मध्य प्रदेश

नई शिक्षा नीति : अतीत से प्राप्त करें और वर्तमान पर ध्यान रखें- प्रो. शर्मा

— राजनीति शास्त्र के शिक्षकों की भूमिका’ पर संगोष्ठी

मध्यप्रदेश। भारतीय राजनीति शास्त्र पर यूरोपियन कुछ भी कहते हों, हमें हमारी संस्कृति और राजनीति शास्त्र के ज्ञान का भान है। नए दौर में नई चुनौती राजनीति विज्ञान के शिक्षकों के समक्ष है कि वे अपने विद्यार्थियों की समझ को समृद्ध करें, उन्हें कुंद होने से रोकें। पहली बार शिक्षा नीति में भारत की संस्कृति, साहित्य, समरसता और भाषा के साथ मौलिक विचारों की चर्चा की गई है. नई शिक्षा नीति का दूरगामी परिणाम आएगा। यह बात महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने ‘नई शिक्षा नीति : राजनीति शास्त्र के शिक्षकों की भूमिका’ पर मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे।


प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने शिक्षकों को निरंतर और नियमित लेखन के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि वे इस बात की चिंता किए बिना लिखें कि कौन क्या बोल रहा है। उनका लेखन मौलिक हो. राजनीति शास्त्र के शिक्षको की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि शिक्षक गुणी हैं और उन्हें अपने विद्यार्थियों में इन गुणों को परिवर्तित करना है. सृजन का बीज विद्यार्थियों में डालना है ताकि हमारा भविष्य और सुदृढ़ हो सके। उन्होंने कहा कि अतीत से प्राप्त करें, वर्तमान पर ध्यान रखें और भविष्य पर नजर रखें। संगोष्ठी का आयोजन डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू, भारतीय शिक्षा मंडल एवं सामाजिक शोध संस्थान उज्जैन के संयुक्त तत्ववाधान में किया गया था।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर संजय लोढ़ा ने नई शिक्षा नीति के प्रारूप के बिंदुओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इस शिक्षा नीति के लागू होने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन होगा। उन्होंने राजनीति शास्त्र के शिक्षकों से आग्रह किया कि वर्तमान में राजनीति को हेय दृष्टि से देखा जाता है जबकि समूचा जीवन राजनीति के केन्द्र में होता है। ऐसे मेंं हमारा दायित्व है कि हम राजनीति के प्रति लोगों की सोच को बदलें. इसके लिए राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों को समग्र रूप से शिक्षित कर भ्रम को दूर करना होगा. प्रो. लोढ़ा ने शिक्षा नीति की प्रशंंसा करते हुए कहा कि जब नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार हो रहा था, तब कोरोना महामारी की कोई चर्चा नहीं थी लेकिन शिक्षा नीति में ऐसी आपदा से निपटने का उल्लेख किया गया था। नई शिक्षा नीति में न्याय संगत एवं न्यायपूर्ण समाज की अवधारणा विकसित की गई है।

संगोष्ठी में बीआर अम्बेडकर विश्वविद्यालय, अमेठी में राजनीति शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शशिकांत पांडे ने कहा कि नई शिक्षा नीति के पहले की शिक्षा नीति केवल डिग्री बांटने का कार्य कर रही थी। शिक्षा की मूलभूत जरूरतों यथा व्यवहारिक शिक्षा एवं रोजगारपरक शिक्षा की ओर ध्यान नहीं था। अब यह विषमता कम होगी. रिचर्स पर जोर है जिससे शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने डिजीटल एजुकेशन की पैरवी की लेकिन इसके संसाधन बढ़ाने की बात भी कही. नई शिक्षा नीति में लैंगिक विषमता भी समाप्त होने की संभावना बढ़ी है।
पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने वैश्विक परिदृश्य पर राजनीति शास्त्र के शिक्षकों की भूमिका का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वे जब राजनीति शास्त्र पढ़ते थे, तब भारत के परिप्रेक्ष्य में कुछ भी नहीं पढ़ाया गया। यहां तक कौटिल्य के अर्थशास्त्र के ज्ञान से भी वे वंचित थे। वे यूरोपियन देशों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि वे भारत को लोकतांत्रिक देश मानते ही नहीं हैं। प्रो. आशुतोष ने कहा कि यूरोपियन लेखकों को पढ़ा जाना चाहिए लेकिन भारतीय संदर्भ में भी शिक्षा होना चाहिए। राजनीति शास्त्र के शिक्षकों की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि रटंत शिक्षा के स्थान पर व्यवहारिक ज्ञान होना चाहिए। नई शिक्षा नीति में फील्ड में जाकर कार्य करने का प्रावधान है। यह एक अच्छा संकेत है जिससे विद्यार्थियों को भी व्यवहारिक ज्ञान मिलेगा. उन्होंने इस बात पर चिंता की शिक्षकों ने मौलिक तो दूर, पढऩा ही छोड़ दिया है। उनका कहना था कि विद्यार्थियों से सवाल-जवाब किया जाना चाहिए. संवाद की शैली हमारी भारतीय शैली है।

इसके पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रेखा सक्सेना ने कहा कि नई शिक्षा नीति नए संभावनओं का द्वार खोलती है। पहली बार हो रहा है कि भारतीय एवं मातृभाषाओं का प्रावधान किया गया है. वे अपने अनुभव शेयर करते हुए कहती हैं कि हिन्दीपट्टी से आने वाले विद्यार्थियों को अंग्रेजी पढऩे में और दक्षिण प्रांतों से आने वाले विद्यार्थियों को हिन्दी में पढऩे में समस्या होती है. नई शिक्षा नीति इसका समाधान लेकर आयी है। उन्होंने कहा कि अब प्रायवेट शिक्षण संस्थाओं पर भी दबाव बनेगा कि वे मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था करें। उन्होंने डिजीटल एजुकेशन को भविष्य की जरूरत बताया।
संगोष्ठी के अंत में कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि यह नई शिक्षा नीति नहीं अपितु पहली बार भारतीय शिक्षा नीति बनी है। विश्वविद्यालय विभिन्न प्रकल्पों के सहयोग से निरंतर नई शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करता रहेगा। यह संकल्प वर्ष भर का है और इस विचार मंथन के बाद जो अमृत निकलेगा, उसे पुस्तकाकर के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि कोरोना महामारी के बाद भी डिजीटल मीडिया के माध्यम से संगोष्ठी करने में हम सफल रहे हैं. कार्यक्रम का संचालन तापस कुमार दलपति ने किया. प्रो. यतीन्द्रसिंह सिसोदिया सामाजिक शोध केन्द्र, उज्जैन के निदेशक कार्यक्रम के बारे में परिचय दिया।

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