झारखंड में इस पूरे परगना की रक्षा करती हैं माता चंपेश्वरी, महाभारत काल से जुड़ा इतिहास, पढ़ें रोचक कथा
हजारीबाग जिला अपने गौरवशाली इतिहास के साथ कई सांस्कृतिक धरोहरों को अपने भीतर समेटे हुए है. जिले का इतिहास रामगढ़ राज से जुड़ा हुआ है. रामगढ़ राज को 21 परगना में विभाजित किया गया था. जिसकी एक परगना चंपानगर था. आज भी पुराने दस्तावेज इस बात के सबूत पेश करते हैं. चंपानगर परगना में माता चंपेश्वरी की पूजा अर्चना की जाती थी. जहां भक्त अपना मुराद लेकर माता के दरबार में जाते थे.
माता चंपेश्वरी का ऐतिहासिक का मंदिर आज भी चंपानगर में स्थित है. माता चंपेश्वरी ही पूरी परगना की रक्षा करती थी. आज भी सैकड़ो भक्त माता चंपेश्वरी के मंदिर में अपनी मुराद मांगने के लिए जाते हैं. हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड स्थित चंपानगर नवाडीह गांव स्तिथ माता चंपेश्वरी का मंदिर है. आज धार्मिक आस्था का केंद्र बन चुका है. यहां दूर-दूर के भक्त अपनी मन्नत लेकर माता तक जाते हैं.
यहां दूर-दूर से आते है भक्त
चंपानगर नवाडीह गांव के रहने वाले देवदत उपाध्याय बताते हैं कि माता का मंदिर कब बना है. इसकी वास्तविक जानकारी किसी के पास नहीं है. हम लोगों ने अपने पूर्वजों से सुन रखा है कि माता के इस मंदिर का निर्माण चंपानगर परगना के राजा ने किया था. माता के पूरे परगना की रक्षा किया करती थी. माता की मूर्ति से अलौकिक रोशनी दिखता था. मानो कोई मणि मूर्ति के भीतर स्थापित हो.
1982 में चोरी हो गई मूर्ति
मंदिर में माता अष्टभुजी, माता वैष्णवी और मां चंपेश्वरी की मूर्तियां स्थापित थी. लेकिन साल 1982 ईस्वी में मंदिर में माता चंपेश्वरी की मूर्ति की चोरी हो गई. चोर माता की मूर्ति में अलौकिक रोशनी होम के कारण चोरी कर ले गए. ग्रामीणों ने मूर्ति वापस लाने के लिए कई जगह दौड़ भाग भी किया लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकल पाया.
महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
स्थानीय भास्कर उपाध्याय बताते हैं कि इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मंदिर से कुछ ही दूरी पर घोड़टप्पा नाम का स्थान है. यहां राजा युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े के चारों पांव के निसान दिखते है. माना जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा यही आकर रुक गया था.