पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था के कारण महिलाओं को हर क्षेत्र में चुनौतियों : डाॅ. जया फूकन
-डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा जेंडर संवेदनशीलता पर कार्यक्रम
मध्यप्रदेश। डाॅ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू द्वारा ‘‘जेंडर संवेदनशीलता और संबंधित मुद्दें’’ विषय पर आयोजित अकादमिक गतिविधियों की श्रृंखला में महिला और आजीविका विषय पर बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन विभाग की डाॅ. जया फूकन ने कहा कि ‘‘भारतीय संविधान की प्रस्तावना एवं मौलिक अधिकारों में जेण्डर समानता का सिद्धान्त प्रतिपादित है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विकास संबंधी नीतियों, कानूनों, कार्यक्रमों में महिलाओं की उन्नति का उद्देश्य बनाया गया है। महिलाओं को पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था के कारण हर क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बहुत सारी शासकीय योजनाओं के बाद भी जेण्डर गैप कम नहीं हो रहा है। ग्रामीण महिलाओं की आजीविका के संबंध में कहा कि वहाॅ महिलाओं की पुरूषों पर काफी निर्भरता है।
श्रम का विभाजन इस रूप में किया गया है कि महिलाओं द्वारा किए गए कार्यो को उत्पादक कार्यों के रूप में नहीं लिया जाता है। साथ ही अदृश्य कार्यों का आर्थिक मूल्यांकन नहीं किया जाता है। अशिक्षा, जागरूकता की कमी, प्रशिक्षण का अभाव आदि ऐसे कारण है जिनसे महिलाऐं अभी तक अपनी पहचान बनाने में सक्षम नहीं हो पायी है। हमें ऐसी महिलाओं की आवश्यकताओं को पहचान कर नीति नियोजन कर उनकी क्षमताओं को विकसित करना होगा। शिक्षा प्रशिक्षण और कौशल विकास ही ऐसे औजार हैं, जिनसे महिलाऐं सशक्त होकर परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में अपनी भूमिका तय कर सकती है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि नीति नियोजन की स्पष्टता के अभाव में सदियों से महिलाओं का शोषण होता आ रहा है। पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था के कारण कोविड-19 के दौर में दुव्र्यवहार की घटनाएं बढ़ी हैं। हमें संगठित एवं असंगठित क्षेत्र की महिलाओं की खुशहाली के लिए प्रबंधन करना चाहिए। साथ ही मानसिकता में बदलाव लाया जाना अपेक्षित है। सभी की सम्यक भूमिका होनी चाहिए एवं बदलाव एजेंट के रूप में कार्य करना होगा।
स्वागत उद्बोधन डाॅ. कुसुम त्रिपाठी द्वारा दिया गया। आभार डाॅ. मनोज गुप्ता द्वारा एवं संचालन डाॅ. रश्मि जैन ने किया।