धर्म एवं ज्योतिष

डंठल वाले खीरे के बिना क्यों अधूरी है कृष्ण जन्माष्टमी? काशी के ज्योतिषी से जानें धार्मिक कारण

हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस साल 26 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा. अष्टमी तिथि को हर घर और मंदिर में रोहिणी नक्षत्र के मध्य रात्रि में कान्हा का जन्म खीरे से कराया जाता है. खीरे से भगवान श्री कृष्ण के जन्म के पीछे क्या रहस्य है इसके बारे में काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने जानकारी दी है.

पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार खीरे का संबंध गर्भाशय से होता है. इसमें जल तत्व की मात्रा अधिक होती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, खीरे को माता यशोदा के गर्भाशय का प्रतीक माना जाता है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म उसी खीरे में होता है जिसमें डंठल होता है.

गर्भ नाल का प्रतीक है खीरा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि ऐसा कहा जाता है खीरा का डंठल गर्भ नाल का प्रतीक होता है. जिस प्रकार गर्भ से बच्चा बाहर आने के बाद नाल को उससे अलग किया जाता है. उसी तरह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में डंठल वाले खीरे से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कराकर लोग इस उत्सव को बेहद ही धूमधाम से मनाते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.पं डित संजय उपाध्याय ने बताया कि खीरे को सनातन धर्म में बेहद शुद्ध फल माना जाता है.

भगवान श्रीकृष्ण को बेहद प्रिय है खीरा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण को खीरा अत्यधिक प्रिय है.इसलिए उन्हें खीरे का भोग भी लगाया जाता है और फिर उसे प्रसाद स्वरूप भक्तों में बांटा जाता है.

इस योग में करें पूजा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस बार देशभर में 26 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा. इस बार जन्माष्टमी के दिन जयंति नामक योग भी बन रहा है जो अपने आप में बेहद शुभ है. धार्मिक मान्यता के अनुसार,इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के चतुर्भुज स्वरूप की पूजा से तीन जन्म के पाप कट जाते हैं.

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