गुरु बिन ज्ञान न उपजे….
शिक्षिका प्रियंका व्यास द्वारा गुरु पूर्णिमा पर स्पेशल लेख
प्रियंका व्यास
लेखिका….. इंडियन पब्लिक स्कूलअमानगंज में शिक्षिका हैं।
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गुरु पूर्णिमा तिथि को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म हुआ था। यह दिन गुरुजनों के सम्मान में मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा उन महान शिक्षकों और गुरुओं को समर्पित है, जो हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है और जीवन में मार्गदर्शन करने के लिए उनका आभार व्यक्त किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।‘गुरु’ शब्द का अर्थ होता है – अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। लोक में सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं। प्रथम तो शिक्षा गुरु और दूसरे दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं।
प्रत्येक पूर्णिमा का अपना महत्व होता है लेकिन गुरु पूर्णिमा पर की गई पूजा, उपवास व दान-पुण्य बहुत पुण्यदायी माने गए हैं। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उनकी दी गई शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लेते हैं। लोग अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेने के लिए इस दिन उनके पास जाते हैं और उनकी चरण वंदना कर उन्हें विभिन्न उपहार देते हैं। यह दिन केवल शैक्षिक गुरुओं के लिए नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन करने वाले सभी गुरुओं के प्रति समर्पित है। इस दिन गुरु मंत्र लेने की भी परंपरा है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। विशेषरूप से गुरु पूर्णिमा पर गुरु को आदर और सम्मान देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
महर्षि वेदव्यास का योगदान
इस दिन को वेदव्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसीलिए इसे व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। इन्होंने मनुष्य जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था इसीलिए इन्हें जगत का प्रथम गुरु माना जाता है।
गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। वे ज्ञान के प्रकाश स्तंभ होते हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है। वेदों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप बताया गया है।”गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः” अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
संत कबीर ने भी गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है कि “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥” यहाँ गुरु को गोविंद से भी ऊँचा स्थान दिया गया है, क्योंकि गुरु ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बनाए थे। इनके अलावा भी भारतीय धर्म, साहित्य और संस्कृति में अनेक ऐसे दृष्टांत भरे पड़े हैं, जिनसे गुरु का महत्त्व प्रकट होता है। ऋषि वशिष्ठ को गुरु रूप में पाकर श्रीराम ने ,अष्टावक्र को पाकर जनक ने और संदीपनी को पाकर श्रीकृष्ण-बलराम ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना। केवल गुरु ही नहीं बल्कि अपने से बड़े और अपने माता-पिता को गुरु तुल्य मानकर उनसे सीख लेनी चाहिए एवं उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए। इस गुरु पूर्णिमा पर, हम सभी को अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करना चाहिए और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। गुरु के आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सार्थक और सफल हो सकता है।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष। गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष।