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Election 2024: देश की आंतरिक सुरक्षा का स्वर्ण काल, भारत की न्याय परंपरा पर आधारित विधि व्यवस्था से आएगा बड़ा परिवर्तन

देश की आंतरिक सुरक्षा में आए गुणात्मक सुधार का ही परिणाम है कि आजादी के बाद से ही अलगाववादी हिंसा की चपेट में आया पूर्वोत्तर भारत पहली बार अमन शांति और विकास की नई गाथा लिख रहा है तो लगभग पांच दशक से खूनी क्रांति के माध्यम से संवैधानिक लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए चुनौती बना नक्सलवाद अंतिम सांसें गिन रहा है।

अलगाववादी, आतंकी और नक्सली हिंसा जैसे आंतरिक सुरक्षा के सभी क्षेत्रों में पिछले 10 साल में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है। अंग्रेजों के जमाने के दंड पर आधारित कानूनों की जगह भारत की न्याय परंपरा पर आधारित नए आपराधिक कानून बनाकर सरकार ने आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की नींव रख दी हैं, जो इस वर्ष एक जुलाई से लागू हो जाएगा। पिछले 10 सालों को आजादी के बाद आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से देश का स्वर्णिम काल कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।

आंतरिक सुरक्षा में आए गुणात्मक सुधार का ही परिणाम है कि आजादी के बाद से ही अलगाववादी हिंसा की चपेट में आया पूर्वोत्तर भारत पहली बार अमन, शांति और विकास की नई गाथा लिख रहा है, तो लगभग पांच दशक से खूनी क्रांति के माध्यम से संवैधानिक लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए चुनौती बना नक्सलवाद अंतिम सांसें गिन रहा है। इसी तरह से लगभग चार दशक से पाकिस्तान समर्थित आतंकी हिंसा का शिकार रहे जम्मू-कश्मीर में भारत माता की जय जैसे उद्घोष गूंजने लगे हैं।

दासता के प्रतीकों से भरी न्याय प्रणाली खत्म

नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद आम आदमी को अदालत में तारीख पर तारीख मिलने के जंजाल से मुक्ति मिलेगी और तीन साल में न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा। नई न्याय प्रणाली में आपराधियों के बच निकलने की गुजाईश नगण्य होगी, तो छोटे-मोटे अपराधों के लिए अदालती चक्कर काटने से भी मुक्ति मिल जाएगी। इस तरह से मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के अंत में दासता के प्रतीकों से भरी न्याय प्रणाली को खत्म कर भारतीय आत्मा वाली न्याय प्रणाली को स्थापित कर दिया जिसका लाभ आने वाले वर्षों में आम जनता को मिलेगा।

कम नहीं थी चुनौती

2014 में पहली बार मोदी सरकार के आने के बाद आंतरिक सुरक्षा की स्थिति बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण थी। शपथ ग्रहण के 10 दिन के भीतर मणिपुर में अलगाववादी हमले में सेना के 18 जवान बलिदान हो गए थे। छह महीने बाद ही असम में बोडो अलगाववादियों ने 80 से अधिक निर्दोष आदिवासियों की हत्या कर दी थी । काठमांडू से कन्याकुमारी तक रेड कोरिडोर स्थापित करने का नक्सलियों का मंसूबा बुलंदी पर था।

मोदी सरकार के पहले पांच सालों में जम्मू-कश्मीर भी पत्थरबाजी व बंद रोजमर्रा की चीज थी। पुलवामा और उड़ी जैसे हमले आतंकियों के बुलंद हौसलों की गवाही दे रहे थे। इन समस्याओं के जल्द समाधान की उम्मीद काफी धुंधली दिखती थी। लेकिन पहले कार्यकाल में समस्याओं के मूल की पहचान और दूसरे कार्यकाल में उस मूल पर प्रहार कर मोदी सरकार ने आंतरिक सुरक्षा के इन नासूरों के स्थायी इलाज की दिशा में अहम कदम उठाया।

कठोर निर्णय से बनी बात

आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने की कोशिशों को 2019 में अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद बल मिला। दूसरे कार्यकाल की शुरूआत में ही अनुच्छेद 370 व 35ए को निरस्त कर जम्मू कश्मीर की समस्या की जड़ पर प्रहार किया।

इसके पहले पंचायत और नगर निकाय चुनाव कराकर मोदी सरकार ने साफ कर दिया था कि कठोर निर्णयों की मजबूरी के बावजूद सरकार का मूल उद्देश्य जनता तक उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को पहुंचाना और उनके जीवन को बेहतर बनाते हुए बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना है।

कभी सबसे बड़ी चुनौती था नक्सलवाद

2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था 2024 में गृह मंत्री अमित शाह ने अगले तीन साल में नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने का ऐलान कर दिया। नक्सलियों के खिलाफ मिली सफलता का श्रेय सरकार की बहुआयामी रणनीति को दिया जा सकता है।

एक तरफ से ईडी और एनआइए के मार्फत नक्सली फंडिंग को रोकने में काफी हद तक सफलता मिली, तो दूसरी ओर नक्सलवाद को बौद्धिक समर्थन देने वालों को बेनकाब भी किया गया। नक्सलियों से मुक्त किए गए इलाकों में विकास कार्यों की गति तेज कर और जनकल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाकर दोबारा नक्सलियों के पैठ बनाने के रास्ते बंद कर दिये गए।

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