रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई… अफ़ज़ल साहब
अलविदा सैयद मुहम्मद अफ़ज़ल साहब (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, मध्यप्रदेश)। उस एक संगोष्ठी में आपको पहली बार साहित्य समाज ने सुना था और चमत्कृत रह गए थे सब। आपके बोलने का अंदाज़ इतना प्रभावशाली था कि सभा मंत्रमुग्ध हो गई थी। फिर उसके बाद आपसे मुलाकात ही नहीं हो पाई। पता चला कि ब्रेन ट्यूमर हो गया है आपको। फिर बस समाचार मिलते रहे कि आप मुंबई में हैं, अब स्वस्थ हैं। मगर जो डर दिल में था, अंततः वह सच हो गया। आप चले गए, उस एक शाम की यादें हम सब के दिलों में छोड़ कर। उस शाम आपने बताया था कि अच्छा बोलने के लिए ज़्यादा बोलना ज़रूरी नहीं है, संक्षिप्त बोल कर भी प्रभाव छोड़ा जा सकता है। बहुत याद आएँगे आप…. याद आएँगे अपने उस अंदाज़ के कारण जो सम्मोहित कर देता था। उस अपनेपन के कारण जो इतने बड़े पद पर बैठे होने के बाद भी आपको ज़मीन से जोड़े रखता था। अच्छे लोगों की फिलहाल दुनिया को ज़रूरत भी नहीं है अफ़ज़ल साहब, जाइए वहाँ जाइए जहाँ अच्छे लोगों की ज़रूरत है। ये दुनिया पहले तो जैसी थी वैसी थी, मगर अब तो यह आप जैसे सभ्य, विनम्र, शिष्ट, मृदुभाषी, सरल, आत्मीय लोगों के लायक बिलकुल भी नहीं है।
दुखद विदा की बेला आई,
जाओ ज्यों रवि-शशि जाते हैं,
लौट गगन में फिर आते हैं…..