मध्य प्रदेश

सरकारी औपचारिकता हो कर रह गई ‘गांधी कथा’

 

( कीर्ति राणा )

 

मध्यप्रदेश।  सरकार ठान ले तो अधिकारियों की मजबूरी हो जाती है काम को अंजाम देना लेकिन जब सरकारी अमला उसी काम को बेगार की तरह करें तो उसका अंजाम ‘गांधी कथा’जैसा हो जाता है।
गांधी जी की डेढ़ सौ वीं जन्मजयंती पर कमलनाथ सरकार गांधी जी की याद में जो कार्यक्रम पूरे वर्ष करा रही है उनमें ‘गांधी कथा’ भी शामिल है।इस कथा का भोपाल में तो तामझाम के साथ शुभारंभ हुआ।चूंकि वहां सीएम का इंट्रेस्ट था तो संस्कृति मंत्री डॉ विजयलक्ष्मी साधो, अन्य मंत्रियों-अधिकारियों को रहना ही था। दूसरा आयोजन इंदौर में हुआ।
भोपाल से इंदौर आते आते गांधी कथा बेगार जैसा काम हो गई। दुर्गति का आलम यह कि संस्कृति विभाग इस कथा का प्रचार प्रसार भी व्यवस्थित तरीके से नहीं कर सका। गांधी का व्यक्तित्व विशाल है लेकिन सम्पन्न हुई कथा में उन श्रोताओं की संख्या अधिक थी जो अपने विचार मुताबिक गांधी के विचारों को थोड़ा बहुत तो जानते ही हैं। इंदौर के जाल सभागृह में आयोजन हुआ वह भी पूरा पैक नहीं हो सका था। आए दिन होने वाले संगीत कार्यक्रमों उमड़ने वाले श्रोताओं जैसी तो स्थिति कतई नहीं थी, पर्याप्त प्रचार का अभाव ही कारण रहा है।
गांधी जी इन वर्षों में दो खेमों में बंट से गए हैं। कांग्रेस के अहिंसक गांधी और भाजपा-खासकर नरेंद्र मोदी के-स्वच्छता वाले गांधी, लेकिन इस कथा में दोनों दलों के गांधी अनुयायी नदारद थे।शहर में मंत्री-पूर्व केंद्रीय मंत्री थे तो सही लेकिन वे अन्य जलसों में व्यस्त थे।संस्कृति मंत्रालय के इस आयोजन में प्रशासनिक अधिकारियों को भी वक्त नहीं मिल सका। सीएम की व्यक्तिगत दिलचस्पी से ‘गांधी कथा’ मप्र के विभिन्न शहरों मेंआयोजित की जा रही है यह जानकारी होने के बावजूद जिला प्रशासन ने भीड़ जुटाने में या तो रुचि नहींली या संस्कृति विभाग और जिला प्रशासन में तालमेल का अभाव रहा। यह तो अच्छा रहा कि जालसभागृह में आयोजन था, यदि रवींद्र नाट्य गृह में होता तो अमीर खां महोत्सव की तरह फजीहत होजाती।
आज के हालात में गांधी के विचारों को स्कूली बच्चों और युवा पीढ़ी तक पहुंचाने, उन्हें इस कथा से जोड़ने की अधिक जरूरत है लेकिन इस ‘गांधी कथा’ से किशोर-युवा पीढ़ी को जोड़ने की कोई पहल नहीं हुई है, जबकि संस्कृति सचिव पंकज राग तो दूरदृष्टि वाले अधिकारी माने जाते हैं।गांधी कथा प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में होना बाकी है, संस्कृति विभाग के साथ स्कूली शिक्षा विभाग को भी जोड़ा जाना चाहिए ताकि एकाधिक स्कूलों को जोड़ा जाए तो शोभना राधाकृष्ण हजारों बच्चों तक गांधी कथा से जुड़े रोचक प्रसंग सुना सकती हैं। जब उनसे कहा कि अधेड़ उम्र वाले तो गांधी के विचारों को समझते हैं। जरूरत है कि इन विचारों को स्कूली बच्चों के बीच पहुंचाया जाए, गांधी कथा वाचक शोभना जी ने सहमति व्यक्त करने के साथ ही कहा आप की बात से सहमत हूं कि स्कूली बच्चों के बीच भी यह कथा होनी चाहिए।

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