मध्य प्रदेश

इस युवा कम्युनिकेटर ने बताया कैसे रूकेंगे बलात्कार

 

भारत में बलात्कार की वारदात कैसे रूकेंगी,उन पर किस तरह से रोक लगाई जा सकती है। ऐसा क्या किया जाएग कि समाज महिलाओं के प्रति जिम्मेदार बनें। इन सवालों के जवाब मध्यप्रदेश भोपाल की रहने वाली युवा कम्युनिकेटर आशी चौहान ने बताएं ​है। आशी चौहान स्कूल और अन्य संस्थाओं में कैंप लगा​र शिक्षा,स्वाथ्थय और तकनीक की जानकारी देती है। आशी का प्रयास है कि लडकियां अपनी शिक्षा,स्वाथ्थय और ज्ञान के प्रति सजग रहे। इस बार आशी चौहान ने देश में बढती बलात्कार की वारदात में लिखा हैं..आप भी पढें..

चंद वहशी दरिंद देश में लोमहर्षक, हृदयविदारक, वीभत्स, क्रूर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और समाज सोच रहा है कि गैंगरेप की झकझोर देने वाली बढ़ती वारदातों को कैसे रोका जाये। वह भूल जाता है कि जिस समाज कानून का भय समाप्त हो जाता है और पढ़ाई-लिखाई केवल धनवान बन कर मौज-मजे करने के लिए है तो उस समाज की आने वाली पीढ़ी को ना तो नैतिक शिक्षा मिल सकेगी और ना ही चरित्र निर्माण का पाठ ही वे पढ़ सकेंगे।
ऐसे पथभ्रष्ट लोग ही आगे चलकर बुरी संगत में पड़ते हैं और बलात्कार जैसी घिनौनी वारदातों से मुंह काला करते हैं। हैरत की बात तो ये है कि जिस देश में देवियों की पूजा की जाती हो, उस देश में महिलाओं का अपमान हैवानियत की सारी हदें पार कर रहा है! बच्चों को स्कूल में ही नहीं घर में भी महिलाओं के सम्मान का सबक सिखाना होगा। ना केवल बेटियों और बहिन के प्रति, बल्कि पत्नी, बहू और तमाम महिलाओं के प्रति पुरूषों की मानसिकता को बदलना होगा।
सरकार का ये दायित्व है कि वह बढ़ते लिंगानुपात को रोके और सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएं ना हों इसके लिए कठोर कानून बनाये। पुलिस भी तत्परता से विवेचना करते हुए उचित कदम उठाये। अश्लीलता पर सख्ती से रोक लगाई जाए। ना केवल इंटरनेट पर पोर्न साइट प्रतिबंधित हों, बल्कि टेलीविजन और फिल्मों में भी नारी देह का प्रदर्शन बंद होना चाहिए। देश में सौ करोड़ की आबादी में से महज एक लाख कलाकार हैं, लेकिन समाचार-पत्रों में एक पूरा का पूरा पेज कलाकारों की गासिप से भरा मिलता है। इस फिल्मी पृष्ठ के बहाने हिरोइनों के अर्द्धनग्न चित्र धड़ल्ले से प्रकाशित किये जाते हैं, ये सिलसिला भी बंद होना चाहिए।
यदि हम भौतिकता और बाजारवाद के अंधे कुएं में ही उपाय तलाशते रहेंगे तो शायद कभी भी ऐसी वारदातों को रोका नहीं जा सकेगा। आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक वातावरण में बच्चों को शिक्षा देने के कदम उठाना होंगे, जहां व्यक्ति का मतलब केवल डॉक्टर, इंजीनियर बनना ही लक्ष्य ना हो, बल्कि एक अच्छा इंसान बनना महत्वपूर्ण हो।

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