जेएनयू मामला : शिक्षा पर जो खर्च होता है, वह दरअसल खर्च नहीं होता, निवेश होता है
(राजेंद्र चतुर्वेदी, वरिष्ट पत्रकार)
जो लोग जेएनयू में करदाताओं का पैसा खर्च होने की बात कर रहे हैं, उनसे क्या तर्क किया जा सकता है, क्या बहस की जा सकती है। राष्ट्रवाद की अफीम चाट चुके लोगों को कैसे समझाया जा सकता है कि शिक्षा पर जो खर्च होता है, वह दरअसल खर्च नहीं होता, निवेश होता है।
इसीलिए तो चेतना संपन्न अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए क्या-क्या नहीं करते। पेट में गांठ तक लगाते हैं, लेकिन बच्चों की पढ़ाई से समझौता नहीं करते। ऐसा ही सरकार को करना चाहिए, क्योंकि वह राष्ट्र की अभिभावक होती है। लेकिन सरकार की प्राथमिकताएं देखिए…।
पूंजीपतियों के लिए 2008 में मंदी से निपटने के लिए जो बेलआउट पैकेज शुरू हुआ था, वह अब भी जारी है। इसके जरिए देश के 45-50 लोगों के पास देश का कोई 18 लाख करोड़ रुपया पहुंच चुका है।
18 लाख करोड़ का मतलब देश के सभी जिलों में एक-एक जेएनयू जैसा विश्वविद्यालय खुल जाता और उसी के ब्याज में चल भी जाता, चलता रहता हमेशा। लेकिन इस मामले में किसी को करदाताओं की चिंता हुई क्या? बैंकों का 10 लाख करोड़ एनपीए हो गया, क्या किसी को करदाताओं की चिंता हुई।
करदाताओं की चिंता जेएनयू को लेकर हो रही है। जो लोग जेएनयू को नष्ट करना चाहते हैं, उन्होंने एक जुमला उछाल दिया और उनके समर्थक उस जुमले में अपने तर्कों का तड़का लगाकर शुरू हो गए हैं। एक दलील और चल रही है, जो दलील नहीं बदमाशी है। फलां यूनिवर्सिटी में फीस बढ़ी, उसका विरोध क्यों नहीं हुआ। वहां ये बढ़ा, यहां वो बढ़ा, उसका विरोध क्यों नहीं हुआ? ये तर्क उन्हीं लोगों ने गढ़ा है, जो अपनी सत्ता की पोल नहीं खुलने देना चाहते। लेकिन कुछ मासूम लोग भी उस तर्क को पकड़ कर बैठ गए। उसके नफा-नुकसान जाने बिना। बिल्कुल फीस कहीं भी बढ़े, उसका विरोध होना चाहिए। लेकिन नहीं हुआ, तो इस समय यह क्यों याद दिलाया जा रहा है कि तब तो आप चुप थे, अब क्यों बोल रहे हैं। यह इसलिए याद दिलाया जा रहा है कि आप जेएनयू का समर्थन करना बंद कर दें। इसलिए हमने इस दलील को दलील नहीं, बदमाशी कहा है।
एक दलील यह भी उछाली जा रही है कि जेएनयू नहीं, सभी सरकारी-गैर सरकार संस्थानों की फीस कम होनी ही चाहिए। लेकिन यह दलील आज क्यों उछाली जा रही है? पहले जेएनयू के आंदोलन को तार्किक परिणति तक पहुंचने दीजिए। फिर इसके लिए आंदोलन प्रारंभ कीजिए, हम आपके साथ खड़े पाए जाएंगे। माना कि जेएनयू के वैचारिक धरातल से हुक्मरानों को नफरत है, लेकिन आपको जेएनयू की ही छाती पर दिल्ली में ही दीनदयाल, हेडगेवार, गोलवलकर यूनिवर्सिटी खोलने से कौन रोक रहा है? न केवल यूनिवर्सिटी खोलिए, बल्कि जो सुविधाएं जेएनयू में दी जाती हैं, उससे ज्यादा सुविधाएं दीजिए, उससे किसी को कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन ये सुझाव आपको तब जंचेगा, जब आपकी रुचि निर्माण में होगी। आप विध्वंसक हैं, इसलिए विध्वंस ही करेंगे।
प्रचारित किया जा रहा है कि जेएनयू में देश विरोधी नारे लगे थे। लेकिन सरकार अगर आप एक भी नारेबाज को पकड़कर सजा नहीं दिला पा रहे हैं, तो ये आपके लिए ही शर्मनाक है। मेरे लिए तो चिंता की बात केवल इतनी है कि आपने राष्ट्रवाद की अफीम चटाकर चेतनाहीन लोगों की एक फौज तैयार कर दी है।