मध्य प्रदेश

70 साल पहले टोरी कार्नर नाम दद्दू तिवारी ने दिया और गेर की शुरुआत की बाबूलाल गिरि ने

 

 

    ( कीर्ति राणा )

 

मध्यप्रदेश। जिस टोरी कार्नर (मल्हारगंज) से इंदौर शहर की पहली गेर की शुरुआत हुई है, उस तिराहे का टोरी कार्नर नाम करण पुराने समाजवादी दद्दू तिवारी ( गंगा प्रसाद तिवारी) ने किया। शहर की इस पहली गैर की शुरुआत कांग्रेस के पूर्व पार्षद बाबूलाल गिरि (गिरि होटल) ने की, अब उनके पुत्र शेखर गिरि इसे जारी रखे हुए हैं। इस गेर के बाद अन्य संस्थाओं ने भी गेर निकालना प्रारंभ की, उनमें भी अधिकांश आयोजक पश्चिम क्षेत्र के ही हैं। पुराने समाजवादियों में दद्दू तिवारी का नाम जाना पहचाना है। उनकी इस तिराहे पर नियमित रात्रिकालीन बैठक थी। ब्रिटेन में मजदूरों की राजनीतिक पार्टी का नाम टोरा टोरी (गुरिल्ला) होने से उन्होंने करीब 70 साल पहले नियमित बैठक वाले इस तिराहे को टोरी कार्नर नाम दिया था। बस तब से मल्हारगंज की गिरि होटलवाला यह क्षेत्र टोरी कार्नर के रूप में पहचाना जाने लगा।

–देर रात की घटनाओं की सूचना मिल जाती थी

रात की बैठक वाला प्रमुख स्थान होने से टोरी कार्नर पर कांग्रेस, समाजवादी, जनसंघ, भाजपा आदि दलों सेजुड़े नेताओं की नियमित आवाजाही, चाय-पोहे का दौर चलता रहता था। तत्कालीन एसपी (स्व) सुरजीत सिंह रात में एक चक्कर जरूर लगाते थे।नेता-मित्रों के साथ बातचीत में उन्हें शहर की नब्ज के साथ ही देर रात की घटना से जुड़ी अनकही बातें भी पता चल जाती थी। पूर्व विधायक-पद्मश्री (स्व) बाबूलाल पाटोदी, पूर्व महापौर पुरुषोत्तम विजय, समाजवादी लाड़ली मोहन निगम, बस मालिक हेमराज जायसवाल, पत्रकार गोपीकृष्ण गुप्ता, कवि सत्यनारायण सत्तन, इंदौर आने पर आशु कवि निर्भय हाथरसी से लेकर समाजवादी महेश चतुर्वेदी, गांधीनगर रामायण मंडल वाले रघुवीर सिंह चौहान, भाजपा नेतागोकुलदास भूतड़ा, गिरधर गोपाल राठी, लाड़ली प्रसाद राठी, वसंत पंड्या, पत्रकार गोकुल शर्मा, आरसीसलवाड़िया, शशींद्र जलधारी, बाबूलाल गिरी की नियमित बैठक में शहर के राजनीतिक मौसम, चुनावी हवाकी भी थाह पता चल जाती थी।

अपने जमाने के धुरंधर छात्र नेता-पत्रकार सुभाष खंडेलवाल( रविवार) बताते हैं टोरी कार्नर पर नियमित बैठक-बहस का दौर अब भी जारी है, बस चेहरे बदल गए हैं। उस्ताद प्रेम स्वरूप खंडेलवाल, एडवोकेट जेकेटी ऐसे बैठक बाज हैं जो रात के ठीक 12 बजे ठीये पर आते हैं। डॉ गिरि, ओम शर्मा, दुबे वकील, भगवान सिंह चौहान, सत्तन गुरु और उनके भाई (भोपाल) शिवाजी गुरु, कृपाशंकर शुक्ला, सुरेंद्र पुरी आदि शहर ही नहीं प्रदेश और देश से जुड़े मुद्दों पर देर रात तक चर्चा करते हैं, कई बार तो अन्य लोगों को लगता है कि झगड़ क्यों रहे हैं।

–पहली गेर का श्रेय बाबूलाल गिरी को

होल्कर रियासत के वक्त महाराजा रंग खेलने लाव लश्कर के साथ शहर में निकलते थे।बाद में इस परंपरा कोटोरी कार्नर की गेर के रूप में बाबूलाल गिरि ने शुरु किया।पानी और रंग गुलाल उड़ाती इस गेर में जमीन सेचार-छह मंजिल तक के मकानों में मिसाइल से रंग-गुलाल फेंकने की शुरुआत रमेश शर्मा (बोरिंग वालों) कोजाती है।उन्होंने तेज गति से बेहद ऊंचाई तक रंग फेंकने वाली मिसाइल गेर में शुरु की इस प्रयोग को बेहदसफलता मिलने का कारण यह भी रहा कि देर तक उस हिस्से में रंगों के गुबार छा जाते थे।शहर में पहली बार1948 में टोरी कॉर्नर से गेर निकाली गई थी। इसके बाद अन्य स्थानों से भी गेर निकलने की परंपरा शुरू हुई।

–गेर को विश्व धरोहर में शामिल करने का 40 पेज का प्रस्ताव केंद्र ने भेजा यूनेस्को को

रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर को यूनेस्को के रेकार्ड में विश्व धरोहर बनाने के लिए 40 पेज का प्रस्तावकेंद्रीय संगीत नाटक अकादमी को भेजा जा चुका है। 14 मार्च को गेर तो निकलेंगी ही लेकिन जरूरी नहीं कियूनेस्को की टीम के सदस्य इसके अवलोकन के लिए आएं। रंगपंचमी की गेर को विश्व धरोहर में शामिल कराने की पहल कलेक्टर लोकेश जाटव के प्रयास से हुई है।केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से यूनेस्को को भेजे जाने वाले प्रस्ताव के लिए कलेक्टर ने एडीएम बीबीएसतोमर के समन्वय वाली जिस टीम को प्रपोजल बनाने का काम सौंपा था उसमें उच्च शिक्षा विभाग के नोडलअधिकारी डॉ एमडी सोमानी (ओल्ड जीडीसी मोतीतबेला) के साथ शा. कला-वाणिज्य महाविद्यालय की दोसहयोगी डॉ नमिता काटजू (हिस्ट्री) और डॉ उषा जैन (अंग्रेजी) के सहयोग से जुलाई 19 से गेर संबंधी तथ्य, फोटो, 40 साल से अब तक गेर को लेकर विभिन्न अखबारों में प्रकाशित समाचारों की कटिंग, गेर की शुरुआतसे जुड़े रहे वरिष्ठजनों से चर्चा-वीडियो आदि वाला करीब 40 पेज का प्रपोजल बनाकर 10 फरवरी को संगीतनाटक अकादमी को भेज दिया गया था।अकादमी द्वारा इस प्रपोजल को संस्कृति मंत्रालय द्वारा यूनेस्को कोभेजा जा चुका है।

–यूनेस्को की टीम जानकारी मंगवा सकती है

प्रपोजल बनाने वाली टीम के प्रमुख डॉ एमडी सोमानी ने‘प्रजातंत्र’ से चर्चा में कहा जिला प्रशासन के माध्यम से जो प्रपोजल भेजा गया है, उसमें यदि किन्हीं तथ्यों कीजानकारी यूनेस्को को चाहिए होगी तो वह लिखित में मंगवा सकती है। जिला प्रशासन द्वारा गठित इस उच्चस्तरीय समिति ने करीब 72 साल पुराने दस्तावेज जुटाए हैं। 40 पेज का जो प्रपोजल भेजा गया है वह भीसवाल जवाब आधारित है, ये सारे सवाल यूनेस्को ने ही भेजे थे।संस्कृति मंत्रालय के जरिए यह प्रस्ताव यूनेस्कोको जाएगा।

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