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सबसे पहले किसने रखा करवा चौथ व्रत

स्वाति गोस्वामी


करवा चौथ का व्रत अनादि काल से ही चला आ रहा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार सबसे पहले करवा चौथ का व्रत माता गौरी ने भगवान भोलेनाथ के लिए रखा था. इस दिन उन्होंने पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर चांद को अर्घ्य दिया था और तब से ही करवा चौथ मनाने की परंपरा चली आ रही है।
पति की लंबी आयु की कामना से पत्नी द्वारा रखा जाने वाले करवा चौथ व्रत की महिमा अपार है। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से पति को न केवल लंबी आयु मिलती है बल्कि वह निरोगी भी रहता है। साथ ही पति-पत्‍नी के बीच असीम प्रेम होता है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि करवा चौथ का यह व्रत सबसे पहले किसने रखा? आइए जानते हैं…
मान्‍यता है कि सबसे पहले यह व्रत शक्ति स्‍वरूपा देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए रखा था। इसी व्रत से उन्‍हें अखंड सौभाग्‍य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।
कथा मिलती है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्‍य भयंकर युद्ध छिड़ा था। लाख उपायों के बावजूद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल पा रही थी और दानव थे कि वह हावी हुए जा रहे थे। तभी ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा। उन्‍होंने बताया कि इस व्रत को करने से उनके पति दानवों से यह युद्ध जीत जाएंगे। इसके बाद कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी ने व्रत किया और अपने पतियों के लिए युद्ध में सफलता की कामना की। कहा जाता है कि तब से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई। महाभारत काल की कथा मिलती है कि एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्‍या करने गए थे। उसी दौरान पांडवों पर कई तरह के संक्‍ट आ गए। तब द्रोपदी ने श्रीकृष्‍ण से पांडवों के संकट से उबरने का उपाय पूछा। इसपर कन्‍हैया ने उन्‍हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करने को कहा। इसके बाद द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडवों को संकटों से मुक्ति मिल गई।

कथा मिलती है कि प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्‍त्री थी। एक बार उसका पति नदी में स्‍नान करने गया था। उसी समय एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। इसपर उसने मदद के लिए करवा को पुकारा। तब करवा ने अपनी सतीत्‍व के प्रताप से मगरमच्‍छ को कच्‍चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास पहुंची। करवा ने यमराज से पति के प्राण बचाने और मगर को मृत्‍युदंड देने की प्रार्थना की। इसके बाद इस पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्‍यु नहीं दे सकता। तभी करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्‍होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्‍हें नष्‍ट होने का शाप दे देगी। इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिला और मगरमच्‍छ को मृत्‍युदंड।
कथा मिलती है कि इन्द्रप्रस्थपुर वेद शर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरावती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, लेकिन उससे भूख नहीं सही जा रही थी। उसके भाई उससे अत्‍यधिक स्‍नेह करते थे और बहन की यह अधीरता उनसे देखी नहीं जा रही थी। इसके बाद भाईयों ने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरावती को भोजन करा दिया। इसके बाद वीरावती का पति तत्काल अदृश्य हो गया। इसपर वीरावती ने 12 महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन इस कठिन तपस्या से वीरावती को पुनः उसका पति प्राप्त हो गया।

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