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कहीं आप अधूरी तो नहीं कर रहे शिव जी की पूजा

शिव जी का प्रिय सावन महीना चल रहा है। शिव जी के भक्त मंदिरों में और घरों में शिव जी की विशेष पूजा कर रहे हैं। पूजा करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाए तो पूजा का फल जल्दी मिल सकता है। जानिए शिव पूजा में कौन-कौन सी चीजें खासतौर पर चढ़ानी चाहिए और किन चीजों का इस्तेमाल शिव पूजा में नहीं करना चाहिए…

अगर कोई व्यक्ति शिव जी की विधिवत पूजा नहीं कर पाता है तो वह सिर्फ जल चढ़ाकर भी पूजा कर सकता है। जल के साथ ही दूर्वा, बिल्व पत्र, शमी के पत्ते, धतूरा और आंकड़े के फूल चढ़ाएंगे तो बहुत शुभ रहेगा।

शिव जी का जल से अभिषेक करने का महत्व काफी अधिक है। शिवलिंग पर खासतौर पर ठंडी तासीर वाली चीजें जैसे जल, दूध, दही खासतौर पर चढ़ाया जाता है। अभिषेक यानी शिव जी को जल से स्नान कराना।

शिव जी को रुद्र भी कहते हैं, इसलिए जलाभिषेक को रुद्राभिषेक भी कहा जाता है। सोने, चांदी या तांबे के लोटे से शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए। स्टील, एल्युमिनियम या लोहे के लोटे से शिवलिंग पर जल चढ़ाने से बचें। लोटे में जल भरकर पतली धारा शिवलिंग पर चढ़ानी चाहिए।

समुद्र मंथन से जुड़ी है शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा

शिवलिंग पर शीतलता देने वाली चीजें चढ़ाने की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है। देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उस मंथन से कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, उच्चश्रेवा घोड़ा, महालक्ष्मी, धनवंतरि अमृत कलश लेकर निकले थे। इन दिव्य रत्नों से पहले हलाहल नाम का भयंकर विष निकला था।

सृष्टि की रक्षा के लिए हलाहल विष शिव जी ने पी लिया था, लेकिन उन्होंने विष को गले से नीचे नहीं जाने दिया। विष की वजह से शिव जी का गला नीला गया हो गया और उनका एक नाम नीलकंठ पड़ गया। विष की गर्मी को शांत करने के लिए सभी देवताओं और ऋषियों ने शिव जी का ठंडे जल से अभिषेक किया था। इसके बाद से ही शिवलिंग पर ठंडा जल और दूध, चंदन, दही जैसी ठंडक देने वाली चीजें चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

शिवलिंग पर बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल, गुलाल, अबीर, चंदन, जनेऊ, सुपारी, वस्त्र, गुलाब, गेंदा आदि चीजें चढ़ा सकते हैं।

शिवलिंग पर तुलसी, केतकी के फूल चढ़ाने से बचना चाहिए। शिव पूजा में इन चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इस संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक शिव जी ने तुलसी के पति असुरराज शंखचूड़ का वध किया था। इस वजह तुलसी ने खुद को शिव पूजा के लिए वर्जित कर दिया था।

केतकी के फूल के संबंध में कथा है कि जब ब्रह्मा-विष्णु शिवलिंग का आदि और अंत खोज रहे थे। उस समय ब्रह्मा ने झूठ कहा था कि उन्होंने शिवलिंग का एक छोर खोज लिया है, इस झूठ में केतकी ने भी साथ दिया था। शिव जी ये बात जान गए। उन्होंने ब्रह्मा जी को शाप दिया कि उनकी पूजा नहीं होगी और केतकी को शाप दिया कि उसके फूल शिव पूजा में वर्जित रहेंगे।

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