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भूखमरी से बचने पैदल घर के सफर पर निकले मप्र के 16 मजदूर को मौत निगल गई

 

— थक कर रेल पटरी पर सो गए,मालगाडी गुजर गई उपर से

 

औरंगाबाद ।  वो भूखमरी से बचने के लिए कई किलोमीटर का पैदल सफर कर घर पहुंचे के लिए निकले थे,रास्ते में जब बहुत थक तो रेल पटरी पर सो गए। वो गहरी नींद में थे ठीक उसी समय मालगाडी गुजरी और उन्हें मौत की सुला गई। 16 मजदुरों की रेल से कट कर मौत हो गई। जबकि कुछ मजदुर घायल हो गए। यह सभी मजदूर मध्यप्रदेश के रहने वाले थे और महाराष्ट्र जालना में एसआरजी कंपनी में मजदुरी करते थे। घटना औरंगाबाद में बदनापुर-करमाड रेलवे स्टेशन के पास हुई। मजदूरों की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,मप्र के सीएम शिवराज सिंह सहित अन्य नेताओं ने दुख व्यक्त किया है। मप्र सरकार ने मृतकों के परिवरों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है और घायलों का इलाज करवाया जा रहा है। वहीं रेल मंत्रालय ने घटना की जांच के आदेश दिए है।

वैसे तो हर दौर में मजदूरों की दुर्गती होती रही है, लेकिन कोरोना संकट काल में जिस तरह से गरीबों, मजदरों की दुर्गती हो रही है उससे देश का हर आम व्यक्ति का मन दुखी है। सरकारों ने मजदरों को उनके हाल पर छोड दिया। सराकारें बडे दावे कर रही है लेकिन जमीन पर कुछ नहीं दिखाई दे रहा है। कई राज्य सरकारो ने प्रवासी मजदरों को प्रदेश में वापस लाने के लिए ट्रेन बस चलाई है लेकिन यह इंतजाम न काफी है। मजदरों की संख्या लाखों में है और सरकार द्वारा किए इंतजाम सिमित है। मजदरों को को वपास अपने प्रदेश में आने के लिए कई सप्ताह इंतजार करना पड रहा है। जबकि उनके पास एक दिन के खाने पीने का सामान नहीं है। ऐसे में वह पदैल ही अपने घर को निकल रहे है और कभी सडक,रेल हादसे का शिकार हो रहे है तो कभी भूख,प्यास से दम तोड रहे है।

क्या सच में इतना मुश्किल है मजदरों को घर लाना…

विदेश से अपने नागरिकों को लाने के लिए कई हवाईजाहाज भेजे गए और भेजे जाएगें। सरकार के अनुसार हर भारतीय को विदेश से वापस देश में लाया जाएगा। लाना भी चाहिए,लेकिन जो मजदरों देश के ही किसी कोने में रहकर सरकार की ओर उम्मीद से देख रहा उसको घर लाने की जिम्मेदारी किसकी है? मजदरों को खाना,रहना का इंतजाम ​करना भी तो इस संकट में सरकार का ही काम है। वो भी तो इस देश के नागरिक है। क्या सरकार मजदरों को राहत नहीं दे सकती?। उनको उनके घर जैसे भी हो,हवाईजहाज,बस,ट्रैन से लाया नहीं जा सकता है। इतना भी मुश्किल तो नहीं…।

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