धर्म एवं ज्योतिष

यहां विराजे हैं सोभाग्येश्वर महादेव, हरतालिका तीज पर मंदिर में लगती है भीड़, अद्भत है इनकी महिमा

विश्व प्रसिद्ध महाकाल की नगरी में महादेव के कई रूप विराजमान है. जिनकी अलग ही पहचान हैं. माना जाता है कि महाकाल की नगरी में कंकर में शंकर का वास होता है, ऐसे ही एक मंदिर 84 महादेवों में 61 वां स्थान रखने वाले श्री सौभाग्येश्वर महादेव नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर पटनी बाजार क्षेत्र मे स्थित है. हरतालिका तीज के दिन 24 घंटे महादेव के दर्शन होते हैं.

व्रत रखने वाली महिलाएं और युवतियां यहां दर्शन के लिए पहुंचती हैं.यहां युवतियां अच्छा पति मिलने की कामना के साथ पूजन के लिए आती हैं. हरतालिका तीज पर रात से मंदिर मे श्रद्धालूओ का सैलाब देखने को मिलता है. परंपरा अनुसार गुरुवार रात 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे. इसके बाद 24 घंटे निरंतर दर्शन पूजन का सिलसिला चलेगा.

कब है हरतालिका तीज
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर प्रारंभ होगी. इस तिथि का समापन 6 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगा. उदिया तिथि के चलते हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर को ही रखा जाएगा.

बालूरेट से बना है शिवलिंग
श्रद्धालु आभा भाटिया ने लोकल 18 से कहा कि पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बालू रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की थी. इसी मान्यता के चलते व्रती महिलाएं व युवतियां बालू से निर्मित शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना करती हैं. भगवान सौभाग्येश्वर महादेव का शिवलिंग भी बलुआ पत्थर से निर्मित है. इसलिए भी हरतालिका तीज पर इनके पूजन की विशेष मान्यता और अधिक बढ़ जाती है.

हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका तीज के महत्व के बारे में सौभाग्येश्वर मंदिर के पुजारी परिवार की अंजना पंड्या ने बताया कि मान्यता है. माता पार्वती को उनकी सखी द्वारा हरा गया था.इस वजह से इसे हरतालिका तीज पर्व कहा गया है. इस पर्व पर महिलाओं व कन्याओं द्वारा बाबा के पूजन का महत्व है. इससे सुख-स्मृद्धि की प्राप्ति होती है, कन्याओं को अच्छा वर मिलता है वहीं महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए कामनाएं करती हैं. मंदिर में ऐसे तो 12 महीने ही श्रद्धांलु की भीड़ देखने को मिलती है. लेकिन, हरतालिका तीज के दिन रात 12 बजे से ही महिला श्रद्धालूओ की कतारे लग जाती है.

सौभाग्येश्वर महादेव का रहस्य
स्कंद पुराण के अनुसार प्राकृत कल्प में अश्वाहन राजा की पत्नी मदमंजरी यूं तो सुंदर और सुशील तथा पतिव्रता थी. लेकिन दुर्भाग्यवश वह हमेशा ही राजा द्वारा प्रताड़ित रहती थी. क्योंकि राजा जब उसका स्पर्श करता था. उस राजा को मुरछा आ जाती थी. एक बार गुस्से में राजा ने मदमंजरी को जंगल में भेज दिया. उसने वहीं साधना रत एक तेजस्वी मुनि से अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने का उपाय पूछा है.

शिवलिंग की उपासना
उस मुनि ने उसे अपने तपोबल से जाना की कन्यादान के समय राजा पर पाप ग्रहों की दृष्टि के कारण ही मदमंजरी का हाल हुआ है. उस तेजस्वी मुनि ने मदमंजरी को महाकाल वन स्थित इस सौभाग्य देने वाले शिवलिंग की उपासना करने को कहा, रानी द्वारा वैसा वैसा ही करने पर उसे सौभाग्य की प्राप्ति हुई. मदमंजरी का दुर्भाग्य समाप्त कर उसे सौभाग्य प्रदान करने के कारण इस शिवलिंग की तभी से सौभाग्येश्वर के रूप में ख्याति हुई. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन पूजन करने से हमारा दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है.

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