पथ विक्रेता योजना : अब चौका चूल्हा के साथ कारोबार में बढेगी महिलाओं की धमक
— शहर में पथ विक्रेता योजना में 38 पफीसदी महिलाओं की बढ सकती है हिस्सेदारी
मध्यप्रदेश। शहरी पथ विक्रेता आत्मनिर्भर योजना में विक्रेता अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए कार्यशील पूंजी 10 हजार रुपए एक वर्ष की अवधि के लिए बैंकों से ऋण के रूप में दिया जा रहा है। पर इस योजना से लाभ लेने वाले हितग्राहियों पर कोरोना भारी पड रहा है; हालात यह है कि कोरोना में जो बेरोजगार हुए। उन्होंने पथ विक्रय में के माध्यम से ही रोजगार तलाशा पर कोरोना उनका पीछा नहीं छोड रहा है। पर प्रदेश में शुरु की गई पथ विक्रेता योजना के तहत 38 पफीसदी महिलाओं ने रोजगार के लिए कर्ज मांगा है। यदि योजना जमीनी धरातल पर उतरती है तो छोटे छोटे कारोबार में महिलाओं की हिस्सेदारी 2021 में और बढेगी।
इस योजना के तहत आइसक्रीम, फल, समोसा ब्रेड,बिस्किट मुर्गी,अंडे कपड़ा छोटे बर्तन जुते,चपल, झाड़ू आदि विक्रय किये है। इन व्यवसायी द्वारा ग्रामीण क्षत्र में नाई का कार्य, औजारों का सुधारए आदि की सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है पंजीयन करवाने वाले पथ विक्रेताओं में से लगभग 28.36 प्रतिशत सब्जी, 10.27 प्रतिशत कपड़े, 7.23 प्रतिशत फल और 6.84 प्रतिशत खाने—पीने की वस्तुओं का व्यवसाय करते हैं। पंजीकृत पथ व्यवसाइयों में 62 प्रतिशत पुरुष और 38 प्रतिशत महिलाएँ हैं। इसलिए प्रदेश में परिवार की आर्थिक मजबूती बनने के लिए महिलाएं भी आगे आ रही है। यदि योजना का लाभ जमीनी स्तर पर महिलाओं को मिला तो महिलाओं के लिए नया साल बेहतर होगा। रोजगार के क्षेत्र में उनका दखल होगा।
— योजना की अब तक स्थिति
प्रदेश में अभी तक इस योजना के तहत 9 लाख 16 हजार 882 लोगों ने पंजीयन कराया है। इसमें सत्यापन के बाद 5 लाखं 13 हजार 285 आवेदन शेष बचे, इन आवेदनों में 4 लाख 85 हजार 615 हितग्राहियों के आवेदन स्वीकृत किये गए हैं। वहीं 4 लाख 72 हजार 274 हितग्राहियों को प्रमाण पत्र जारी किये गए है। उल्लेखनीय है कि अब घरेलू कामकाज के साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं रोजगार की दिशा में भी पहल कर रही है। महिलाओं के कामकाजी होने से उनके छोटे कारोबार में धमक और बढेगी।
— 33 लाख महिलाएं जुडेगी स्वसहायता समूहों से
प्रदेश में प्रदेश सरकार की घोषणानुसार महिला स्व—सहायता समूहों के उत्पाद की ब्रांडिंग, मार्केटिंग के लिए राज्य स्तरीय विपणन महासंघ बनाया जाएगा। विश्व स्तरीय शोध के लिए राज्य आजीविका संस्थान बनेगा। सरकारी खरीद में महिला स्व—सहायता समूह के उत्पाद को प्राथमिकता देने के लिए नीति बनाई जाएगी। स्कूलों में यूनिफार्म महिला स्व—सहायता समूह की बहनें बनाएंगे। कपड़ा भी समूह खुद ही खरीदेगा। आंगनबाड़ियों में पूरक पोषण आहार की आपूर्ति भी महिला स्व—सहायता समूहों के महासंघ के माध्यम से होगी। अगले तीन साल में 33 लाख महिलाओं को स्व—सहायता समूह से जोड़ा जाएगा।