2013 का बद्रीनाथ बनाम कोरोना का कोटा : संकट अपनों के पास पहुचने का…….
[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]होमेन्द्र देशमुख [/mkd_highlight]
” समस्या अपनी न हो तो कोई परेशानी नही, समस्या दूसरी की हो तो भी कोई परेशानी नही लेकिन अगर समस्या अपनी ही हो तब परेशानी होना ही है । ”
भारत-चीन सीमा से लगे माना गांव के बाहर बने सेना के हेलीपैड में आज सुबह से राहत में लगा एक भी हेलीकाप्टर नही उतरा । सुबह से ही मौसम खराब था ।
आज 21 जून है और पिछले 16 -17 जून 2013 की दरमयानी रात उत्तरांचल में आए बादल फूटने जैसे जलजले से नीलकंठ पर्वत के एक छोर पर स्थित केदारनाथ धाम और उसके आसपास सबसे ज्यादा तबाही हुई थी ।
कितनों की मौत हो चुकी थी ,कितने अब भी लापता थे। इसी नीलकंठ पर्वत के दूसरे छोर पर बद्रीनाथ धाम आए देश भर के यात्री यहां पिछले आठ दिनों से फंसे थे । मंदिर और कस्बा तो सुरक्षित था । लेकिन यहां से गुजरती अलकनंदा ने नीचे जाते जाते अपने आसपास के रास्ते किनारे और कस्बों को बुरी तरह बर्बाद कर दिया था ।
पूरा पहाड़ आवागमन के लिए बंद था । लाखों की लग्ज़री कारें, बाइक बद्रीनाथ के गलियों में खड़ी थीं । यहां से पैदल भी निकलना मुश्किल था । यहां से 38 किमी नीचे जोशीमठ तक प्रसाशन और राहत दल सड़क साफ कर नीचे ऋषिकेश से तो कुछ ही दिन में आने लग गए थे लेकिन बद्रीनाथ तक पहुचने के लिए अब भी कोई रास्ता नही था ।
एक मात्र हाइवे पैदल चलने लायक भी नही बचा था , ऊपर से गोविंद घाट पर अलकनंदा ने पूरे पुल को ही लील लिया था । सेना और सीमा सड़क संगठन के लोग भी कुछ नही कर पा रहे थे । ऐसे में यहां किसी तरह का राहत सामान , चिकित्सा दल भेजने या यहां फंसे यात्रियों को निकालने का एक मात्र जरिया था हेलीकाप्टर ।
17 जून को हादसे के बाद सारा देश और प्रसाशन का ध्यान केदारनाथ , और उनके पड़ावों पर फंसे लोगों और शव निकालने पर ज्यादा था । पर बद्रीनाथ में सुरक्षित लेकिन यहां घिर कर फंसे लोगों में अब बेचैनी बढ़ चुकी थी । उसका एक बड़ा कारण था , एक और बादल फूटने और बद्रीनाथ के आसपास चीन सीमा पर केंद्र होने की आशंका से डराती मौसम विभाग की चेतावनी ।
19 जून को एबीपी न्यूज़ की टीम यहां पुहचने वाली पहली मीडिया टीम और हम चार लोग मैदान से पहुचने वाले पहले बाहरी लोग थे । आज ही यहां भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल ने अलकनंदा के किनारे एक हेलीपैड बनाया था ।
जिस पर स्थानीय राहत में लगा सेना का एम आई -17 हेलीकाप्टर अभी अभी एक लैंडिंग टेस्ट कर चुका था ,लौटते में उसने 12 यात्रियों को वहां से लिफ्ट किया था ।
इसी उम्मीद में सबने अपना होटल ,गाड़ी, अतिरिक्त समान बद्रीनाथ और माना गांव के होटलों और गलियों में लावारिस छोड़ दिया और हेलीकाप्टर के इंतज़ार में इसी हेलीपैड पर दौड़ लगा दी थी ।
घटना के बाद , हमारा हेलीकाप्टर यहां उतरने वाला दूसरा लेकिन निजी क्षेत्र का हेलीकाप्टर था । वहां से हेलीकाप्टर के मालिक मप्र के एक विधायक को अपने क्षेत्र के तीन लोगों को वहां से निकालना था । हम उन्ही के साथ खाली जाते हेलीकाप्टर पर सवार हो कर वहां पहुचे थे ।
उन तीन यात्रियों के बैठने के बाद हेलीकाप्टर में जगह नही बची और अगली खेप के इंतज़ार में मुझे एक और साथी के साथ वहां रुकना पड़ गया । पहले मौसम और फिर बाद में निजी हेलीकाप्टर को उड़ने से मनाही के कारण मैं वहां तीन दिन रुक गया ।
उत्तराखंड सरकार ने यात्रियों के लिए अब होटल फ्री कर दिया था । रुक क्या गया ,अब मैं भी वहां फंसे लगभग छः हजार यात्रियों में शामिल था । इस बीच सेना के हेलीकाप्टर आते रहे और धीरे धीरे कर दो दिनों में बमुश्किल 432 यात्रियों को निकाल कर जोशीमठ तक पहुँचा पाए थे ।
छत्तीसगढ़ सरकार ने यहां फंसे अपने राज्य के निवासियों के लिए पिछले दो दिन से एक किराए का हेलीकाप्टर भेजा था उससे उन्होंने अब तक 72 यात्रियों को भी निकाल लिया था ।
बद्रीनाथ से माना गांव मार्ग पर लगी यह कतार लंबी थी । माना भारत का आखिरी गांव था इसके बाद कोई आबादी नही । बस भारत और चीन की सेना, वह भी आमने सामने । लोग यहां से निकलने के लिए बेचैन थे । मौसम के फिर बिगड़ने की भविष्यवाणी का खौफ, अपनों से दूरी का अहसास और सामने पहाड़ों पर घिरते घुमड़ते बादल ,बिना गरजे तन मन और हृदय को कंपा देते थे ।
होटल छोड़ चुके परिवार छोटे दुधमुहे बच्चों तक के साथ सड़क पर लाचार और मजबूर यात्री लाइन लगा कर बैठे थे लगातार कई दिन । सबको यही लगता था । लाइन टूट गई तो कोई और का नंम्बर आ जायेगा । और हम फंसे रह जाएंगे ।
रोज होटलों धर्मशालाओं में बारी बारी जाकर केवल फ्रेश होने जाते और तैयार हो कर आकर कतार में फिर लग जाते । हेलीकाप्टर के इंतज़ार में आठ दिन बाद आज लगभग 3000 लोग कतार में लगे थे और मौसम आज ज्यादा खराब था ।
सुबह के सवा नौ बजे ही थे कि गड़गड़ करते हल्की बारिश और कोहरे से भरे पहाड़ को चीरती नीले रंग की एक निजी सात सीटर हेलीकाप्टर आ गई । और बारिश में भीगते कतारबद्ध लोग चिल्ला उठते .. जय छत्तीसगढ़.. छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया और कैप्टन पुषोत्तम जिंदाबाद ..!
गज़ब के पायलट थे कैप्टन पुरषोत्तम ..! जांबाज …। सेवन सीटर हेलीकाप्टर में कैप्टन अपने साथ को-पायलट इसलिए नही रखते थे कि उसकी एक सीट पर एक अतिरिक्त यात्री को ले जा सके ।
ऐसा आदमी जो समय की कमी ,मौसम के खतरों के कारण लंच ब्रेक नही लेते थे और निकाले जा रहे यात्रियों के दिये बिस्किट से उड़ान के दौरान ही लंच कर लेते थे ।
20 मिनट की उड़ान होने के कारण डेढ़ घण्टे में वे एक चक्कर लगाते और दिन भर में छत्तीसगढ़ से आए लगभग 55 से 60 यात्रियों को यहां से निकाल लेते थे । हेलीपैड पर छत्तीसगढ़ के इन बचे 172 यात्रियों की अलग लाइन लगी थी और सबको अपने सरकार पर बड़ा गर्व हो रहा था ।
बीच बीच मे मुख्यमंत्री रमन सिंह जिंदाबाद का नारा भी यहाँ लग जाता । आज यह हेलीकाप्टर 28 लोगो को निकाल चुका था और सेना का एक भी हेलीकाप्टर नही आ पाया था । कतार में बैठे दूसरे लोग मुंह ताकते रह गए थे ।
हमारे सेना पर हमें गर्व होता है ,लेकिन सेना का एम आई -17 हेलीकाप्टर इस मौसम में उड़ान नही भर सकता था । न जाने क्या हुआ और दोपहर बाद छत्तीसगढ़ सरकार का वह निजी हेलीकाप्टर नही आया । कतार में बैठे हज़ारों लोग आज फिर मायूस हो गए ।
अगली सुबह छत्तीसगढ़ सरकार का वह चौपर सेना के हेलीकाप्टर से पहले फिर आ गया । आया तो उसे कह दिया गया कि आम कतार से भी एक अनुपात एक के हिसाब से यात्रियों को ले जाना होगा । उत्तराखंड सरकार के राहत में लगे अधिकारियों ने अब इसी शर्त पर उसे यहां राहत हेलीकाप्टर उड़ाने की अनुमति दी थी ।
राजस्थान के कोटा में फंसे छात्रों को देश भर में चिंतित उनके अभिभावक किसी तरह घर ले आना चाहते हैं । पता नही कोरोना का संकट और लॉकडाउन कितना और खिंचे । देश के हर राज्य में परिस्थितियां उस समय के बद्रीनाथ से खराब नही तो कमतर भी नही।
यहां तो हर शहर बद्रीनाथ बना हुआ है । ऐसे में उत्तर प्रदेश अपने राज्य से जुड़े छात्रों को कोटा निकालने बसें भेजी । उनके निवासी माता-पिता अपने बच्चों के लिए चिंतित ही नही बद्रीनाथ की स्थिति की तरह खौफजदा और बेचैन हैं ।
राजनीति तब भी हुई थी अब भी दिख रही है । बहुत और लोग भी फंसे हुए हैं । खुद उत्तर प्रदेश के कई दूसरे लोग उसी कोटा और दूसरे शहरों में फंसे हैं । पर केवल छात्रों के अलावा अच्छा होता यह शिथिलता और सावधानी के दावे बरत कर सरकारों द्वारा दूसरे और लोगों को भी निकाला जा सकता था , निकाले जा सकते हैं…!
इसकी गम्भीरता , उत्तर प्रदेश के इस प्रयास पर सवाल खड़े करने वालों के साथ साथ उन सरकारों के लिए भी कम नही है , जिनके निवासी यहां-वहां फंसे हुए हैं । क्योंकि “समस्या अपनों की हो तो उन अपनों के साथ विपत्तियों के समय खड़ा होना सरकारों का काम है” ।
सरकारें जब अपने निवासियों के लिए मुसीबत के समय खड़ी होती हैं तब अपनी सरकार पर सभी को गर्व होता है । पर चीन्ह चीन्ह कर राहत पहुचाने से बाकी जनता ठगी भी महसूस करती है ।
वैसे मैं चौथे दिन किसी तरह बद्रीनाथ में एक फाइव स्टार होटल के बाजू में बने निजी हेलिपैड से एक एयर एम्बुलेन्स के जरिये जोशीमठ पहुँचा तब पहाड़ पर बने हेलीपैड पर मप्र सरकार का एक हेलीकाप्टर भी कपड़ों से लिपटा खड़ा मप्र सरकार की शोभा बढ़ा रहा था । पता चला मौसम उसके अनुकूल नही .!
खैर यह कहानी किसी और दिन..
पर कोरोना के इस संकट काल मे कोटा में फंसे छात्रों और बद्रीनाथ में फंसे उन हजारों श्रद्धालुओं की कहानी एक सी है । दूसरे राज्य भी अब वहां से अपने छात्रों को लेने वहां जा सकते हैं । राजस्थान सरकार खुद यह पहल कर रही है ।
कोरोना के इस दौर में कुछ लोगों का काम अनवरत चालू है । पुलिस ,स्वास्थ्य और प्रसाशन के कुछ अति आवश्यक सेवा । मीडिया भी संक्रमण के खतरों के बावजूद अपना कर्तव्य निभाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है । ‘मौका भी है और दस्तूर भी’ , कि मीडिया में होते यह मेरे लिए एक और अवसर भी है यह बताने का कि जब लोग मौत और उसके खौफ से दूर भागते हैं तब पत्रकार अपना कर्तव्य निभाने उल्टे भीड़ के विपरीत उसी घटना स्थल की ओर दौड़ लगाता है और कई बार मेरी तरह वहां जाकर फंस भी जाता है..
It happens only with media…
आज बस इतना ही…!
( लेखक वरिष्ठ विडियो जर्नलिस्ट है )