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कोरोना संकट : कभी कुछ देने भी पधारो बाबा…

 

[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]विनीत दुबे[/mkd_highlight]

 

 

पिछले कुछ सालों से देश की आम जनता अपने देशभक्त होने का कई बार सबूत दे चुकी है। इसके साथ ही देशभक्ति और जनसेवा के लिए अपना मन मन और धन अर्पण करने के लिए प्रतिबद्धता भी जता चुकी है। देश के प्रधान ने जब भी जो भी मांगा देश ने दिया है बगैर किसी भी सोच विचार के। अब परिस्थितियां आम जनता के हाथों से बाहर जाती दिखाई पड़ रही हैै। अब जनता के मन की बात यही है कि बहुत ले लिया इम्ताहन कभी कुछ देने भी पधारो बाबा…।

देश की 135 करोड़ जनता बेबस आखों से आपने लाचार हाथ फैलाए देश के प्रधान की ओर निहार रही है। इस बेबसी में हर वर्ग का व्यक्ति शामिल है। चाहे वो आलीशान घर बंगले और कारखानों का मालिक हो या फिर आलीशान बंगले या कारखाने में काम करने वाला अदना सा मजदूर हो। या फिर धूल से सनी सड़कों के किनारे दो जून की रोटी कमाने वाले मजदूर, ठेलेवाले, सब्जी विक्रेता, जूते सुधारने वाले ही क्यों न हों। छोटे मोटे भोजनालय से लगाकर आलीशान होटलों में मंहगी पोशाकों के नीचे अपनी गरीबी छिपाकर मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं सर.. कहने वाले अब देश के प्रधान की ओर सहायता आस लगाए हुए हैं।

वर्तमान में कहने को तो शहर, बाजार और कारखानों को बंद हुए सिर्फ एक माह और कुछ ही दिन हुए हैं। इन चंद दिनों में आने वाले करीब छह से आठ माह की इबारत लिखी जा चुकी है। देशभर के कारखानों में मशीनों की आवाज खामोश हो चुकी है। इस खामोशी से मजदूरों के जीवन में भी सन्नाटा पसर गया है उन्हेें अपनी नौकरी चिंता सता रही है आने वाले दिनों में रोजी रोटी का संकट नजर आने लगा है।

वह अपने मालिकों की ओर निहार रहे हैं लेकिन कारखानों के मालिकों की हालत भी मजदूरों की भांति ही हो रही है। वे जिन कंपनियों को माल दिया करते थे वे भी बंद हैं तो माल कहां बेचा जाए जो पूंजी फंसी है वो अलग। बैंकों से अरबों रूपए का कर्जा लेकर कारखाने चला रहे मालिकों के पास कर्ज के ब्याज चुकाने के अलावा सरकार को दिए जाने वाले टैक्स की राशि का संकट है। साथ ही अपने आधीन काम करने वाले हजारों मजदूरों के परिवारों की जिम्मेदारी भी। उद्योग जगत के जानकार बताते हैं कि आने वाले छह से आठ महीने तक बाजार की हालात नाजुक दौर में रहेगी।

उद्योग जगत के अलावा पर्यटन जगत भी कोरोना संकट में सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। देश भर की होटलों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या करोड़ों में अनुमानित है। इसके साथ ही परिवहन जगत भी पर्यटन का ही एक हिस्सा है करोड़ों की ताताद में बस, टैक्सी, ऑटो आदि के चालक और परिचालकों के परिवारों के इंजन में ईंधन खत्म सा नजर आ रहा है वे रिजर्व में चल रहे हैं।

आने वाले समय में फिजीकल डिस्टेंस के नियम के पालन पर अधिक जोर रहेगा ऐसी स्थिति में लोग भीड़ भाड़ वाले स्थानों से दूरी बना लेंगे इसके आलावा पब्लिक परिवहन साधनों का उपयोग भी कम ही होगा ऐसे में इन सेक्टरों से जुड़े लोगों के सामने जीवन की गाड़ी खींचना आसान नहीं होगा।

होटल, ढाबों, पान के ठेलों, सड़क किनारे पानी बताशे बेचने वाले जैसे छोटे मोटे खानपान का व्यवसाय करने वालोें को भारी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में देश के एक बड़ा तबका चाहे वह अमीर हो या फिर गरीब सभी देश के प्रधान की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है कि वह अमीर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की परेशानियों का अध्ययन करें और आर्थिक राहत पैकेजों की घोषणा करें ताकि नदी के पानी की भांति उसके किनारे रहने वाले हर गांव- शहर और महानगर की जमीन प्यासी न रहे।

देश का हर तबका यही कह रहा हैं कि हमने आपकी एक अवाज पर आपको संपूर्ण बहुत दिया, जब धन मांगा तो हमारे बच्चों ने अपनी गुल्लकें भेंट कर दी माताओं ने जेवर भेंट कर दिए अमीर गरीब हर वर्ग ने कुछ ने कुछ दिया है। आज आपकी बारी है कभी तो कुछ देने पधारो बाबा…।

 

(  लेखक मप्र के सीहोर जिले के ​वरिष्ठ पत्रकार है  )

 

 

 

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