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केदारनाथ: मौजूदा दौर में हिन्दु मुस्लिम के बीच नफरत की दिवार गिराने की एक कोशिश

(श्रवण मावई )

भारतीय सिनेमा कई तरह के दौर से गुजरा है। बिना आवाज से संगीत, रंगीन और अब नेटफ्लिक्स तक का दौर सिनेमा देख रहा है। हर तरह के दौर में फिल्में समाज पर गहरा असर करती रही है। समाज की सोच में बडे बदलाव की एक वजह भारतीय सिनेमा ही रहा है। अन्य कलाओं की तरह यह भी धीरे धीरे कोरे कारेाबार कर रूप लेता गया और इस कारोबार की अंधी दौड में सिनेमा ने दर्शकों को कुछ भी परोस दिया कुछ समय तक तो भारतीय दर्शकों ने इस विदेशी स्वाद का आंनद लिया लेकिन फिर सिरे से नकार लगे क्योंकि यह दर्शक तो अपनेपन और भवनाओं के चटोरे है।


यह समय भी भारतीय सिनेमा में बदलाव को दौर है। इस दौर में बडे बजट और भारी भरकम स्टार वाली फिल्में दर्शक पंसद नहीं कर रहे हैं, इस तरह की कई फिल्में पर्दे पर तो चली पर उन्हें देखने दर्शक नहीं पहुंचें। वही उन फिल्मों को दर्शकों ने हाथों हाथ जिसमें वास्विकता, जीवन के उतार—चढाव और सच्ची घटनाएं दिखाई गई, हैरानी के बात यह कि इन फिल्मों में कोई बडा स्टार नहीं था, पर फिल्म ने भारतीय समाज पर गहरा असर किया। इतनी भूमिका इसलिए लिख रह हुं कि लम्बे वक्त के बाद समाज की बगडती सोच को दुरूस्त करने वाली फिल्म बनाई गई है नाम है केदारनाथ…। ​फिल्म केदारनाथ की कहानी साल 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ तीर्थ स्थल में हुई तबाही पर आधारित है। पाचं साल पहले हुई इस ​भयानक तबाही के मंजर सभी के जहन में तजा ही होंगे, फिर इस फिल्म में नया क्या है और क्यों इसे भारतीय दर्शक पंसद कर रहा है। इसकी वजह है निर्मता, र्निदेशक और कहानीकार की सोच। केदारनाथ की तबाही क्यों आई क्यों मनुष्य जाति को प्रकृति का यह भयानक रूप देखने को मिला। इस फिल्म के माघ्यम से दिखाने की कोशिश की गई है। विज्ञान भी कहता है कि प्रकृति से छेडछाड करोगे तो प्रकृति भी आपसे छेडछाड करेगी और प्रकृति छेडछाड मानव जीवन पर भारी पडेगी । यह तो ​केदार नाथ फिल्म औसत कह जा सकती है,लेकिन इस तबाही के दौरान जो कहानी निर्देशक ने फिल्माई है वो गजब ही कर गई…जी हां केदारनाथ की तबाही को दिखते समय र्निदेशक ने समाज को जाति, धर्म, गौत्र,वर्ण में बांटने की सोच पर भी कडा प्रहार किया है। भारत में हिन्दु मुस्लमान के बीच नफरत की दिवार की उंचाई लगतार बढाई जा रही है इसमें राज​निति करने वाले सहित हम और आप भी शामिल है। हर तरह सिर्फ नफरत, आविस्वास है। दोनों धर्म के लोग एक दुसरे पर विस्वास ही नहीं करते…इतना जहर बीते सालों में मन में भर दिया गया है। केदारनाथ फिल्म की कहानी ने बहुत ही बेहतरीन ढंग हिन्दु —मुस्लमान के किरदारों को दिखाया है । संदेश देने की कोशिश है कि जाति धर्म से कोई बुरा नहीं या आच्छा नहीं हो सकता उसके कर्म और आच्छी सोच ही उसे अच्छा बनाती है । धर्म कोई भी हो सब यही क​हते है मनाव सेवा से बडी कोई सेवा नहीं…। सबसे बडी बात चाहे जिस नाम से पुकारों वो एक ही है,फिर झगडा किस बात का है। इस मुश्किल समय में केदारनाथ जैसी फिल्म का बनान वकाई सिनेमाई कला का सही इस्तमाल किया गया। मेरी निजि राय में यह फिल्म बहुत असरकारक है और दर्शकों के मन पर गहरी छाप छोड रही है….बाकि तो आजकल बॉक्सआफिस पर हाने वाले धनसंग्रह को फिल्म की सफलता फिल्म की सफलता का पैमाना है।

बात की जाए फिल्म के आदाकारों की तो सभी ने लाजावब काम किया है। पहली फिल्म में काम कर रही सारा अली खान की आदाकारी ने दर्शका को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया, पूरी फिल्म में उेया कही भी नहीं लगा की सारा अली खान पहली बार फिल्म में एक्टिंग कर रही ​है उनके आत्मविस्वास को देखकर लगा कि यह तो मंजी हुई कलाकार है..। फिल्म के कुठ हिस्सों में सारा ने फिल्म को अपने कंधें पर उठा लिया। वही कई सफल फिल्म दे चुकें उम्दा कालाकार सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी आदाकारी से दर्शको के दिलों में जगह बनाई। दर्शकों उन्हें भी बहुत पंसद किया है इसके अलावा लम्बे वक्त के बाद फिल्मी पर्दे पर लौटे नितिश भारद्वाज ने भी अच्छा काम किया । पूजा गौर, तरूण गेहलौत, मिर सरवर ने जबरदस्त रोल किए है। फिल्म का निर्देशन अभिषेक कपूर शानदार ने किया है। कहानी और डायलॉक कनिका डिल्लन ने लिखे है हलाकि निर्देशक अभिषेक कपूर ने कहानी ​के कुद हिस्सो को लिखा है । संगीत हितेश सोनिक ने दिया है और सिनेमाटॉग्राफी तुषार कांति रे ने की है।

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