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कृषि कानून बने कुछ ही दिन हुए और किसान का पैसा लेकर भागने लगे है फर्जी व्यापारी

 

 

 

 


[mkd_highlight background_color=”” color=”red”]पंकज पुरोहित सुबीर[/mkd_highlight]

 

 

 

 

हम तो क़ानून पर बिना कारण ही शक कर रहे हैं, किसानों का पैसा तो इस मुक्त व्यापार कानून के आ जाने केे बाद बिलकुल सुरक्षित रहेगा। अभी तो क़ानून को आए हुए ज़्यादा समय भी नहीं हुआ कि यह दूसरी घटना सामने आ गई है। यह कल के समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ समाचार है। जो संभावना व्यक्त की जा रही थी कि यह जो नए कानून में प्रावधान दिया गया है कि किसान की उपज को मंडी द्वारा क्रय-विक्रय करने के बजाय सीध किसान से खरीदा जा सकेगा, इस प्रावधान से इस तरह के मामले सामने आने लगेंगे। आपकी जानकारी के लिए एक बार​ फिर बता रहा हूँ कि मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में जहाँ बाकायदा मंडी बोर्ड है, वहाँ किसानों की उपज मंडी बोर्ड के माध्यम से ही खरीदी-बेची जाती थी। थी इसलिए कि नए कानून के आने से अब मंडी बोर्ड पर ताला लगने की नौबत आ गई है और वहाँ के व्यापारियों, कर्मचारियों के बेरोज़गार होने की। अभी तक यह था कि किसान की उपज का दाम दिलवाने के लिए मंडी बोर्ड ज़िम्मेदार होता था। जब तक व्यापारी किसान को पैमेंट नहीं कर दे, तब तक वह उस उपज को मंडी प्रांगण से बाहर नहीं ले जा सकता था। अमूमन इसके लिए उसके पास चार-पाँच घंटे का समय होता था। किसान को भुगतान करने के प्रमाण प्रस्तुत करने पर ही उसे गेट पास मिलता था। मगर अब तो मुक्त व्यापार कर दिया गया है। व्यापारी सीधे किसान के खेत पर जाकर माल ख़रीद सकता है। इस प्रावधान से क्या होना है इसके बारे में मैंने पहले भी बात की थी कि इससे किसानों की लूट शुरू हो जाएगी, और देखिए वही हो गया है। इस समााचार में पचहत्तर लाख रुपये की उपज किसानों से खरीद कर व्यापारी फरार हो गया है।

जो लोग कह रहे हैं कि किसान के हक सुरक्षित रहेंगे, व्यर्थ ही किसानों को डराया जा रहा है, वह लोग एक बार इस समाचार को अच्छे से पढ़ लें। यह समाचार बहुत सही समय पर सामने आ गया है। यह एक संकेत है कि आने वाले समय में किसानों के साथ क्या होना है। जो लोग कह रहे हैं कि किसानों का पैसा कोई नहीं लूट सकेगा, किसी माई के लाल में दम नहीं है, वो लोग देख लें कि एक माई का लाल तो सामने आ ही गया है, जो छाती ठोंक कर किसानों का पैसा इसी कानून का लाभ उठा कर उसी समय भाग गया, जब इस कानून को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। इससे पहले भी मैंने एक और समाचार इसी तरह का लगाया था। दो बड़ी घटनाएँ तो कानून आने के थोड़े से समय के अंदर ही सामने आ चुकी हैं। और क्या-क्या देखा जाना बाकी है।

किसान और व्यापारी के बीच किसी समर्थ सरकारी संस्था जैसे मंडी बोर्ड का होना बहुत ज़रूरी है। किन्तु समस्या यह है कि जैसे मेरे शहर में आईटीसी कंपनी का सोया चौपाल है, तो यह कंपनी तो यही चाहेगी कि मंडी बोर्ड का नियंत्रण समाप्त हो जाए और कंपनी सीधे किसानों को लूटना प्रारंभ कर सके। अभी तक इन कंपनियों को भी मंडी बोर्ड के द्वारा ही ख़रीदी करनी पड़ती थी। कुल मिलाकर बात यह कि मंडी बोर्ड के कर्मचारी, किसान, मंडी के व्यापारी और कारपोरेट इन चारों में से केवल अंतिम मतलब कारपोरेट को ही इस प्रावधान से लाभ हो रहा है।

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