भगवान श्री कृष्ण के पास कहां से आई थी बांसुरी
क्या नाम था भगवान श्री कृष्ण की मुरली का
स्वाति गोस्वामी
भगवान श्री कृष्ण को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर हम आपको बताते हैं कि उनकी सबसे पसंदीदा बांसुरी कहां से आई थी और उन्हें किसने यह बांसुरी गिफ्ट की थी। जो भगवान श्री कृष्णा हमेशा अपने पास रखते थे। और क्या नाम था भगवान श्री कृष्ण की मुरली या बांसुरी का।
भगवान शिव से मिली कृष्ण को बांसुरी
कहते हैं कि द्वापर युग में जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो नंद बाबा के घर बधाई देने वालों का तांता लग गया। क्या नगरवासी, क्या ऋषि मुनि यहां तक की देवता भी समाचार मिलने पर नंद बाबा के घर बधाई देने पहुंचने लगे। बधाई की परंपरा के अनुसार सभी भगवान के लिए कुछ न कुछ उपहार में ला रहे थे।
ऐसा जब भगवान भोले शंकर ने देखा तो सोचा कि उन्हें भी कुछ न कुछ लेकर ही जाना चाहिए, लेकिन वह कुछ ऐसा ले जाएं जो बालक कृष्ण अपने साथ रख सके। ऐसा सोचते हुए भगवान शिव गोकुल मथुरा की ओर बढ़ रहे थे तभी उन्हें रास्ते में महर्षि दधीच की हड्डियों के कुछ अवेशेष मिले।
यह वही महर्षि दधीच थे जिन्होंने राक्षसों के विनास के लिए अपने शरीर को दान कर दिया था। इन्हीं के हड्यिों से सारंग, पिनाक और गांडीव नामक तीन धनुष और एक बज्र बनाया गया था।
भगवान शिव ने हड्डी के एक टुकड़े को उठाया और माया से एक अनुपम और बांसुरी तैयार की। इसके बाद उन्होंने नंदबाबा के घर जब भगवान कृष्ण को देखा तो उन्हें यह बांसुरी भेंट की। भगवान शिव का आशीर्वाद समझकर भगवान कृष्ण हमेशा इस बांसुरी को अपने पास रखा।
वहीं बबूल की दूसरी कथा में कहा जाता है कि भगवान कृष्ण बगीचे में टहले और फूलों को देखकर मुस्कुराते। वह सभी पेड़, पौधों और लताओं से बहुत ही स्नेह जताते। ऐसा देखकर वहां पर मौजूद बबूल के पेड़ को रहा नहीं गया तो उसने भगवान अपने से कम प्यार होने की शिकायत की। भगवान ने बबूल से कहा कि उसे भी प्यार मिलेगा लेकिन उसे कष्ट बहुत सहना पड़ेगा। बबूल तैयार हो गया। भगवान से बबूल की एक शाखा तोड़ी तो वह पीड़ा से कराह उठा। लेकिन भगवान ने इस शाखा से बांसुरी बनाई और फिर हमेशा अपने पास रखी। उनकी बांसुरी का नाम महानंदा या सम्मोहिनी था.