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कांग्रेस को 13 वीं बार मिला गैर गांधी अध्यक्ष

दिल्ली। राहुल गांधी ने आज (बुधवार) चार पन्नों को एक पत्र लिखकर कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। राहुल ने लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए पत्र अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया । राहुल गांधी के इस्तीफ के बाद 133 साल पुरानी पार्टी की जिम्मेदारी 91 साल के मोतीलाल वोरा के हाथों में सौंपी गई है। दो दशक बाद ऐसा हुआ है जब कांग्रेस को गैर गांधी अध्यक्ष मिला है। अगर इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो 1947 में देश की आजादी के बाद से अब तक कांग्रेस के 18 अध्यक्ष हुए हैं। जिसमें सिर्फ 5 अध्यक्ष ही गांधी परिवार से रहे, जबकि 13 अध्यक्ष का गांधी परिवार से दूर-दूर तक नाता नहीं रहा, लेकिन ये भी एक बड़ा सच है कि गांधी परिवार के सदस्यों के पास पार्टी की कमान लंबे समय तक रही है। आइये जानते हैं कब-कब किसने थमा कांग्रेस का हाथ…

कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस आज बुरे दौर से गुजरे रही है। 28 दिंसबर 1883 में अस्तिव में आई इस पार्टी का काम आज से पहले राहुल गांधी संभल रहे थे। राहुल को पार्टी की जिम्मेदारी 11 दिसंबर 2017 को दी गई थी। राहुल गांधी ने पार्टी का नेतृत्व करते हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब में पार्टी को जीत दिलाई थी। हालांकि राहुल जीत का ये सिलसिला लोकसभा चुनाव 2019 में बरकरार नहीं रख पाए। पार्टी ने राहुल के नेतृ्त्व में चुनाव लड़ा और सिर्फ 52 सीट पर ही जीत हासिल की। खुद राहुल अपनी अमेठी सीट हार गए । इस हार के बाद राहुल ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का फैसला किया और उस पर कायम रहे। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने राहुल को मनाने का प्रयास किया, लेकिन वे विफल रहे।

कब-कब किसे मिली कांग्रेस की जिम्मेदारी

1947: देश आजाद के वक्त जेबी कृपलानी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उन्हें मेरठ में कांग्रेस के अधिवेशन में यह जिम्मेदारी दी गई थी। कृपलानी ने 1948 तक अध्यक्ष पद की कमान संभाली।

1948-49 : इस दौरान कांग्रेस की कमान पट्टाभि सीतारमैया के पास रही। जयपुर कांफ्रेंस की उन्होंने अध्यक्षता की थी। सीतारमैया के पास भी एक साल तक पार्टी की जिम्मेदारी रही।

1949-50: हिन्दी को अधिकारिक भाषा देने की मांग करने वाले पुरुषोत्तम दास टंडन इस वर्ष में कांग्रेस अध्यक्ष बने। नासिक अधिवेशन की अध्यक्षता की टंडन ने ही की थी। टंडन ने 1950 से 1955 तक कांग्रेस की कमान संभाली।

1955-1959: यूएन ढेबर इस बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अमृतसर, इंदौर, गुवाहाटी और नागपुर के अधिवेशनों की अध्यक्षता की थी। पूरे पांच साल जिम्मेदारी संभालने के बाद 1959 में इंदिरा गांधी अध्यक्ष चुनी गई।

1960-1963: तीन साल के लिए नीलम संजीव रेड्डी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभाली। उन्होंने बंगलूरु, भावनगर और पटना के अधिवेशनों की अध्यक्षता की थी। इसके बाद रेड्डी देश के छठे राष्ट्रपति बने थे।

1964-1967: इस दौरान भारतीय राजनीति में किंगमेकर कहे जाने वाले के कामराज कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। उन्होंने भुवनेश्वर, दुर्गापुर और जयपुर के अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। कामराज ने पं. नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने में अहम भूमिका निभाई अदा की थी।

1968-1969: एस. निजलिंगप्पा ने 1968 से 1969 तक कांग्रेस की अध्यक्षता की थी। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था।

1970-71: बाबू जगजीवन राम 1970-71 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।

1972-74: शंकर दयाल शर्मा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। नीलम संजीव रेड्डी के बाद शंकर दयाल शर्मा दूसरे अध्यक्ष रहे, जिन्हें बाद में राष्ट्रपति बनने का मौका मिला।

1975-77: देवकांत बरुआ कांग्रेस के अध्यक्ष बने। यह इमरजेंसी का दौर था। देवकांत बरुआ ने ही इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा का चर्चित नारा दिया था।

1977-78:  इस दौरान ब्रह्मनंद रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। बाद में कांग्रेस का विभाजन हो गया। जिसके बाद इंदिरा गांधी कांग्रेस(आई) की अध्यक्ष बनीं। वह 1984 में हत्या होने तक पद पर रहीं।

1985-1991: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली। राजीव गांधी 6 साल तक पद पर रहे।

1992-96: राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव 1992-96 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। नरसिम्हा राव बाद में देश के प्रधानमंत्री बने।

1996-98: सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने। वह 1996-1998 तक इस पद पर रहे।

1998 से 2017: सीताराम केसरी के बाद सोनिया गांधी अध्यक्ष बनी। वे सबसे लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष पद रही।

2017-2019: इस दौरान सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी गई। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल ने 3 जुलाई 2017 को पार्टी पद से इस्तीफा दे दिया।

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