धर्म एवं ज्योतिष

खराब ग्रहों के कारण नहीं मिलता दांपत्य सुख 

सनातन धर्म में विवाह एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है। वही सुखद और प्रेमपूर्ण दांपत्य का आधार है लेकिन प्रारब्ध कर्मानुसार व्यक्ति की जन्मपत्रिका में कुछ ऐसी ग्रह स्थितियां निर्मित हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप उसे दांपत्य सुख नहीं मिलता है। कलहपूर्ण दांपत्य अंत्यत कष्टप्रद और नारकीय जीवन के समान होता है। वैसे भी हर पुरुष सुंदर पत्नी और स्त्री धनवान पति की कामना करते हैं।
जीवन में किसी का साथ मनुष्य के लिए बेहद आवश्यक हो जाता है। कोई साथ हो या दांपत्य साथी अनुकूल हो तो हर तरह की परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है लेकिन यदि दांपत्य जीवन में दोनों में किसी एक व्यक्ति का व्यवहार यदि अनुकूल नहीं रहता है तो रिश्ते में कलह और परेशानियों का दौर लगा रहता है।
ज्योतिषशास्त्र में जातक की जन्म कुंडली को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आपके दांपत्य जीवन में कलह के योग कब उत्पन्न हो सकते हैं।
जन्मपत्री में दांपत्य-सुख का विचार सप्तम भाव और सप्तमेश से किया जाता है। इसके अतिरिक्त शुक्र भी दांपत्य-सुख का प्रबल कारक होता है क्योंकि शुक्र भोग-विलास और शैय्या सुख का प्रतिनिधि है। पुरुष की जन्मपत्रिका में शुक्र पत्नी का और स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पति का कारक माना गया है। जन्मपत्रिका में द्वादश भाव शैय्या सुख का भाव होता है। अत: इन दांपत्य सुख प्रदाता कारकों पर यदि पाप ग्रहों, क्रूर ग्रहों और अलगाववादी ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति आजीवन दांपत्य सुख को तरसता रहता है।
सूर्य, शनि, राहु अलगाववादी स्वभाव वाले ग्रह हैं, वहीं मंगल और केतु मारणात्मक स्वभाव वाले ग्रह हैं। ये सभी दांपत्य-सुख के लिए हानिकारक होते हैं। कुंडली में सप्त या सातवां घर विवाह और दांपत्य जीवन से संबंध रखता है। यदि इस घर पर पाप ग्रह या नीच ग्रह की दृष्टि रहती है तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि जातक की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर और कार्यों में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दांपत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव बन जाता है।
यदि जन्म कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मगंल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलंब, विवाहोपरांत पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में शिथिलता, तलाक और क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है।
जब जन्म-कुंडली के सातवें या सप्तम भाव में अगर अशुभ ग्रह या क्रूर ग्रह (शनि, केतु या मंगल) ग्रहों की दृष्टि हो तो दांपत्य जीवन में कलह के योग उत्पन्ना हो जाते हैं। शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है।
राहु, सूर्य और शनि पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दांपत्य) और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। यदि अकेला राहु सातवें भाव में और अकेला शनि पांचवे भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है। किंतु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए। या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए।
यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का विवाह विलंब से होता है और जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है। यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छटे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की संभावना होती है।
यदि लग्न में मंगल हो या सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो और द्वितीयेश पर मारणात्मक ग्रहों का प्रबाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दांपत्य सुख से वंचित होना पड़ता है। यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रबाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो और सप्तम भाव पर सूर्य, शनि और राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दांपत्य सुख प्राप्त नहीं होता है।
ध्यान दें : यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में वैवाहिक जीवन को लेकर परेशानियां है तो उपाय के लिए सबसे पहले पति-पत्नी की कुंडली का मिलान करवाएं। दोनों जातकों की कुंडली का मिलान करके ही कोई अनुभवी ज्योतिषाचार्य आपको उपाय बता सकता है।
कई बार देखा गया है कि यदि पत्नी की कुंडली में यह दोष मौजूद है और पति की कुंडली अनुकूल है तो समस्या थोड़ी कम हो जाती है और इसी के उलट भी कई बार हो जाता है। लेकिन यदि दोनों व्यक्तियों की कुंडली में सप्तम भाव सही नहीं रहता है तो उस स्थिति में जीवन नारकीय बन जाता है। किसी भी परिस्थिति में कुंडली का मिलान समय से कराकर उपायों को अगर अपनाया जाए तो पीड़ा कम हो जाती है।

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