जिसके साथ अनजान भाषा वाले राज्य में लंबा सफर और वक्त बिताना हो । ड्राइवर सरवनन को थोड़ा समझना चाहता था ।
मैंने पूछा -हिंदी नही आती ?
ड्राइवर – नो हिंदी ओनली इंग्लिश एन्ड..अ तमिल..!

हमने उसे सादा पराठा या आलू बड़े समोसे जैसे चलते फिरते रोडसाइड नाश्ता के बारे में पूछा उसने साफ मना कर दिया । उसने कहा ओनली डोसा सर, दिस टाइम इधर नथिंग मच, बट,इधर नो डोसा ,नथिंग । आल क्लोज्ड । उसने फिर किटर-पिटर तमिल मिक्स अंग्रेजी में और कुछ इशारों में समझाया कि सब बंद है । इंफेक्शन का खतरा है । ओपेन वाटर नॉट अलाउड । इतना समझ गए कि वह कह रहा है छोटे होटलों ,शहर और रास्ते की दुकानें , और होटल ढाबे सब बंद । मैं उससे इसका कारण समझने की कोशिश कर ही रहा था । फ्लाइट लैंड होने से लेकर अब तक सरवनन और चेन्नई शहर को अपन ही सम्हालने की कोशिश कर रहे थे । अपनी अंग्रेजी और तमिल दोनो तंग । मेरे सहयात्री, रिपोर्टर, सीनियर करसपोंडेंट *देशदीप सक्सेना* का कॉल आफिस के कांफ्रेंस मीटिंग से अब जाकर, डिस्कनेक्ट हुआ और फ्लाइट के लैंड होने से लेकर अब तक इशारों में मुझे और ड्राइवर से जुड़े देशदीप जी एक्शन में आए । मेरी टूटी फूटी अंग्रेजी को कवर करते उन्होंने मुझे रिलेक्स कराते सरवनन से अपने उच्चकोटि के इंग्लिश में पूछा – कि शहर और रास्ते की होटलें- रेस्टारेंट आखिर क्यों बंद है ? अब यह इंग्लिश उसको समझ मे नही आया । उसने हथियार डाल दिया ! सर आई नॉट मच इंग्लिश , थोरा इंग्लिश मच तमिल । और अब मैंने देशदीप जी को रिलैक्स का गुजारिशी इशारा करते तमिलनाडु ब्यूरो के हमारे साथी कैमरामैन व्यंकटेश पेरुमल को फोन लगा दिया । एयरपोर्ट पर गाड़ी उसने ही भेजा था । सारी समस्या बताने पर उसने जो हमें समझाया वह इस तरह था कि रास्ते मे , चेन्नई से नागपट्टिनम तक पूरा तमिलनाडु आपको पूरा बंद(आज की भाषा मे lockdown) मिलेगा । क्योंकि चार दिन पहले आए सुनामी से चेन्नई से लेकर केरल के समुद्र तट कई जगह तबाह हुए हैं और जहाँ जहाँ इसका असर था । मरे इंसान, जानवर और समुद्र के नमकीन पानी के जलजले कई किमी अंदर तक घुस जाने से सड़ांध ,बदबू और गंदगी से अब यहां महामारी फैलने का बड़ा खतरा हो गया है । डायरिया तो शुरू भी हो चुका है । कोस्टल एरिया के 20 किमी अंदर तक के सारे शहर कस्बे गांव और हर व्यवसाय बाजार होटल रेस्टारेंट टोटली बंद हैं और आपको 370 किमी कुछ भी नही मिलेगा । गाड़ियां भी केवल जरूरी सेवाएं की ही मिलेंगी ।बसें बंद थी ।।लेकिन कोस्टल एरिया की ट्रेनें तबाही के कारण पहले से ही बंद थीं ।

हमारे ड्राइवर ने चेन्नई से बैंगलोर वाला रास्ता लिया और व नागपट्टिनम वाया चिदम्बरम , पांडिचेरी और कुडलूर जाने हमारी गाड़ी शहर से बाहर निकल आयी ।

सुनामी नाम था 2004 के इस तबाही का । आज चीन से चले कोरोना की तरह ही, इंडोनेशिया से चली सुनामी की लहर ने ठीक उस दिन तक 8 हजार से ज्यादा लोगों को अकेले तमिलनाडु में लील लिया था । आज चौथा दिन है । अब तक 6 हजार लाशें तमिलनाडु में ही मिल चुकी हैं ।अभी भी मलबों से सड़ी गली लाशें निकलने का सिलसिला जारी है ।

यहां के सागर तट से कई सौ किमी दूर सुमात्रा द्वीप के कई किमी गहरे हुए भूगर्भीय प्लेटों के परिवर्तन से वहां सागर तल पर भूकंप आया और सागर जल में ऐसी लहरें उठी जो पानी मे करंट की तरह भारत के इन तटों के कई शहरों को तिनके की भांति बहा दिया । लगभग 20 मीटर तक की ऊंची लहरे होंगी । जब चार दिन पहले ही क्रिसमस के अगले दिन 26 दिसम्बर की सुबह भारत के अंडमान और तमिलनाडु के तटों में तबाही का तांडव किया था । चेन्नई के मरीना बीच ,महाबलीपुरम ,कुडलूर, नागोर, आदि समुद्री तटों के साथ पांडिचेरी के सुंदर तट और बंदरगाह तक को भी तहसनहस कर डाला था । समुद्र का ऐसा कोप भारत के इतिहास में कहीं नही था । लगातार बढ़ती मृतकों की संख्या, बरामद होती लाशों ने पूरा देश और विश्व का ध्यान भारत के सुदूर दक्षिण राज्य के अंतिम छोर पर बसे शहर नागपट्टिनम को तो और भी कुख्यात कर दिया था । यहीं अकेले सबसे ज्यादा लगभग दो हजार लाशें निकल चुकी थीं । समंदर और शहर अब भी यहां लाशें उगल रही थीं ।
भोपाल से चेन्नई पहुँचकर सीधे हमे नागपट्टिनम जाने का ही आदेश हुआ था । पिछली शाम भोपाल से एयरइंडिया की फ्लाइट लेकर मुंबई रुके और दूसरे दिन सुबह आज 29 दिसंबर को हमे किसी तरह जल्दी नागपट्टिनम पहुच कर आज ही इनपुट देना था ।

रास्ते मे भव्य मंदिर और सामने उसका नगर प्रवेश द्वार था । यह था विश्व प्रसिद्ध नटराज टेम्पल और चिदम्बरम शहर । सही अंदाजा लगाया । कांग्रेस नेता और इस समय केंद्र में मंत्री पीसी चिदम्बरम का शहर । दोपहर हो चुका था । पूरा बाजार lockdown था । समुद्र से बहुत दूरी के बावजूद भी यहाँ बंद रखा गया था। बंद दुकानों वाली इस सड़क से आगे बढ़ते दाहिने तरह दिखते नटराज टेंपल के शिखर को मैं कई बार प्रणाम कर डाला । ऐसा अद्भुत अवसर ! पर हम मंदिर नही जा सकते थे , हमारी मंजिल कहीं और थी और रास्ता लंबा । केवल यही कारण नही था । ईश्वर मुझे क्षमा करे..! अक्सर अगर लक्ष्य और काम कुछ और हो तो पर्यटन और दर्शन और निजी आस्था हमारे लिए गौण हो जाया करते हैं । यह बात मैं मीडिया में आते आते आत्मसात कर चुका था । उस भूमि को हमने छुआ, मंदिर के शिखर के दर्शन हुए यह क्या कम है । अपनी आस्था और दृष्टि सबसे पहले केवल हमारा लक्ष्य ही बन जाता है । दाहिना घूम कर सड़क मंदिर के पिछवाड़े से निकल रही थी ।

ड्राइवर सरवनन ने अचानक गाड़ी रोकी और दिखाया – यह एक संस्था द्वारा चलाया जाने वाला होटल है ,आज खुला है केवल खाना मिल सकता है अगर खाने का इरादा हो । सेवार्थ भोजनालय के बाहर कैरियर पर सामान बंधे टूरिस्ट की दो गाड़ियां पहले से खड़ी थीं । हम भी भीतर समा गए । टाट पट्टी में बैठकर केले के पत्ते में परोसा चावल-रसम का भोजन किया । देशदीप जी ने एक पानी के बॉटल सहित तीनों थाली के लिए 100 का नोट दिया और हम आगे बढ़ गए ।
ड्राइवर सरवनन को आज के स्वादिष्ट भोजन और किसी होटल में जमीन में बैठकर केले के पत्ते में खाना खाने के परम सुख की पहली अनुभूति और असल दक्षिण भारत के दर्शन कराने के लिए मैं धन्यवाद देते मैं उसके इस सरवनन नाम का अर्थ पूछ बैठा ।

नटराज यानि शिव का नृत्य मुद्रा रूप । शिव जी के दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय । सरवनन कार्तिकेय का तमिल नाम है ।

चिकनी पक्की सपाट सड़क , ऊंचे ऊंचे नारियल के पेड़ों से नारियल तोड़ते किसान , एक सायकल पर सौ पचास हरे नारियल लटका कर आते जाते किसान । धान के हरे भरे खेतों में कहीं कहीं सुनहरे रंगों की आभा भी आने लगी थी । फसल तैयार होने में कम ही समय बचा था । छत्तीसगढ़ में चावल की खेती करने वाले किसान-पुत्र होने के कारण मेरा लगाव और बढ़ गया था ।

सरवनन का सूमो पांडिचेरी (अब 2006 से पुडुचेरी ) के प्रवेश द्वार पर रुक गया । केंद्रीय सुरक्षा बल ने गाड़ी की तलाशी ली और तसल्ली पाकर मुस्कान के साथ खबर भी दी कि मशहूर अभिनेता विवेक ओबेराय भी पास के तट पर राहत कार्य मे लगे हैं । वो आज ही पॉण्डी आए हैं । इधर 600 लोग मर गए हैं ।चेन्नई और तमिलनाडु यहां तक स्थानीय भी पांडिचेरी को पॉण्डी कहते थे । फ्रांसीसी उपनिवेश, वास्तुकला के द्वार, भवन ,दीवारों और गलियों से होकर हम पांडिचेरी से बाहर निकल रहे थे । गाड़ी फिर चेक होने लगी । कारण था केन्द्रसाशित प्रदेश होने के कारण यहां की सस्ती शराब की स्मगलिंग ।

चार बज गए । हम वापस सड़क पकड़ लिए । केले और नारियल के खेत निकलते रहे । मौसम में अच्छी खासी गर्मी थी जैसे मध्यप्रदेश का मार्च अप्रैल का महीना हो । कडलूर और करैकल के बाद इन किनारों पर ज्यादा तबाही नही थी । गांव के घर बंद से दिखे लेकिन बाहर पके केलों का एक दो खाम रखा होता था । सरवनन ने बताया कि यह बेचने के लिए है । जिस यात्री को केला लेना हो जाकर ले सकता है । गाड़ी रुकी तो बेचने वाला बाहर आ जायेगा । इन्फेक्शन के खतरों के कारण वह घर के बाहर नही बैठा है ।
लाल मिट्टी की आग उगलती सी दिखती जमीनें पर सूरज डूबने में अभी बहुत समय था । अब यदा कदा गाड़ी से ही समुद्र और उस पर चलतीं प्रसाशन की निरीक्षण नौका दिख जाती थीं । पम्पूहार लिखा भी एक बोर्ड दिखा । फट से ध्यान घर लौट आया । भोपाल में जीटीबी काम्प्लेक्स में मेरे घर के नीचे ही सालों से तमिलनाडु के हथकरघा कपड़ों का सरकारी ब्रांड शो रूम है । यहीं कहीं वह जगह या केंद्र आसपास है जिसके नाम पर यह ब्रांड का नाम पड़ा ।
आगे बढ़ते रहे । अचानक पुलिस ने रोक कर आने का कारण पूछा । बगल से गुजरती सरकारी ट्रकों से बदबू आ रही थी,सड़को पर ब्लीचिंग ऐसे डाला गया था जैसे चूने का खदान हो । हमे भी नाक रुमाल ढक कर जाने कहा ।
नागौर कस्बे के पास कावेरी के सहायक किसी नदी के मुहाने से अंदर आया सुनामी का तूफान जबरदस्त तबाही मचाए हुए था । पुल ऊंचा था । नीचे से बड़े बड़े जहाज निकलते होंगे । पर कई बोट और जहाज आड़े टेढ़े नदी के कीचड़ नुमा पानी मे पड़े थे । भयावह दृश्य थे । उस कीचड़ में ये स्टीमर बच्चे के कागज की भीगे नाव की तरह पड़े थे । वहां तक तो लोग पहुचे ही न होंगे । जिंदा तो कोई सवार नही होगा पर इन किनारों से असहाय बदबू ने हमे रूक कर कुछ शॉट लेने भही नही दिया । पुलिस ने गाड़ी से उतरने मना किया था । लेकिन मैंने गाड़ी के बंद कांच से तबाही के इस मंजर के कई शॉट्स अपने कैमरे से बना ही लिए । देशदीप जी को माइक से कुछ बोलने का आग्रह किया लेकिन हिम्मत उनकी भी नही हुई ।

शाम साढ़े पांच बजे हम नागपट्टिनम पहुचे ,रास्ते के मंजर ने दिल दहला दिया था । चेम्बर ऑफ कॉमर्स की बिल्डिंग .

कलेक्टर आफिस पॉलीटेक्निक कालेज, और डच शैली की ऐतिहासिक नागपट्टिनम म्युनिसिपल आफिस को छोड़ते हम सीधे नागपट्टिनम अंतराष्ट्रीय पोर्ट को तरफ बढ़ते गए । सड़क धूल चुकी थी लेकिन बदबूदार मलबा किनारों पर पड़ी थीं । बाउंड्रीवाल के रंग कीचड़ सूख चुके थे । म्युनिसिपल लिखा एक टैंकर कलेक्टर आफिस के चौराहे के किसी मूर्ति को भी धो रहा था ।
पोर्ट यानि बंदरगाह के पहले ही हम गाड़ी से उतर गए । शाम होने में कुछ ही समय था रोशनी इतनी थी कि कैमरा अभी एक घण्टा और काम कर सकता था । कैमरा कट करने की फुर्सत मिलती थी न मौका । जिधर कैमरा घूमे तबाही तबाही तबाही । हम मलवों से निकलती बदबू और संक्रमण की चेतावनी भी भूल गए । धड़ा धड़ शूट होने लगा ।
डाक बंगले के पोर्च पर खड़ी होने वाली अम्बेसेडर कार उसी पोर्च के छत पर अपनी एक टायर हवा में लहराते खड़ी थी और पोर्च में घुसा बैठा था घुसपैठिया , एक बड़ी स्टीमर । उल्टी पलटी बड़ी बड़ी नावें और मोटर बोट तो ऐसे पड़ी थीं जैसे गिरी हुई दीवारों की ईंटें पड़ी होती हैं । स्थिर कैमरे के सामने जो दिख रहा होता है उसे हम टीवी की भाषा मे एक फ्रेम कहते हैं । मैं ट्राइपॉड के साथ शूट कर रहा था । कैमरे के एक फ्रेम में कई नावें नही स्टीमर दिखती थीं कोई उल्टी कोई पलटी, कोई आसमान के तरफ नोक करके खड़ी । नीचे कीचड़ का अंबार । आगे पोर्ट तक का रास्ता अभी से बंद । देशदीप जी समान समेटने आए एक परिवार से बात करने लगे । वह पिछली रात शहर के अंदरूनी हिस्से में रिश्तेदार के घर उस रात क्रिसमस मनाने गए थे इसलिये बच गए ।

25 दिसम्बर को नागपट्टिनम में भी *क्रिसमस* जोरदार सेलिब्रेट किया गया था । आधी रात तक आतिशबाजी हुई और लोग तीन चार बजे सोने चले गए थे । अधिकतर नौकाएं क्रिसमस मनाने पोर्ट पर लौट चुकी थीं । सुबह 4.22 पर सुनामी की ऊंची ऊंची लहरों ने यहां सबकुछ तबाह कर दिया था । तब अधिकतर लोग सो रहे थे और सोते रह गए । मौत का आंकड़ा यहां सबसे ज्यादा था । नागपट्टिनम का यह अंतराष्ट्रीय पोर्ट है जहां से जाफना मलेशिया और इंडोनेशिया के लिए जहाजें जाती हैं । पोर्ट के पहले बेसिन में घरेलू और मछुवारों की नौकाएं चलती थीं । पास में पोर्ट से जुड़ी कालोनी और बस्तियां थीं । तटबंध तोड़कर बेसिन केे रास्ते सुनामी की लहरें उल्टे शहर की ओर घुसने से यहां हर तरफ तबाही थी । बाढ़ हो या सुनामी , पानी से हुई बर्बादी हर चीज को तहस नहस करके खराब कर देती है । दो हजार लाशें बरामद होने के बाद भी इन मलबों से अभी भी लाशें निकलना जारी थी । दबी लाशों और सामानों की सड़ांध से यहां की हवा खराब हो चुकी थी । गीले ब्लीचिंग के ट्रक सीधे रेत की तरह खाली कर फैलाए जा रहे थे । उससे भीयह स्थिति और भयावह दिखती थी । सब कुछ बंद । पोर्ट से वापस बस स्टैंड की बढ़े । वहां मलवों से भरा मैदान सा था सामने डाक घर में झांकने पर वहां कुछ भी साबुत नही दिखा । यहां तक लहरें शायद कमजोर हो चुकी थी । इसलिए लाल रंग का उसका बोर्ड अभी भी लटका था । पास में पुलिस थाना भी कंट्रोल रूम की तरह व्यस्त था ।

हम उस दिन रात होते ही 65 किमी दूर तंजावुर में ठहरने चले गये । दूसरे दिन ओबी वैन हमें वही मिली और हमने अगले दो- तीन दिन वहीं रुक कर तबाही की जगहों पर जा जा कर स्टोरी कवर की । नागपट्टिनम भी कई बार गए । वहाँ थाने के बाजू में स्थित करपकम रेस्टारेंट को प्रसाशनिक अधिकारियों ने अब चालू करवा लिया था । यहां भी ‘चेट्टिनाडु’ ..!उसी से लगे चेट्टीनाडु होटल अभी खोलने की तैयारी में व्यस्त था । क्योंकि वहां तबाही का असर अभी भी था ।
एक जनवरी को नया साल आ गया हम उस दिन तंजौर से 75 किमी दूर वेलेंकनी चर्च गए । यहां भी सौ से ज्यादा लाशें उनकी मिली थीं जो सुनामी की रात क्रिसमस मनाने परिवार सहित यहां आए थे । चर्च के बाहरी परिसर व आसपास से लाशें निकल चुकी थीं कीचड़ धुल कर यह आज ही खुला था । जिंदा बच गए आसपास के कुछ लोग आज चर्च और ईश्वर को धन्यवाद देने आ रहे थे । तो कुछ इतने तूफान के बाद भी समुद्र के सामने सलामती से खड़े इस सफेद संगमरमर के खूबसूरत चर्च को दांतों तले उंगली दबाकर देखने वाले थे । लेकिन महामारी के खतरे से सोशल डिस्टेंसिंग के लिए नाक में कपड़े बांध कर कुछ लोग ही अंदर जा पाए । मैंने भी लेडी ऑफ गॉड ‘वर्जिन मैरी’ को बाहर से ही प्रणाम कर लिया ।
हमें अब लौटना था । अगली सुबह यहां से 400 किमी दूर ,तमिलनाडु में ही कांचीपुरम जाकर शंकराचार्य के गिरफ्तारी से जुड़ी खबरें और लंबा कवरेज करने का दायित्व हमे सौंप दिया गया था ।
लगे हाथ यह भी बता दूं कि मुझे 28 जनवरी 2005 तक तमिलनाडु के अलग अलग शहरों में रहना हुआ । इसी दौरान इधर घर पर मेरी पत्नी ने 21 जनवरी को हमारे पहले संतान को जन्म दिया ।

वेलेंकनी चर्च के सामने बनी दीवार के पार समंदर अब भी चर्च को ही ताक रहा था । जैसे ईश्वर को चैलेंज कर रहा हो । समंदर का एक शॉट लेने मैं भी तट पर गया । मन किया यहां से जाने से पहले एक बार उसे और देख लूं । सागर फिर अपने धुन में मगन हो चुका था । अब तो इसे देवता कहूं या खूनी ! कुछ उलझा हुआ मन था । कुछ समझ नही आया किसका दोष था …मैं समंदर को ज्यादा देर नही देख पाया ।
और फिर एक यात्री के कहने सुनने से उसे फर्क भी क्या पड़ेगा ।
मेरे घर से हजारों मील दूर भारत का यह अनन्त छोर और मैं..!
“जहां न पहुँचे रवि -वहां पहुँचे कवि”
ये कवि असल मे गाथा गाने वाला गायक भी हो सकता है और कहानी बताने वाला पत्रकार भी। भीड़ के विपरीत मीडिया वहीं उल्टे भागती है जहां खबर घटित हो रही हो । उसके रास्ते अलग नही होते । केवल दिशा विपरीत होती है । वह भी इंसान है । उसे भी वायरस और चोट लग सकते हैं । सारी कोशिशें ख़बरें निकालने और बताने की होती हैं । चाहे देशकाल, मौसम दिशा और परिस्थितियां कितने भी विपरीत हों ।

कोरोना के lockdown और गुड फ्राइडे क पवित्रे मौके पर मुझे अपनी वह कहानी आज फिर याद आ गई । ईश्वर इस महामारी से सबको बचाए । आइये हम सब प्रार्थना करें ..

आज बस इतना ही..!

 

 

(  लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है   ) 

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